Article: भारत पर ट्रंप का टैरिफ वार- भारत का झुकने से इनकार- विश्व के दिग्गज़ देश भारतीय समर्थन को तैयार?

ट्रंप क़े खिलाफ़ टैरिफ़ से पीड़ित देशों क़े एकजुट होनें से ट्रंप की मुश्किलें बनेगी?

दुनियाँ के सबसे ताकतवर देश से भारत दो-दो हाथ करने को तैयार -पीएम की हुंकार-व्यक्तिगत रूप से मुझे कोई कीमत चुकाने पड़ेगी तो मैं तैयार हूं- देश को पीएम पर नाज़ है!-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र

नया सवेरा नेटवर्क

गोंदिया महाराष्ट्र - वैश्विक स्तरपर पिछले कुछ दिनों से अमेरिका के राष्ट्रपति पूरी दुनियाँ में अपने टैरिफ़ की हुंकार भर रहे हैं, जिसको वह एक दबाव क़े अस्त्र के रूप में उपयोग कर,सभी देशों से अपने ढंग से अपनी शर्तों पर समझौता करवा कर उन्हें टैरिफ में छूट दे रहे हैं। जबकि जिस देश में अमेरिका का काम अड़ा हुआ है या कुछ जरूरी आपूर्ति के रूप में प्राप्त हो रहाहै तो उसे वह छोड़  रहे हैं।मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र ऐसा मानता हूं किअनेक देश उनके टैरिफ दबाव के कारण समझौते पर राजी हो गए हैं, परंतु भारत रूस से रक्षा उपकरण खरीदने तथा पशुपालन डेयरी फार्म, किसान व मछली उद्यम क्षेत्र सहित कुछ मुद्दों पर मुक्त व्यापार समझौता नहीं करने पर अड़ा हुआ है,जिसके कारण बात बहुत भयंकर हद तक बिगड़ गई है। दो दिन पूर्व 50 पेर्सेंट टैरिफ की घोषणा के बाद, अब 8 जुलाई 2025 को ट्रंप ने भारत के साथ ट्रेड पर कोई मीटिंग या बातचीत नहीं करने की घोषणा की है,यानें अब अमेरिका से आने वाला अधिकारियों का डेलिगेशन नहीं आएगा तथा अब भारत अमेरिका के साथ दो-दो हाथ करने को तैयार बैठा है, जिसपर ट्रंप सहित पूरा विश्व हैरान है कि, भारत ने इतने प्रभावशाली देश को तगड़ा जवाब कैसे दे दिया, भारत के पीछे उसके साथ कौन आकर खड़ा हो गया है? इत्यादि अनेक सवाल उठ गए हैं। बता दें 8 अगस्त 2025 को ही भारतीय पीएम ने रूस के राष्ट्रपति के साथ टेलीफोन पर वार्ता की, व रूसी राष्ट्रपति की शीघ्र ही भारत आने की संभावना है, तथा चीन ब्राजील इजरायल ईरान से भी भारत का समर्थन करने के इंडिकेशन प्राप्त हो रहे हैं। संभावना है कि भारतीय पीएम 31 अगस्त से 1 सितंबर 2025 शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन में भाग लेने व चीन रूस ब्राजील इत्यादि देशों से नतीजात्मक वार्ता जरूर होगी व रूस चीन भारत का ट्रायंगल बन सकता है, जो अमेरिका के लिए मुसीबतों का द्वार खोल सकता है, तो फिर निश्चित रूप से नोबेल शांति पुरस्कार पाने की चाहत को झटका लग सकता है। उधर पाक जनरल का अमेरिका के निरंतरण पर कुछ हफ्तों में दूसरी बार दौरा कर रहे हैं।इस बीच ट्रंप ने और अधिक टैरिफ बढ़ाने और अनेक पाबंदियां  लगाने का इशारा दे दिया है। बता दे उन्हें संसद से 500 पेर्सेंट तक टेरिफ लगाए जाने वाला बिल पास होने की संभावना है।चूँकि भारत पर ट्रंप का टैरिफ वार,भारत क़ा झुकाने से इनकार,विश्व के दिग्गज  देश भारतीय समर्थन को तैयार?इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, ट्रंप के टैरिफ पीड़ित देशों का समूह अगर एकजुट हुए तो ट्रंप की मुश्किलें बहुत अधिक बढ़ेगी? 

साथियों बात अगर हम टैरिफ मुद्दे पर भारत अमेरिका की तेजी से बढ़ती तकरार की करें तो, एक तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत से आयातित सामान पर टैक्स 25 से बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया है तो वहीं भारत ने ट्रंप के इस फैसले को पूरी तरह अनुच‍ित ,अन्‍यायपूर्ण और असंगत करार दिया, वहीं भारत क़े पीएम ने भी बिना नाम लिये अमेरिका को कड़ा संदेश दिया है।भारत के खिलाफ ट्रम्प के टैरीफ वार ने देश के 146 करोड़ लोगों को एकजुट कर दिया है। भारत ने अमेरिका को एक दोस्त मानते हुए बराबरी के रिश्ते को मजबूत करने की कोशिश की। लेकिन ट्रम्प भारत से व्यक्तिगत और व्यापारिक फायदे उठाना चाहते थे। आज हमारे देश में करीब 70 करोड़ लोग कृषि पर निर्भर है,करीब 3 करोड़ लोग मछलीपालन से जुड़े हुए है, जबकि 8 करोड़ परिवार ऐसे है जिनके पास गाय-भैंस है।आज इन सभी लोगों के हितों को बचाने केलिए पीएम लड़ रहे हैं। 

साथियों बात अगर हम टैरिफ मुद्दे पर अमेरिका से बढ़ते तकरार, बिगड़ते रिश्तों से भारत को विश्व के अनेक दिग्गज नेताओं का साथ होने की करें तो, टैरिफ वॉर पर अब चीन रूस ब्राजील इजरायल ईरान भारत के पक्ष में बात कर रहा है। भारत में चीन के राजदूत ने एक सोशल मीडिया पोस्ट शेयर करते लिखा है - गिव द बुली एन इंच, he विल टेक ए माइल, इसका सीधा मतलब- ये है कि अगर किसी धमकी देने वाले को आप ज़रा सी छूट देते हैं तो वो उसका पूरा फायदा उठाकर आपसे और ज्यादा हथियाने की कोशिश करेगा। इसे संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र का उल्लंघन बताया है। 

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साथियों बात अगर हम भारत अमेरिका के बीच बढ़ते तकरार को पांच मुद्दों में समझने की करें तो (1) ट्रंप ने स्पष्ट रूप से कहा है कि भारत के साथ व्यापार घाटा और अमेरिकी वस्तुओं की बाज़ार पहुंच पर बाधाओं के कारण उन्हें भारत पर ज्यादा टैरिफ लगाना पड़ा है (2) पाकिस्तान के खिलाफ संघर्ष विराम का दावा नहीं मानना- ट्रंप लगातार यह दावा कर रहे हैं कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान संघर्ष को रुकवाया,वह ये दावा कम से कम 25 बार तो कर ही चुके हैं लेकिन भारत इन दावों को बार-बार खारिज करता रहा है।(3)ब्रिक्स को लेकर भी हैं खफा- ब्रिक्स लेकर भी भारत को निशाना बना रहे हैं क्योंकि ब्रिक्स देशों की नीतियां अमेरिकी डॉलर की वैश्विक स्थिति को चुनौती देती हैं। ब्रिक्स समूह (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका और हाल में जुड़े कुछ अन्य देश) वैश्विक जीडीपी का 40% तक योगदान करता है. इन देशों का आपसी व्यापार बढ़ना. डॉलर की जगह अन्य करेंसी विकल्पों की चर्चा ट्रंप को असहज कर रही है,(4) यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद भारत ने रूसी तेल का आयात काफी बढ़ाया है. अब भारत अपनी कुल जरूरतों का करीब 36-40% तेल रूस से आयात करता है. इससे भारत को रियायती दरों पर तेल मिलता है. महंगाई नियंत्रित रहती है, लेकिन पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका में इसकी आलोचना हुई,ट्रंप का मानना है कि भारत रूस से भारी मात्रा में तेल खरीदकर ‘रूसी वॉर मशीन’ को मदद कर रहा है, जिससे यूक्रेन में भयंकर युद्ध चला आ रहा है। 

साथियों बात अगर हम भारतीय पीएम के व्यक्तिगत नुकसान को भी सहन करने के बयान का विश्लेषण करें तो,उन्होंनेअमेरिका के टैरिफ के मुद्दे पर कहा है कि व्यक्तिगत रूप से मुझे कोई कीमत चुकानी पड़ेगी तो मैं तैयार हूं-तो यह एक राजनीतिक और कूटनीतिक बयान है, जिसमें "व्यक्तिगत कीमत"का मतलब सीधे पैसे से नहीं, बल्कि राजनीतिक,कूटनीतिक,और छवि संबंधी नुकसान से होता है। उनके लिए ऐसी संभावित व्यक्तिगत कीमतें इस प्रकार हो सकती हैं:(अ) राजनीतिकप्रतिष्ठा पर असर (1)घरेलू राजनीति में आलोचना कि अमेरिका से टकराव के कारण व्यापार, निवेश या तकनीकी सहयोग में कमी आई। (2)विपक्ष का यह आरोप कि प्रधानमंत्री की नीतियों से देश की अर्थव्यवस्था या कूटनीतिक रिश्ते बिगड़े। (3) अंतरराष्ट्रीय मंचों पर “कठोर” या “जिद्दी” छवि बनने से लचीले नेता की छवि कमजोर होना।(ब) कूटनीतिक पूंजी की हानि:-(1) अमेरिका जैसे रणनीतिक साझेदार के साथ व्यक्तिगत संबंधों में ठंडापन आना। (2) अन्य पश्चिमी देशों में भारत के लिए लॉबिंग क्षमताघटना,क्योंकि अक्सर नेता-से-नेता भरोसा महत्वपूर्ण होता है।(3) अंतरराष्ट्रीय वार्ताओं में समर्थन कम मिलना (जैसे जलवायु परिवर्तन, यूएनएससी स्थायी सदस्यता आदि)(स)आर्थिक विकास एजेंडे पर दबाव (1)यदि अमेरिकी टैरिफ के कारण भारत के निर्यात पर नकारात्मक असर पड़ा, तो विकास, रोजगार और विदेशी निवेश के लक्ष्यों पर चोट लगना-इसका राजनीतिक दोष सीधे प्रधानमंत्री पर आना।(2) वैश्विक कंपनियों का निवेश निर्णय टलना या शिफ्ट होना, जिससे "मेक इन इंडिया" जैसी योजनाओं की गति प्रभावित होना। (क़) व्यक्तिगत छवि का अंतरराष्ट्रीय मीडिया में गिरना:- (1) विदेशी मीडिया में "अमेरिका से रिश्ते खराब करने वाले नेता" के रूप में चित्रण।(2)निवेशकों और वैश्विक राजनैतिक विश्लेषकों के बीच विश्वास में कमी (3)“वैश्विक डीलमेकर” की ब्रांडिंग पर असर। (5)ज़ी-20 और वैश्विक नेतृत्व भूमिकाओं पर असर:-(1)भविष्य में बड़े मंचों पर भारत की मेजबानी या नेतृत्व भूमिका में अमेरिका का कम समर्थन। (2) वैश्विक मुद्दों पर भारत की आवाज़ कमज़ोर पड़ना, जिससे मोदी कीव्यक्तिगत प्रतिष्ठा घट सकती है। (6)चुनावी रणनीति पर प्रभाव:-(1)यदि टैरिफ वार के कारण महंगाई, बेरोज़गारी या व्यापार घाटा बढ़ा, तो विपक्ष इन मुद्दों को चुनावी हथियार बना सकता है। (2) ग्रामीण और औद्योगिक क्षेत्रों के वोटरों में असंतोष-खासकर यदि कृषि, डेयरी या टेक सेक्टर प्रभावित हों। (फ़) व्यक्तिगत रिश्तों में ठंडापन:-(1)डोनाल्ड ट्रंप जैसे नेताओं के साथ जो "दोस्ती" वाली राजनीतिक तस्वीरें बनीं, वे कमजोर होना(2)भविष्य की निजी मुलाकातों या त्वरित फोन डिप्लोमेसी में कठिनाई बढ़ना। 

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारत पर ट्रंप का टैरिफ वार- भारत का झुकने से इनकार- विश्व के दिग्गज़ देश भारतीय समर्थन को तैयार?ट्रंप क़े खिलाफ़ टैरिफ़ से पीड़ित देशों क़े एकजुट होनें से ट्रंप की मुश्किलें बनेगी?दुनियाँ के सबसे ताकतवर देश से भारत दो-दो हाथ करने को तैयार-पीएम की हुंकार- व्यक्तिगत रूप से मुझे कोई कीमत चुकाने पड़ेगी तो मैं तैयार हूं- देश को पीएम पर नाज़ है!

-संकलनकर्ता लेखक - क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यम सीए (एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र 9226229318

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