गोंदिया में साईं झूलेलाल व बाबा खाटूश्याम जी का अदभुत मिलन -सामाजिक समरसता की मिसाल कायम - भक्तों का सैलाब उमड़ा

साईं झूलेलाल चालीसा महोत्सव 16 जुलाई से 25 अगस्त 2025- झूलेलाल मंदिर में बाबा श्यामखाटू जी भजन समिति का भव्य भजन कीर्तन संध्या 

दो सामाजों की आध्यात्मिक आस्था का प्रतीक साईं झूलेलाल व बाबा श्याम खाटू जी के कृपा पात्र साधकों भक्तों संगतो का सराहनीय भाव भक्ति प्रेम उमड़ पड़ा- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र

नया सवेरा नेटवर्क

गोंदिया की पावन धरती पर 23 अगस्त 2025 में एक ऐसा दृश्य उपस्थित हुआ जिसने न केवल स्थानीय भक्तों को,बल्कि देशभर के लोगों को सामाजिकसमरसता और आध्यात्मिक आस्था के अद्भुत संगम का संदेश दिया। यह अवसर था साईं झूलेलाल चालीसा महोत्सव का, जो 16 जुलाई से 25 अगस्त 2025 तक चलने वाला है। इस महोत्सव की गरिमा और भव्यता 23 जुलाई 2025 को चरम पर पहुँची जब गोंदिया के प्रसिद्ध झूलेलाल मंदिर में बाबा श्याम खाटूजी भजन समिति द्वारा एक अनुपम भजन-कीर्तन संध्या का आयोजन हुआ। इस अवसर पर साईं झूलेलाल और बाबा श्याम के दिव्य नामों का संगम हुआ और भक्ति रस में सराबोर भक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र, ग्राउंड रिपोर्टिंग के लिए उपस्थित था और देख़ा कि यह अद्वितीय आयोजन केवल धार्मिक भावनाओं का संचार नहीं कर रहा था, बल्कि समाज में प्रेम, एकता और भाईचारे की मिसाल पेश कर रहा था। झूलेलाल और खाटू श्याम जी, दोनों ही संत-देव रूप में पूजे जाते हैं और उनकी शिक्षाओं का मूल तत्व है-सत्य, सेवा, समर्पण और समरसता। जब दो अलग-अलग परंपराओं के भक्त एक मंच पर, एक स्वर में भजन-कीर्तन गाते हैं, तब यह केवल ईश्वर की आराधना नहीं होती, बल्कि यह इंसानों के दिलों को जोड़ने का कार्य भी करती है।यही दृश्य गोंदिया में उस शाम को देखने को मिला, जब हर जाति, हर समाज, हर वर्ग के लोग एक साथ बैठे और प्रेम व आस्था के गान में शामिल हुए। 

साथियों बात कर हम भारत की सांस्कृतिक परंपरा की करें तो, सबसे बड़ी शक्ति उसकी विविधता में एकता रही है। यहाँ अलग-अलग समुदाय,संप्रदाय और आस्थाएँ होने के बावजूद समाज में गहरी आत्मीयता देखने को मिलती है। झूलेलाल, जिन्हें सिंधी समाज का इष्टदेव माना जाता है, और बाबा खाटू श्याम जी, जिन्हें राजस्थान व उत्तर भारत के लाखों लोग श्रद्धा से पूजते हैं, दोनों ही आस्था के ऐसे केंद्र हैं जिनके भक्त केवल किसी खास क्षेत्र तक सीमित नहीं हैं। जब इन दोनों आस्थाओं का गोंदिया में मिलन हुआ तो यह एक "मिनी भारत" का दृश्य प्रस्तुत कर रहा था। 

साथियों बात अगर हम जय घोष के नारों की करें तो भजन -कीर्तन संध्या में जब भक्तगण "जय झूलेलाल" और "श्याम तेरी भक्ति ने बड़ा कमाल किया" जैसे स्वर में गूँज रहे थे,तब वातावरण में एक अलौकिक ऊर्जा का संचार हो रहा था। इस ऊर्जा ने केवल मंदिर परिसर को ही नहीं, बल्कि आसपास के समाज को भी एक सकारात्मक संदेश दिया कि धर्म का वास्तविक उद्देश्य है मानवता का उत्थान और प्रेम का विस्तार। गोंदिया की इस घटना ने यह सिद्ध कर दिया कि जब समाज प्रेम और श्रद्धा के पथ पर चलता है तो जाति-धर्म की दीवारें स्वतः गिर जाती हैं और केवल इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म बन जाती है, जो रेखांकित करने वाली बात है। 

साथियों बात अगर हम दोनों सामाजिक शक्तियों के कुल गुरुओं की शिक्षा की करें तो,साईं झूलेलाल और बाबा खाटू श्याम जी की शिक्षाओं में भी यही भाव छिपा हुआ है। झूलेलाल जी ने सदियों पहले सिंध की धरती पर जल और जीवन की रक्षा करते हुए समाज को एकता और भाईचारे का संदेश दिया। उनका नाम आते ही "जल ही जीवन है" और "समानता" की धारा स्मरण हो उठती है। वहीं, बाबा श्याम खाटू जी महाभारतकालीन बर्बरीक के रूप में करुणा और दानवीरता के प्रतीक माने जाते हैं। उनका संदेश है कि सच्चा भक्त वही है जो अपना सर्वस्व लोक कल्याण के लिए अर्पित कर दे। जब दोनों संत-देव रूपों के संदेश एक मंच पर मिलते हैं तो यह समाज के लिए किसी दिव्य वरदान से कम नहीं होता।

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साथियों बात अगर हम इस आधुनिक जीवन में आध्यात्मिकता की करें तो, आज का समय भले ही तकनीक और भौतिकता की ओर तेजी से बढ़ रहा हो, लेकिन मनुष्य की आत्मा को शांति केवल भक्ति, सेवा और सामाजिक समरसता में ही मिलती है। यही कारण है कि गोंदिया का यह आयोजन हर दृष्टि से ऐतिहासिक और अनुकरणीय बन गया। यहाँ हर वर्ग के लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ आए, भोजन-प्रसाद ग्रहण किया, और भक्ति संगीत में डूबकर यह साबित किया कि सच्चा आनंद केवल साझा अनुभव में ही है।आस्था और अध्यात्म के ऐसे आयोजनों का सबसे बड़ा महत्व यह है कि ये समाज में तनाव, ईर्ष्या और विभाजन को कम करते हैं और लोगों के बीच आत्मीयता की भावना को मजबूत बनाते हैं। भजन-कीर्तन संध्या केवल धार्मिक रस्म नहीं है, यह एक सामाजिक क्रांति है जो यह बताती है कि एकता और प्रेम ही जीवन की सच्ची पूँजी हैं 

साथियों बात अगर हम सामाजिक समरसता को खुशियों का प्रतीक माननें की करें तो, समृद्ध तथा इतिहास गवाह है कि जब-जब समाज ने धार्मिक समरसता को अपनाया है, तब-तब उसने विकास, शांति और समृद्धि की ओर कदम बढ़ाए हैं। गोंदिया का यह आयोजन भी उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसने यह स्पष्ट किया कि चाहे हम किसी भी समाज या समुदाय से हों, हमारे ईश्वर अलग हो सकते हैं, परंतु हमारी आत्मा और हमारी भावनाएँ एक ही हैं। 

साथियों मैंनें उपरोक्त पूरे आयोजन का विश्लेषण किया तो मैंने पाया कि (1) झूलेलाल और खाटू श्याम जी की ऐतिहासिक- धार्मिक पृष्ठभूमि-साईं झूलेलाल जी को सिंध वे जल और जीवन के संरक्षक देवता के रूप में पूजे जाते हैं और "उदरोलाल" या "वरुणावतार" कहे जाते हैं। उनकी कथा सिंध नदी से जुड़ी है, जहाँ उन्होंने समाज को एकता, साहस और न्याय का संदेश दिया। दूसरी ओर, खाटू श्याम जी महाभारत के वीर बर्बरीक का ही रूप हैं, जिन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को अपना शीश अर्पित कर लोककल्याण की मिसाल पेश की। यह ऐतिहासिक पृष्ठभूमि बताती है कि दोनों ही देव रूपों का सार है- त्याग, आस्था और समाजहित।(2) दोनों आस्थाओं की शिक्षा का तुलनात्मक विशेषण- झूलेलाल जी का उपदेश है-सभी धर्मों का सम्मान करो और समाज में समानता स्थापित करो। उनकी आराधना जल, जीवन और शांति से जुड़ी है। वहीं, खाटू श्याम जी का मूल संदेश है कि सच्ची भक्ति वही है जो अहंकार छोड़कर ईश्वर को अपना सर्वस्व अर्पित करती है। दोनों आस्थाओं का मिलन इस तथ्य को मजबूत करता है कि चाहे रास्ते अलग हों, परंतु गंतव्य एक ही है-मानवता की सेवा और ईश्वर का स्मरण। (3) गोंदिया के आयोजन की विशेषताएं और समाज पर प्रभाव-गोंदिया में आयोजित इस भजन-कीर्तन संध्या की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इसमें हर जाति और वर्ग के लोग शामिल हुए। मंदिर का वातावरण केवल धार्मिक केंद्र नहीं रहा, बल्कि यह सामाजिक एकता का मंच बन गया। इस आयोजन से समाज में भाईचारे की भावना मजबूत हुई और लोगों ने महसूस किया कि भक्ति का असली आनंद साझा अनुभव में है। (4) सामाजिक समरसता का महत्व भारतीय संविधान और संस्कृति के संदर्भ में-भारतीय संविधान "समानता", "धर्मनिरपेक्षता" और "बंधुत्व" के सिद्धांतों पर आधारित है। वहीं, भारतीय संस्कृति सदियों से "सर्व धर्म समभाव" और "वसुधैव कुटुम्बकम्" की धारा बहाती आई है। जब साईं झूलेलाल और खाटू श्याम के भक्त एक मंच पर मिलते हैं, तो यह संविधान की आत्मा और भारतीय संस्कृति की परंपरा दोनों का जीवंत उदाहरण बनता है। यह आयोजन संविधानिक मूल्यों और सांस्कृतिक विरासत का समन्वय प्रस्तुत करता है। (5) आधुनिक समाज में ऐसे आयोजन की प्रासंगिकता-आज का समय तेजी से बदल रहा है। भौतिकवाद, तनाव और सामाजिक विभाजन बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे दौर में झूलेलाल और खाटू श्याम जी जैसे आस्था- आधारित आयोजनों का महत्व और बढ़ जाता है। यह न केवल मानसिक शांति देते हैं, बल्कि समाज को यह भी सिखाते हैं कि सच्ची ताकत प्रेम, सेवा और सामूहिक भक्ति में है। इन आयोजनों से लोगों के बीच संवाद, सहयोग और सहिष्णुता की भावना पनपना (6)"वसुधैव कुटुम्बकम्" और "सर्वधर्म समभाव" की परंपरा-भारतीय दर्शन का मूल मंत्र है-"वसुधैव कुटुम्बकम्" अर्थात पूरी दुनिया एक परिवार है। इसी प्रकार,"सर्व धर्म समभाव" की परंपरा यह सिखाती है कि सभी धर्म समान हैं और प्रत्येक आस्था का सम्मान होना चाहिए। गोंदिया का यह आयोजन इन दोनों ही आदर्शों का प्रत्यक्ष उदाहरण है, जहाँ अलग-अलग परंपराओं के भक्त एक साथ आए और प्रेम व भाईचारे का वातावरण निर्मित किया। यह बताता है कि भारत की असली ताकत उसकी विविधता में छिपी एकता ही है।

अतः अगर हम अपने पूरे विवरण का अध्ययन करें इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि गोंदिया में साईं झूलेलाल व बाबा खाटू श्याम जी का अदभुत मिलन-सामाजिक समरसता की मिसाल कायम- भक्तों का सैलाब उमड़ा साईं झूलेलाल चालीसा महोत्सव 16 जुलाई से 25 अगस्त 2025-झूलेलाल मंदिर में बाबा श्यामखाटू जी भजन समिति का भव्य भजन कीर्तन संध्या।दो सामाजों की आध्यात्मिक आस्था का प्रतीक साईं झूलेलाल व बाबा श्याम खाटू जी के कृपा पात्र साधकों भक्तों संगतो का सराहनीय भाव भक्ति प्रेम उमड़ पड़ा।

-लेखक-क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यम सीए (एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र 9356653465


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