Article: भारत क़े डिजिटल स्वाधीनता और तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में तेज़ी से कदम बढ़ाने की चर्चा जोरों पर!
क्या वैश्विक डिजिटल परिदृश्य में भारत द्वारा एक क्रांतिकारी बदलाव देने की रणनीति अंतिम दौर में पहुंची?
20वीं सदी में औद्योगिक क्रांति ने दुनियाँ का चेहरा बदला तो 21वीं सदी में सूचना व डिजिटल क्रांति ने मानव जीवन को ही बदल दिया?-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र
नया सवेरा नेटवर्क
साथियों बात अगर हम भारत के लिए ऐसे सर्च इंजन की जरूरत की करें जो भारत की 22 अधिकृत भाषाओं को कवर करें तो, उसमें ऐसी तकनीकी होनीं चाहिए (1) भारतीय भाषाओं का समर्थन-यह इंजन 22 आधिकारिक भारतीय भाषाओं और 50 से अधिक बोलियों में खोज परिणाम प्रदान कर सके। यदि कोई उपयोगकर्ता भोजपुरी में कोई सवाल करता है, तो उसे भोजपुरी में ही प्रासंगिक परिणाम मिलेंगे।(2)लोकलाइज्ड एल्गोरिद्म:-गूगल की तरह केवल अंग्रेज़ी या वैश्विक पैटर्न पर आधारित न होकर यह सर्च इंजन भारतीय संस्कृति, भूगोल और समाज को ध्यान में रखकर जानकारी छाँटता हो।(3)तेज़ और सटीक परिणाम:- एआई आधारित एल्गोरिद्म उपयोगकर्ता के सर्च पैटर्न को समझकर व्यक्तिगत और सटीक जानकारी प्रदान करता हो, लेकिन डेटा का दुरुपयोग किए बिना। (4) वॉइस सर्च की सुविधा: भारत जैसे देश में जहां कई लोग टाइपिंग की बजाय बोलकर जानकारी खोजना पसंद करते हैं, वहाँ यह इंजन वॉइस सर्च को हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में सपोर्ट करता हो। (5) तकनीकी संरचना: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और भारतीय भाषाओं का संगम हो।
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साथियों बात अगर हम भारत का यह सर्च इंजन"डेटा भारत में,भारत के लिए" की नीति पर आधारित होने की करें तो, (1) भारतीय सर्वर और डेटा सेंटर: सभी उपयोगकर्ताओं का डेटा देश के भीतर सुरक्षित सर्वरों में संग्रहित हो। (2) डेटा गोपनीयता कानून: यह इंजन भारत के नए "डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट" का पालन करता हो, जिससे नागरिकों का व्यक्तिगत डेटा विदेश नहीं जाएगा। (3) निजी जानकारी का नियंत्रण: उपयोगकर्ता चाहे तो अपनी गतिविधियों को पूरी तरह निजी रख सकता हो। कोई भी विज्ञापनदाता बिना अनुमति डेटा तक नहीं पहुँच सकता हो।इससे भारत न केवल अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा बल्कि डिजिटल स्वतंत्रता की दिशा में भी दुनिया के लिए उदाहरण बनेगा। जो रेखांकित करने वाली बात होगी।
साथियों बात अगर हम इस नए सर्च इंजन से स्टार्टअप और ई-कॉमर्स व शिक्षा, शोध और ज्ञान-परंपरा के लिए नया युग की करें तो, (1) भारत में 1 लाख से अधिक स्टार्टअप्स हैं, लेकिन उन्हें डिजिटल विज्ञापन और ग्राहक तक पहुँचने के लिए गूगल-फेसबुक को भारी रकम चुकानी पड़ती थी।यह नया सर्च इंजन उन्हें,कम लागत पर स्थानीय विज्ञापन सुविधा देगा।"मेड इन इंडिया" उत्पादों को प्राथमिकता देगा।छोटे दुकानदारों और ग्रामीण उद्यमियों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाएगा।इससे डिजिटल अर्थव्यवस्था में करोड़ों नए अवसर पैदा होंगे।(2) शिक्षा, शोध और ज्ञान-परंपरा-भारत की सदियों पुरानी ज्ञान परंपरा रही है, लेकिन गूगल पर भारतीय स्रोतों को अक्सर प्राथमिकता नहीं मिलती। इस सर्च इंजन ने इसे सुधारने का प्रयास किया जायेगा।भारतीय विश्वविद्यालयों और शोध पत्रों को प्राथमिकता: आईआईटी, आईआईएससी, जेएनयू और अन्य संस्थानों के शोधपत्र अब अधिक आसानी से उपलब्ध होंगे।डिजिटल पुस्तकालय का एकीकरण: भारतीय भाषाओं के प्राचीन ग्रंथ और साहित्य भी खोज परिणामों में शामिल होंगे।छात्रों और शोधार्थियों को प्रामाणिक जानकारी: अब उन्हें विदेशी स्रोतों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
साथियों बात अगर हम, गूगल और फेसबुक को सीधी चुनौती, वैश्विक प्रतिक्रिया और भू- राजनीतिक महत्व एवं चुनौतियाँ और भविष्य की करें तो,अब तक गूगल का नाम ही "सर्च" का पर्याय माना जाता हैँ। लेकिन भारत का नया सर्च इंजन इस एकाधिकार को तोड़ने की क्षमता रखता हो तो (1) विज्ञापन बाज़ार: भारतीय व्यापारी तब गूगल ऐडवर्ड्स या फेसबुक ऐड्स पर निर्भर नहीं रहेंगे। उन्हें सस्ता और स्थानीय विकल्प मिलेगा।(2) कंटेंट प्राथमिकता: भारतीय वेबसाइट्स और स्थानीय कंटेंट को सर्च परिणामों में प्राथमिकता दी जाएगी, जो गूगल अक्सर नज़रअंदाज़ करता है (3) पारदर्शिता: गूगल और फेसबुक के एल्गोरिद्म अक्सर रहस्यमय रहते हैं, लेकिन भारत का इंजन अपने एल्गोरिद्म और विज्ञापन प्रणाली में पारदर्शिता रखेगा।(3) इसका सीधा असर वैश्विक डिजिटल राजनीति पर पड़ेगा। अमेरिका की बड़ी कंपनियाँ भारत के इस कदम को अपनी आर्थिक ताक़त पर हमला मानेंगी और कूटनीतिक दबाव बना सकती हैं।वैश्विक प्रतिक्रिया और भू-राजनीतिक महत्व-भारत का यह कदम केवल तकनीकी या आर्थिक मामला नहीं है, यह भू-राजनीति से भी जुड़ा है। अमेरिका:-गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियाँ अमेरिकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, वे भारत की इस पहल का कड़ा विरोध कर सकती हैं।चीन और रूस:- चीन पहले ही अपने बाईडू और रूस अपने यांडेक्स सर्च इंजन के माध्यम से डिजिटल स्वायत्तता हासिल कर चुके हैं। वे भारत का स्वागत करेंगे और सहयोग की पेशकश कर सकते हैं।युरोपीय संघ:-जो पहले से डेटा सुरक्षा को लेकर सख़्त रुख अपनाता रहा है, वह भारत की इस पहल का समर्थन कर सकता है।इस प्रकार भारत का यह कदम वैश्विक इंटरनेट गवर्नेंस में शक्ति संतुलन को बदल देगा।चुनौतियाँ और भविष्य:-(1) किसी भी बड़े कदम की तरह इस पहल के सामने भी चुनौतियाँ होंगी।(2) गूगल जैसी कंपनियों के पास अरबों डॉलर का अनुसंधान बजट है।(3) उपयोगकर्ताओं की आदत बदलना कठिन है, क्योंकि गूगल का नाम ही "सर्च" का पर्याय बन चुका है।(4)साइबर हमलों और हैकिंग से सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। आर्टिकल के अंत में बताते चलूं कि,भारत की आईटीप्रतिभा सरकार का समर्थन और जनता का विश्वास इन चुनौतियों को अवसर में बदल सकते हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारत क़े डिजिटल स्वाधीनता और तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में तेज़ी से कदम बढ़ाने की चर्चा जोरों पर!क्या वैश्विक डिजिटल परिदृश्य में भारत द्वारा एक क्रांतिकारी बदलाव देने की रणनीति अंतिम दौर में पहुंची?20वीं सदी में औद्योगिक क्रांति ने दुनियाँ का चेहरा बदला तो 21वीं सदी में सूचना व डिजिटल क्रांति ने मानव जीवन को ही बदल दिया?
-संकलनकर्ता लेखक - क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र 9226229318
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