पुरानी पीढ़ी | Naya Sabera Network
नया सवेरा नेटवर्क
पुरानी पीढ़ी
वो नाना नानी के घर जाना
शरारत से रोज डांट खाना ,
पूरे गांव में सुबह शाम भटकना
पेड़ो से आम तोड़ लाना ।
चिट्ठी का दौर था लोग खुशहाल थे
आज मोबाइल का दौर है और लोग परेशान हैं।
नमक तेल रोटी में पोट के खाना सुबह से ही घर में शोर मचाना
शाम को दादा दादी से कहानी सुनना
उनके हाथ पैर दबाना ।
डिबरी की रोशनी में पढ़ाई करना
लालटेन लेके कीड़े मकोड़े खोजना ,
कभी पगडंडी के रास्ते तो कभी ऊंच नीच सड़कों पर निकलना।
आज का दौर सिर्फ मोबाइल तक ही दिखता है
इसी कारण मोबाइल महंगा मिलता है ।
एक जोड़ी कपड़े में दो साल गुजर जाता था
अब तो हर दिन के लिए एक जोड़ा कपड़ा आता है।
वो दौर था तो लोग मुसीबतों में सहयोग करते थे
आज तो सिर्फ मुस्कुराता है,
जिनसे सहायता की उम्मीद होती है
उससे ही वह धोखा खाता है ।
वो दौर ही मुझे पसंद है
न चाहत थी न कमाना था
बचपन ही ठीक हमारा था
टेंशन फ्री जीवन बिताना था ।
रितेश मौर्य
जौनपुर, उत्तर प्रदेश।