Poetry: न घिरते घन घटा काली जो ये सावन नहीं आता
न घिरते घन घटा काली जो ये सावन नहीं आता
न घिरते घन घटा काली जो ये सावन नहीं आता।।
ये हरियाली नहीं आती अगर सावन नहीं आता।।
धरा ये धानी चूनर ओढ़ कर दुल्हन नहीं बनती-
न बनते मेघ दुल्हा तो मगन सावन नहीं आता।।
बरसते मेघ काले काले हैं घनघोर सावन में।।
धरा पुलकित है हरियाली घिरी चहुँ ओर सावन में।।
मगन मन झूम कर दादुर पपीहा गीत गाते हैं-
थिरकते नाचते मस्ती में देखो मोर सावन में।।
खुशी की लेकर के आई है प्रकृति अम्बार सावन में।।
बरसने के लिए ब्याकुल हैं घन बेजार सावन में।।
मनोहर दिव्य हरियाली हृदय को मोह लेती है-
प्रफुल्लित है धरा पुलकित किया श्रृंगार सावन में।।
सघन घन आ गये लेकर सुखद बौछार सावन में।।
चले आना नहीं करना प्रिये इन्कार सावन में।।
बरसने वाले हैं बादल घटा घनघोर छाई है- बादल
करेंगे झूम कर मनुहार फिर इस बार सावन में।।
यकीनन जल ही जीवन का सुखद आधार सावन में।।
बरस कर मेघ काले हैं किये उपकार सावन में।।
मिली तृप्ति तपिश से दूर जीवन खिल उठा तन मन-
सभी अलमस्त जड़ चेतन सुखी संसार सावन में।।
गिरीश, जौनपुर।
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