Poetry: ख़ुद को ख्यातिलब्ध बताने की...!
नया सवेरा नेटवर्क
ख़ुद को ख्यातिलब्ध बताने की...!
जब कभी देखता हूँ....!
समाचार पत्रों में या पत्रिकाओं में
चिकित्सकों की राय-सलाह-परामर्श
पता नहीं क्यों, हो जाता है स्मृतिलोप
और...अंतर ही भूल जाता हूँ कि...
क्या होता है अर्श या फिर...!
क्या होता है फर्श....
प्रकाशित विषय-आर्टिकल में....!
रोग के दस सम्भावित लक्षणों में से
सात-आठ खुद-ब-खुद....
मेल खाते नजर आते हैं....और...
जो उपचार चिकित्सक सुझाते हैं...
उनमें से पाँच-सात पहले से ही...!
हम खुद ही आजमाएं होते हैं....
पथ्य भी जो सुझाए जाते हैं...!
उनमें से भी अधिकांश का,
देसज रूप से पालन...
हम पहले से ही किए हुए होते हैं...
ऐसी दशाओं में व्यग्र होकर,
छोटी-मोटी बीमारियों में भी....!
पाठक बहुत घबराता है...और...
अंदर ही अंदर कुढ़ता चला जाता है..
मित्रों...वैसे भी कहते हैं कि...
बुद्धि भय का कारण है....!
इसलिए भ्रमवश-भयवश...
भागकर वह लैब-पैथ में,
ढेर सारी जाँचें...ख़ुद ही करवाता है..
और...खुद ही विश्लेषण करता हुआ
नीम-हक़ीम-वैद्य-चिकित्सक..और..
साथ ही...खुद के लिए खतरा-ए-जान..
बन जाता है....और...!
भीतर-ही-भीतर से खुद को,
कमजोर बनाता है...क्योंकि....
गम्भीर बीमार होने का अज्ञात भय...
उसे हरपल-हरदम सताता है....
मित्रों अब प्रश्न इस बात का है कि
जब चिकित्सक और अस्पताल....!
दोनों ही उपलब्ध हैं चारों ओर....
फिर जरूरत क्या है...?
प्रकाशित हो राय इनकी...या फिर...
सन्देश- विज्ञापन इनका...!
टीवी-समाचार पत्र-सोशल मीडिया चट्टी-चौराहा,गली-गुच्चा हर ओर...
जब हर चीज को समझने वाले...
कायदे से सब कुछ समझाने वाले...
प्रशिक्षित लोग हमारे पास उपलब्ध हैं
फिर जरूरत क्या पड़ी है.....?
इन महानुभावो को....
प्रचार-प्रसार के माध्यम से...!
इतना सब कुछ बताने की....
और...जरूरत क्या पड़ी है... ?
किसी चिकित्सक को प्रचार-प्रसार कर
ख़ुद को ख्यातिलब्ध बताने की...!
ख़ुद को ख्यातिलब्ध बताने की...!
रचनाकार....
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ
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