विश्व का पहला कृषि आतंकवाद - कोविड-19 महामारी नें जैसे इंसानों को नष्ट किया वैसे फंगस फसलों को बर्बाद कर देता है | Naya Sabera Network
चीनी साजिश पर दुनियाँ हैरान- अमेरिका को भूख मारने का था प्लान-फंगस के ज़रिए,अनाज, खाद्य पदार्थ,फसलों को बर्बाद करना था प्लान
आधुनिक आतंकवाद व युद्ध, मानवीय जीवन की मृत्यु, फसलों भोजन स्वास्थ्य संपत्तियों भूमि पानी हवा व पर्यावरण यहां तक कि सभ्यता का भी विनाश करता है जो दुखदाई है-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
नया सवेरा नेटवर्क
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साथियों बात अगर हम कृषि आतंकवाद को समझने की करें तो, सरल शब्दों में कहें तो जैविक एजेंटों का इस्तेमाल करके पूरी की पूरी फसल बर्बाद करना ही एग्रो टेररिज्म है, यह कृषि प्रणालियों में बीमारियों या कीटों या अन्य हानिकारक जैविक एजेंटों को व्यापक नुकसान पहुंचाने के इरादे से डालने का कार्य है,ऐसे कार्य का एकमात्र मकसद खाद्य श्रृंखला को टारगेट करना है मकसद है, अर्थव्यवस्था को तबाह करना और सामाजिक अशांति पैदा करना, इसमें पकड़े जाने की संभावना जीरो है और कम लागत में यह बड़ा मकसद को पूरा करती है, एग्रो टेररिज्म के दूरगामी प्रभाव होते हैं, खासकर उन देशों के लिए जिनकी अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है, इसे बहुत प्रभावी भी माना जाता है क्योंकि यह बिना ध्यान दिए जा सकता है। दिलचस्प बात यह है कि इस प्रकार का आतंकवाद नया या अनोखा नहीं है, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने ब्रिटेन में कोलोराडो आलू बीटल के साथ आलू की फसलों को टारगेट किया.ये बीटल 1943 में इंग्लैंड में पाए गए थे, बीटल को विमान से छोड़ा गया था, मोसटागनेम विश्वविद्यालय के एक शोध पत्र में यह भी कहा गया है कि जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध जारी रहने पर अनाज के जंग के बीजाणुओं के साथ एग्रो टेररिज्म पर विचार किया था,अब समझिए अगर अमेरिका में चीनी साजिश सफल हो जाती तो अमेरिका की पूरी फसलें बर्बाद हो जातीं।अमेरिका में दो चीनी नागरिकों द्वारा खतरनाक फंगस फ्यूजेरियम ग्रेमिनीअरम की तस्करी मामले ने वैश्विक कृषि सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह घटना उस संभावित भविष्य की चेतावनी है, जहां बीज, मिट्टी और फसलें भी आतंकवाद के हथियार बन सकते हैं। यह फंगस अनाज को सड़ा देता है और इंसानों व जानवरों दोनों को गंभीर रूप से बीमार कर सकता है, जिससे यह जैविक युद्ध का मौन हथियार साबित हो सकता है। इसे एग्रो टेररिज्म यानी कृषि आतंकवाद का संभावित हथियार बताया गया है। क्या है कृषि आतंकवाद फसलों को नष्ट करने के लिए जैविक एजेंट का इस्तेमाल करना पक्का कृषि आतंकवाद ही कहलाता है।
साथियों बात अगर हम कृषि आतंकवाद के भारत पर प्रभाव पड़ने की करें तो,इसका मकसद अर्थव्यवस्था को बर्बाद करना और समाज में तनाव पैदा करना होता है। यह तरीका सस्ता और पकड़ में आने में भी मुश्किल है। भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान लगभग 17 परसेंट है और देश की आधी से अधिक आबादी खेती से जुड़ी है। विशेष रूप से पंजाब, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश जैसे सीमावर्ती राज्यों में, जो पाकिस्तान और चीन से सटे हुए हैं,कृषि आतंकवाद का खतरा अधिक गंभीर है। 2016 में बांग्लादेश से आए जहरीले फंगस मैग्नापॉर्थे ओराइज़ा पाथोटाइप ट्रिटिकम ने पश्चिम बंगाल के दो जिलों में भारी तबाही मचाई थी। सरकार ने इस खतरे को नियंत्रण में रखने के लिए तीन वर्ष तक वहां गेहूं की खेती पर प्रतिबंध लगाया। इसलिए सतर्क रहना जरूरी -भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश, काबू पाना मुश्किल होगा -पहले भी भारत में हेड ब्लाइट की घटनाएं सामने आ चुकी हैं, विशेषकर उत्तर भारत में -सीमाओं से लगे क्षेत्रों, विश्वविद्यालयों, कृषि अनुसंधान संस्थानों पर कड़ी निगरानी जरूरी कई कदम उठाए जा चुके -भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की ओर से फफूंदरोधी गेहूं की किस्मों पर रिसर्च -कुछ राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में रोग प्रतिरोधक बीजों का ट्रायल शुरू किया गया -किसानों को बीज उपचार और फसल चक्र बदलाव जैसी सलाहें दी गईं समय रहते पाया काबू अमेरिका की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर भारत में गेहूं की फसलों में हेड ब्लास्ट के लक्षण कई बार देखे गए हैं। हालांकि, हर बार समय पर नियंत्रण पा लिया गया। विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक वर्षा, आर्द्रता और गर्म हवाओं वाले मौसम में इस रोग का खतरा और बढ़ सकता है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि विश्व का पहला कृषि आतंकवाद - कोविड-19 महामारी नें जैसे इंसानों को नष्ट किया वैसे फंगस फसलों को बर्बाद कर देता है।चीनी साजिश पर दुनियाँ हैरान- अमेरिका को भूख मारने का था प्लान-फंगस के ज़रिए, अनाज, खाद्य पदार्थ,फसलों को बर्बाद करना था प्लान।आधुनिक आतंकवाद व युद्ध, मानवीय जीवन की मृत्यु, फसलों भोजन स्वास्थ्य संपत्तियों भूमि पानी हवा व पर्यावरण यहां तक कि सभ्यता का भी विनाश करता है जो दुखदाई है।
-संकलनकर्ता लेखक - क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र 9284141425
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