Poetry: सखी,सावन,विरह और बाढ़..!
नया सवेरा नेटवर्क
सखी,सावन,विरह और बाढ़..!
सखी री....!
तुम तो सब कछु जानत...
जब तक रही मैं कुँवारि री...!
सुन्दर सपन देखि-देखि,
नयनन मा ही...पिय को...!
भरि-भरि लेती...मैं अँकवार री...
अब जबकि नगर सासुरे मा...
झूम के आया सावन पहली बार री,
पिय पगला खुद ही सखी री...!
खुद को ...किए हुए है तड़ीपार री...
साँच कहूँ मैं तोसे सखी री,
मनवा बहुतइ हुआ उदास है...
यहि सावन मा कोऊ अपना...!
दिखता नहीं अब आस-पास है....
आ जाओ अब तुम ही पास सखी री,
विरह व्यथा कह-कह तुमसे....!
ले पाऊँ मैं कछु सांस री...
एक वेदना और बड़ी है सखी री,
बस तोसे कहूँ मैं...आज री...
मोर सजना तो अजब दिखे है,
एक तो जा कर परदेस बस्यो है
और....कहत यही हर बार री...
यहि देश में पगली आई है...!
नदियन मा...बहुत बड़ी बाढ़ री...
यहाँ ना कोई पुल ही बनो है,
ना चालत कोई नाव री....
ना कोई उड़न खटोला दीखे,
ना रेल चलत कोई सरकार री....
अब तुम ही सोचो प्यारी सखी री....!
पगला...जाने कौन सा देश बसा है..
जहाँ नाहीं कोऊ विकास री....
सखी...अब तो यहि सावन में...!
बस फोन संदेश देखि-देखि,
काटि रही हूँ...मैं दिन-रात री...
और...विरह अगनि के ताप से...!
मोरी देहिया जरि-जरि जात री...
सच मान तू प्यारी सखी री,
पागल बाउर लागत पियवा...वाको..
सावन-भादो...नहीं फरियात री....
सखी री...तुमहु भली जानत यह कि
बात मोरी यदि मानत पगला....!
जे बरखा से पहिले चलि आवत,
जियरा दुनहुन के हरियात री....
अब कौन बतावे यहि पगला के,
बरखा-बूनी तो एक तरफ,
नयन नीर के कारन भी....!
कछु आई है...नदियन मा बाढ़ री...
कौन बताए पिय को प्यारी,
मोर कजरा ही के बह जाने से....!
नदियन का पानी हो गयो गाढ़ री...
मान सखी तुम मोरी बतिया....
कबहुँ-कबहुँ मोहें ऐसो लागत,
कि परदेश मा पियवा के....!
कउनो प्रेम अउर हवे...प्रगाढ़ री...
औ..ना आवे के बस एक बहाना..!
हर बार बतावै नदियन की बाढ़ री...
यहि कठिन दौर मा...सखी री...!
तोसे विनती करूँ मैं दस बार री...
झट दौरि के चलि आव तू अब...!
मोरे सासुर वाले द्वार री....
झट दौरि के चलि आव तू अब....!
मोरे सासुर वाले द्वार री....
रचनाकार....
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ
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