Jaunpur News: सातवीं मोहर्रम का वाकया
नया सवेरा नेटवर्क
मड़ियाहूं, जौनपुर। आज ही का दिन था जब बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक, बुज़ुर्गों से लेकर औरतों तक पर तपती कर्बला की रेत में पानी बन्द कर दिया गया था। 7वीं मोहर्रम, 61 हिजरी। कर्बला की तपती ज़मीन पर बैठे हज़रत हुसैन और उनके चंद साथियों ने वह देखा, जो सारी इंसानियत को शर्मसार करने वाला था। अब तक यज़ीद की फौजों ने चारों तरफ से कर्बला को घेर लिया था मगर 7वीं मोहर्रम से पहले तक एक रास्ता खुला था, दरिया ए फ़रात का। यही एकमात्र सहारा था उन बच्चों, औरतों, बूढ़ों और ज़ख़्मी मर्दों के लिए जो हज़रत हुसैन के साथ थे।
7वीं मोहर्रम को उमर बिन सअद ने यज़ीद की तरफ से हुक्म दिया कि “हुसैन को पानी से महरूम कर दो।” बस, इसके बाद नहर पर पहरा बिठा दिया गया। सैकड़ों सवार और तीरंदाज़ अब इस बात की निगरानी कर रहे थे कि कोई एक कतरा भी पानी हज़रत हुसैन के खेमे तक न पहुँच सके। जंग भला ऐसे होती थीं,यह तो जंग के मयार से भी गिरना था। लड़ाई से पहले बच्चों की प्यास से उनका हौसला तोड़ने की कोशिश की गई। मगर हज़रत हुसैन और उनके साथियों ने न तो शिकायत की और न ही मिन्नतें की, न ही ज़ालिम के सामने नरमी मांगी, उन्होंने सब्र किया। यही सब्र यज़ीद की सत्ता के सामने सबसे बड़ा सवाल बन गया। यही सब्र तो था जो कर्बला को रहती दुनिया तक जिंदा करने वाला था। बच्चे प्यास से तड़प रहे थे, सकीना ने माँ से पूछा 'अम्मी, पानी कब मिलेगा?' माँ की आँखों से आँसू निकल पड़े, मगर होंठ खामोश रहे।
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सब्र की चादर ने उन्हें ढक लिया। अली असग़र की छाती पर माँ का हाथ था। धड़कन धीमी थी, और दूध का नामो-निशान नहीं। न दूध,न पानी,सिर्फ थी भूख और सब्र का कभी न ख़त्म होने वाला मैदान ए कर्बला। अब्बास, जिन्हें लोग शेर-ए-कर्रार कहते थे, बस एक मश्क उठाते बैठते रहे। उनमें इतनी क़ुव्वत थी कि वह लड़कर सीना चीरकर पानी ले आते मगर इजाज़त नहीं थी, वर्ना पानी लेकर भी आते और पहरेदारों को बहा भी लाते। हज़रत इमाम हुसैन का हुक्म साफ़ था, 'पहले सब्र करो, फिर जंग।' यह सब्र का इम्तेहान है। यह वस्फ़ का इम्तेहान है। यह ज़ालिम के सामने न झुकने का इम्तेहान है ।कर्बला दुनिया के लिए एक सबक़ बनने जा रहा है, यह उसका इम्तेहान है। 7वीं मोहर्रम को इतिहास ने वो मंज़र देखा जहां पानी को हथियार बना लिया गया, और बच्चों की प्यास को जंग की रणनीति। यज़ीद इसलिए बदतरीन कहलाया,क्योंकि उसने पानी पर पहरा बैठाया। उसे लगता था कि प्यास की तड़प सबको झुका देगी। जब बच्चे पानी पानी कहकर चीखेंगे,तब यह पिघल उठेंगे मगर भूल गया वह की सामने कौन है? किसी ने इसकी तरफ पानी नही मांगा,दरिया ए फ़रात ख़ुद तड़प रहा था मगर मजाल है कि किसी ने सब्र का दामन छोड़ा हो।
आज वहीं सातवीं मोहर्रम है। जब पानी बन्द हुआ था। दुनिया में ज़ालिम की एक पहचान और उभरी की वह पानी पर पहरा बैठाएगा। बच्चों, औरतों, बूढ़ों, जवानों के गले सुखाएगा। पालतू जानवरों तक कि गर्दनों पर पहरा होगा। कर्बला ने यह लकीर खींच दी कि इतने के बावजूद,ज़ुल्मी को जीत हाथ न आएगी। वह बदबख्त कहलाएगा और सब्र करने वाला ज़माने ज़माने में याद किया जाएगा। आज वही सातवीं तारीख़ है। हमारी वह रवायत जो हमें ज़ुल्मी के ख़िलाफ़ किसी भी हद तक खड़े रहने का सबक देती है। कर्बला हमारा ऐसा सिलेबस है, जो हमे हमेशा तैयार रखता है, ज़ुल्म के खिलाफ और इंसाफ के लिए,सच और सब्र का साथ... यही हमारी तारीख है।
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