Poetry: सियासत
नया सवेरा नेटवर्क
"सियासत"
अरी सियासत ! तू कितनी भूखी है ?
खा गयी पहले बहुतों को,
और आज भी खाती है।
बांट दिया भू को हिय को
फिर आज भी बाँटती है
बांटने से जी नहीं भरा क्या ?
तेरा कुछ तो बिगड़ा नहीं,
हमारा भूगोल बदल गया।
इंसानियत को खा गयी,
और माहौल बिगड़ गया।
फिर भी तू भूखी है,
अरे तू कितनी भूखी है!
रोज मरते लखते जिगर ,
तेरी बद दियानत से,
ये खेल कैसे खेलती,
तू बहुत हैवानियत से ?
अब तो रहम कर दुनिया पे
ऐ बदजात सियासत !
जीने दो इंसान को
रहने दो अब इंसानियत।।
- रामजी तिवारी, जौनपुर
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