गुरु पूर्णिमा पर्व 10 जुलाई 2025: गुरुवार और गुरु पूर्णिमा का संयोग अत्यंत दुर्लभ और अत्यधिक शुभ माना जाता है...
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।
गुरु के चरणों में अपने समस्त अहंकार,घमंड,अभिमान,भ्रष्टाचारी मानसिकता अर्पित कर दें यही हमारी सच्ची गुरु दक्षिणा होगी- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
नया सवेरा नेटवर्क
साथियों बात अगर हम इस बार गुरु पूर्णिमा की करें तो, अबकी बार बहुत ही अद्भुत संयोग बना है। दरअसल इस बार गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुवार है। गुरुवार 10 जुलाई को गुरु पूर्णिमा का पर्व इस बार मनाया जा रहा है। पूर्णिमा पर भगवान विष्णु और उनके विभिन्न स्वरूपों की पूजा का सबसे ज्यादा महत्व शास्त्रों में बताया गया है। तो अब अबकी बार गुरु पूर्णिमा गुरुवार को होने से इसका महत्व और बढ़ गया है। इस शुभ अवसर पर यदि आप अपने घर में सत्यनारायण भगवान की कथा करवाते हैं तो आपको इसका कई गुना लाभ होगा। तो आइए जानते हैं गुरु पूर्णिमा पर घर में सत्यनारायण कथा करवाने के लाभ।गुरुवार और गुरु पूर्णिमा का संयोग अत्यंत दुर्लभ और अत्यधिक शुभ माना जाता है। जब गुरुवार, जो कि बृहस्पति ग्रह और विष्णु भगवान को समर्पित दिन होता है, और गुरु पूर्णिमा, जो ज्ञान, उपासना और श्रद्धा का पर्व है, एक साथ आते हैं, तो यह काल धार्मिक अनुष्ठानों के लिए सर्वश्रेष्ठ हो जाता है।
साथियों बात अगर हम गुरु शिष्य परंपरा की करें तो,गुरु-शिष्य परम्परा आध्यात्मिक ज्ञान को नई पीढ़ियों तक पहुंचाने का सोपान है। भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परम्परा के अन्तर्गत गुरु अपने शिष्य को निस्वार्थ भाव से शिक्षा देता है। जिसके बदले में शिष्य अपने गुरु को शिक्षा समाप्त होने पर गुरुदक्षिणा देता है। बाद वही शिष्य अपने गुरु के बताये हुए मार्गदर्शन पर चलकर समाज सेवा करता है। या फिर गुरु बनकर दूसरों को शिक्षा देता है। जिससे यह कर्म चलता रहता है। गुरु-शिष्य की यह परम्परा ज्ञान के किसी भी क्षेत्र में हो सकती है। जैसे अध्यात्म, संगीत, कला, वेदाध्ययन, वास्तु ,विज्ञान, चिकित्सा आदि। प्राचीन समय में गुरु आश्रमों में अपने शिष्यों को शिक्षा दिया करते थे। उस समय उनके बीच मधुर सम्बन्ध हुआ करते थे। प्राचीन समय में गुरु शिष्य के बीच अगाध प्रेम हुआ करता था। शिष्य अपने गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा व समर्पण का भाव रखता था। गुरु निस्वार्थ भाव से अपने शिष्य को शिक्षा दिया करते थे। गुरु और शिष्य के बीच केवल शाब्दिक ज्ञान का ही आदान प्रदान नहीं होता था बल्कि गुरु अपने शिष्य के संरक्षक के रूप में भी कार्य करता था।अतः गुरु कभी भी अपने शिष्य का अहित नहीं चाहता है। वह हमेशा अपने शिष्य का भला सोचता है। शिष्य का यही विश्वास गुरु के प्रति उसकी अगाध श्रद्धा और समर्पण का कारण रहा है।
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साथियों बात अगर हम वर्तमान परिपेक्ष्य की करें तो जितना माता-पिता और आचार्य को देव समझने वाली इस भव्य भारतीय संस्कृति का गुणगान किया जाए उतना ही कम है परंतु वर्त्तमान समय में यह स्थिति बिल्कुल उलट है। आज आश्रमों की जगह स्कूल कॉलेज ने ले ली है। और गुरु शिष्य का सम्बन्ध वैसा नहीं रहा जैसा प्राचीन समय में रहता था। आज गुरु शिष्य के सम्बन्ध सही नहीं है। और गुरु शिष्य का सम्बन्ध स्वार्थ से पूर्ण हो गया है। गुरु शिष्य परम्परा समाप्त सी हो गयी है।इस कराल काल में आज भौतिकवाद के प्रभाव में व्यक्तिवादी भोगवादी तथा स्वार्थपरायणता का तांडव नृत्य हो रहा है वहां मानव जीवन में इन दिव्य और उदार विचारों की विलुप्तता की ओर कदम बढ़ाने को रेखांकित करना जरूरी है। कदाचित कुछ संस्कारी परिवार उपरोक्त संस्कृति के श्लोकों और विचारों का सिंचन अपनी पीढ़ी में करते भी होंगे परंतु पाश्चात्य संस्कृति के बदलते प्रभाव को रोकने के लिए बड़े बुजुर्गों बुद्धिजीवियों को आगे आकर जागरूक करने और एक्शन उठाने का समय आ गया है।
साथियों बात अगर हम गुरु के महत्व की करें तो, गुरु कोई साधारण इंसान नहीं होता है। गुरु ही एक जरिया है जिसके बताये हुए पद चिन्हो पर चलने से कठिन से कठिन मुकाम को हासिल किया जा सकता है। इसीलिए हमेशा गुरु का पूर्ण सम्मान करे। गुरु की आज्ञा का पालन करना चाहिए। एक गुरु ही हमें समाज में अपनी पहचान बनाने की शिक्षा देता है। प्राचीन समय से लेकर वर्तमान तक गुरु का स्थान सर्वोपरि रहा है। जीवन में अगर गुरु का आशीर्वाद हो तो बड़ी से बड़ी कठिनाईयों से मुकाबला किया जा सकता है।
साथियों जिस तरह एक बच्चे की माँ उसकी प्रथम गुरु होती है जिसे वो खाना पीना, बोलना, चलना, आदि तौर तरीके सिखाती है। ठीक उसी तरह गुरु अपने शिष्य को जीवन जीने का तरीका बताता है। उसे सफलता के हर वो पहलु बताता है जो उसके लिए उपयुक्त हो। इस संसार सागर में सफलता पाने के लिए हर किसी को गुरु की आवश्यकता होती है। गुरु के बिना सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती है। एक गुरु ही होता है जो निस्वार्थ भाव से अपने शिष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। तभी तो गुरु शब्द में ”गु” का अर्थ अंधकार (अज्ञान) और ”रु” का अर्थ प्रकाश (ज्ञान) होता है। भारतीय संस्कृति में गुरु का बहुत महत्व है। इसीलिए गुरु को ‘ब्रह्मा-विष्णु-महेश’ कहा गया है तो कहीं ‘गोविन्द’। इस दुनिया में ऐसा कोई इंसान नहीं है जो बिना गुरु के सफल हुआ हो। यदि डॉक्टर, वकील, इंजीनियर समाज सेवक,ट्रेनर,सैनिक, आदि बनाना चाहते है तो इसके लिए आपको उसी क्षेत्र के एक गुरु की आवश्यकता होती है। यही गुरु आपको सफलता के द्वार तक लेकर जाता है,इसीलिए हमेशा गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा होनी चाहिए। गुरु के बिना जीवन अपूर्ण है। आपको कोचिंग,स्कूल, कॉलेज, खेल,आदि जगह पर गुरु की आवश्यकता पड़ती है। अतः गुरु के महत्व को समझे। गुरु के सेवा करे। इसीलिए हमें चाहिए के गुरु के चरणों में अपने समस्त अहंकार घमंड अभिमान भ्रष्टाचारी मानसिकता अर्पित कर दें यही सच्ची गुरु दक्षिणा होगी।
साथियों बात अगर हम गुरु द्रोणाचार्य भगत एकलव्य विवेकानंद अर्जुन की करें तो, द्रोणाचार्य को युद्ध भूमि में जब अर्जुन ने अपने सामने प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा तो उसने युद्ध लड़ने से इंकार कर दिया। यह अर्जुन के शिष्य के रूप में द्रोणाचार्य के प्रति प्रेम व सम्मान का भाव था। इसी प्रकार जब एकलव्य से गुरु द्रोणाचार्य ने प्रश्न किया कि तुम्हारा गुरु कौन है, तब उसने कहा- गुरुदेव आप ही मेरे गुरु हैं तब द्रोणाचार्य ने कहा- पुत्र तब तो तुमको मुझे दक्षिणा देना होगी। तब गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से दाहिने हाथ का अँगूठा माँगा। एकलव्य ने सहर्ष अपना अँगूठा काटकर गुरु के चरणों में रख दिया। विवेकानंद ने अपने गुरु के आदेश से पूरे विश्व में सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार किया। छत्रपति शिवाजी अपने गुरु के आदेशानुसार शेरनी का दूध निकालकर ले आए और गुरुदक्षिणा के रूप में पूरे महाराष्ट्र को जीतकर अपने गुरु के चरणों में रख दिया था। यह बुद्ध का ही असर था कि अंगुलिमान जैसा क्रूर डाकू भी भिक्षु बन गया। ऐसा होता है गुरु का सामर्थ्य।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि गुरु पूर्णिमा पर्व 10 जुलाई 2025-गुरुवार और गुरु पूर्णिमा का संयोग अत्यंत दुर्लभ और अत्यधिक शुभ माना जाता है।गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।गुरु के चरणों में अपने समस्त अहंकार घमंड अभिमान भ्रष्टाचारी मानसिकता अर्पित कर दें यही हमारी सच्ची गुरु दक्षिणा होगी।
-संकलनकर्ता लेखक-क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यम सीए (एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र 9359653465
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