ऑपरेशन सिंदूर भारत की संकल्प शक्ति का संदेश | Naya Sabera Network
प्रो. शांतिश्री धुलपूड़ी, कुलपति जेएनयू |
चीनी समर्थकों या हाल की तुर्की समर्थकों की बात हो, जब उससे हिसाब-किताब का समय आया, पाकिस्तान के पास करने को कुछ नहीं बचा। यही हाल उसके समर्थकों का भी था। भारत ने सिर्फ अपनी संकल्प शक्ति का संकेत ही नहीं दिया है, बल्कि पाकिस्तान की कमजोरियों का पर्दाफाश भी किया है। यह क्षण सिर्फ रणनीतिक ही नहीं, बल्कि सभ्यतागत भी है। पहली बार, पाकिस्तान देख रहा है कि भारत की प्रतिक्रिया करने वाली या संकोची भूमिका अब खत्म हो चुकी है। बल्कि भारत एक ऐसे राष्ट्र के रूप में सामने खड़ा है, जो तैयार है, बिना डरे, और अडिग।
पाकिस्तान का रणनीतिक गहराई का मिथक—जो मानता है कि पश्चिमी सीमा पर अराजकता पूर्वी क्षेत्र में उसका लाभ बनती है—अब टूट चुका है। सैन्य महत्वाकांक्षा, धार्मिक उन्माद, और राज्य के गिरावट का मिश्रण पूरी दुनिया के सामने उजागर हो चुका है, और यह देखने वाला दृश्य कोई सहानुभूति या सम्मान नहीं जगाता। यह घृणा और चिंता ही पैदा करता है। एक तरफ पाकिस्तान के जनरलों को टीवी पर बकबक करते देखा जाता है, उसके मंत्री अपने अंग्रेज़ी ज्ञान का झूठा दिखावा करते हैं, तो दूसरी ओर पाक नागरिक कतारों में खड़े हैं, गरिमा से वंचित, गरीबी से ग्रस्त। पाकिस्तान की प्यादा सरकार सेना का उपकरण मात्र बनकर रह गए हैं। किसी भी राष्ट्र की शक्ति सिर्फ इसकी मिसाइलों में ही नहीं होती, बल्कि इसमें भी होती है कि वह अपने आम नागरिकों से कैसे जुड़ा है।
पाकिस्तान में जब चाय जैसी आम वस्तु भी कम हो जाय तो यह मात्र पलायन नहीं बल्कि आत्मसमर्पण होता है । आज के बदलते सामरिक परिदृश्य में भारत एक स्वतंत्र सैन्य सत्ता भी बन चुका है। ऐसे गहरे बदलाव के पीछे केवल सैन्य क्षमता ही नहीं है, बल्कि राजनीतिक स्पष्टता, रणनीतिक धैर्य, और संतुलित समय की समझ भी है। भारत के कदम मनोवृत्ति से प्रेरित नहीं हैं, बल्कि एक गहरे परंपरागत ज्ञान पर आधारित हैं, जो श्रीकृष्ण, विदुर और चाणक्य से लेकर अब तक की हमारी जागरूकता की लंबी यात्रा में समाहित है। चाणक्य ने कहा था कि जब शत्रु मजबूत हों, तो प्रतीक्षा करो; जब वे लापरवाही में हों, तो उन्हें खत्म करो; और जब स्थिति अनिर्णायक हो, तो वर्चस्व हासिल करो। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, इस प्राचीन ज्ञान को आधुनिक क्षितिज पर इस्तेमाल किया गया है। भारत ने इंतजार किया। उसने देखा कि पाकिस्तान आर्थिक रूप से दिवालिया हो रहा है, कूटनीतिक रूप से अलग-थलग हो रहा है, और सामाजिक रूप से टूट रहा है।
उसने तुरंत कार्रवाई नहीं की, बल्कि सही समय को चुना। और जब समय आया, तो उसने मिसाइलें और ड्रोन से अचूक वार किया। यह कोई संख्या या विजय का युद्ध नहीं है। यह एक निरंतर, स्थैतिक और मनोवैज्ञानिक अभियान है। भारत की स्थिति मजबूत होने के कारण, पाकिस्तान अब बम से नहीं, बल्कि इस बात से भी खून बहा रहा है कि अब वह संघर्ष का समय नियंत्रित नहीं कर सकता है।
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यह प्रतिक्रिया का सिद्धांत केवल बदला लेने का नहीं है, बल्कि एक संदेश भी है। भारतीय सरकार की हर कार्रवाई, बयान, और कदम एक ही बात कह रहे हैं—भारत अब मजबूर, उपहास या छलयोजना का हिस्सा भर नहीं रह जाएगा। हमारा देश युद्ध नहीं चाहता, लेकिन यदि युद्ध में खींचा जाता है, तो अपनी शर्तें खुद निर्धारित करेगा। वह न केवल युद्धक्षेत्र का चुनाव करेगा, बल्कि युद्ध का अर्थ भी तय करेगा। यही स्पष्टता पाकिस्तान के डूबते राज्य को किसी भी बमबारी या कूटनीतिक उपेक्षा से अधिक परेशान कर रही है।7
सिंदूर या कुंकुमम या कुमकुम हमारे धर्मिक मूल्यों का प्रतीक है, यह हमारे सभ्यतागत मूल्यों का अभिन्न हिस्सा है। यह मां की देवी का प्रतिनिधित्व करता है, और प्राचीन काल से ही सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ा है। सभी इसे श्रद्धा से अपने माथे पर लगाते हैं। सिंदूर का अर्थ है रणनीतिक पहल, विरोधियों को समाप्त करने के लिए व्यापक प्रतिशोध भी है। पिछले एक महीने में, ऑपरेशन सिंदूर में व्यक्त नैतिक और रणनीतिक स्पष्टता शायद इतिहासकारों, चिन्तकों और रणनीतिकारों के लिए दुनिया भर में सबसे महत्वपूर्ण सीख है। नाम का चयन लगभग जानबूझकर किया गया था और इसका अर्थ गहरा रहा है। सिंदूर, विवाहित हिंदू महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला लाल रंग का चिह्न, प्रतिबद्धता, निरंतरता और पवित्र प्रेम का प्रतीक है। हालांकि, जैसा कि भारतीय सशस्त्र बलों की प्रतिक्रिया से स्पष्ट हुआ, यह आतंकवादी आतंकवादी हमले के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक बन गया, जहां जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों ने हनीमून पर गए एक युवक की हत्या कर दी, उसकी पत्नी कुछ ही दिनों में विधवा हो गई। उस महिला की पीड़ा का सम्मान करते हुए भारत ने शोक नहीं बल्कि एक मिशन के साथ जवाब दिया। ऑपरेशन सिंदूर मात्र सैन्य सफलता नहीं थी, बल्कि यह एक सभ्यतागत संकल्प भी था। जिसमें यह सुनिश्चित किया गया कि निर्दोष रक्त की हर बूंद का सटीक हमले, दृढ़ संकल्प और सम्मान के साथ उत्तर दिया जाएगा। इसकी प्रतीकात्मकता और इसके पीछे की इच्छा शक्ति ने विश्व को स्तब्ध कर दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले दशक में नारी शक्ति और महिलाओं के नेतृत्व को बड़े मनोभाव से आगे लाने का प्रयास किया है। सशस्त्र बलों के संदर्भ में, यह महिलाओं की नेतृत्व क्षमता को विकसित करने का प्रयास ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पूरी तरह से दिखाई दिया। सिर्फ पोस्टरों और विज्ञापनों में ही नहीं, बल्कि वास्तविक निर्णय लेने, रणनीतिक फैसले करने और भारत की स्थिति को जनता और दुनिया के समक्ष व्यक्त करने में भी। नारी शक्ति, वह सशक्त महिला का विचार जो भारत के प्राचीन शास्त्रों से प्रवाहित होता है, युद्ध के दौरान पूरी तरह से अभिव्यक्त हुई। यह वर्दी में साक्षात् दुर्गा थीं — जो शांत, संयमित, और किंतु शत्रु पर विनाशकारी ।
भारत उठ रहा है
अपने कार्यों के माध्यम से भारत ने न केवल अपने क्षेत्र और सीमा पर अपना अधिकार जताने का काम किया है, बल्कि अपनी आत्मा और धार्मिक शक्ति की भावना को फिर से खोज लिया है। अब युद्धभूमि सिर्फ बल का स्थान नहीं बल्कि नैतिक स्पष्टता का क्षेत्र हो गया है। आज दुनिया भारत को उन राष्ट्रों में देख रही है जिनकी शक्ति में आधुनिकता और सभ्यतामूलक परंपरा का मिश्रण है। जिसके पास आक्रमण करने की क्षमता के साथ, संयम भी है। साहस के साथ करुणा भी है।
पाकिस्तान, जो कभी अपनी धमकियों में आक्रामक था, अब मनोवैज्ञानिक रूप से टूट चुका है। चीन भी भारत की स्पष्टता से घबराया हुआ, चौकन्ना होकर देख रहा है। और पश्चिम जगत, जो लंबे समय से भारत को लेक्चर देने का अभ्यस्त था, अब हर चीज को अधिक ध्यान से सुन रहा है। यह प्रतिशोध नहीं बल्कि हिसाब-किताब का वक्त है। कुछ इसे नकारात्मक देशभक्ति कहने की कोशिश करेंगे, लेकिन वास्तव में, यह देश की आत्मविश्वास का उद्घोष है। चाणक्य का सिद्धांत—विलंब, रिक्त करना, वर्चस्व—का इसका आधुनिक रूप सामने आया है।
यह रणनीति कालजयी है, लेकिन आज इसकी क्रियान्विति ड्रोन की सटीकता, कूटनीतिक समझ और ऐसी संकल्प से परिपूर्ण है, जिसके समक्ष विश्व उत्तरहीन है। दुनिया को ध्यान देना चाहिए। जब दुश्मन पीने का पानी खत्म हो चुका हो, जवाब न हो, और सांसें भी खत्म होने वाली हों, तो भारत घमंड नहीं करता—वह आगे बढ़ता है। इस बार भी एक शांत, निर्णायक और निडर राष्ट्र के रूप में। अब हम किसी प्रकार के तुष्टिकरण नहीं बल्कि प्रत्युत्तर देने के युग में हैं। वह वक्त गया भारत का, उसके संयम का एक राष्ट्र के रूप में उपहास किया जाता था। आज संदेश स्पष्ट है, हम अतिथि सत्कार, संधि और हमला सब अपनी शर्तों पर कर सकते है। यही उदीयमान भारत है।
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