Jaunpur News: ठा. अशोक सिंह के दुनिया में न रहने के बाद भी परिवार को मिल रही प्रेरणा | Naya Sabera Network

धार्मिक एवं राष्ट्र से जुड़े कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे ठा. अशोक सिंह

भ्रातृत्व प्रेम को चरितार्थ कर समाज को दिया संदेश

चौथी पुण्यतिथि पर स्मृतिशेष

Thakur Ashok Singh used to participate enthusiastically in religious and national related programs


हिम्मत ​बहादुर सिंह

जौनपुर। टीडीपीजी कालेज के पूर्व प्रबंधक स्व. ठाकुर अशोक कुमार सिंह को गुजरे चार वर्ष हो गए लेकिन उनकी प्रेरणा आज भी परिवार वालों को मिल रही है। अपने पीछे परिवार को जो संस्कार छोड़ गए हैं उसी पद चिन्हों पर चलकर उनके पुत्र और भतीजे संस्कार को आगे बढ़ा रहे हैं। वे अपने कार्यकाल के दौरान किसी का भी अनहित नहीं किए। यही कारण है कि दुनिया में न रहने के बाद भी कालेज परिवार सहित समाज के लोग आज भी उन्हें याद करते हैं। संस्कार ही उनके परिवार की असली धरोहर है इस परिवार में छोटे और बड़ों का जिस तरह से सम्मान किया जाता है यह अन्य परिवारों के लिए प्रेरणादायक है।

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दो बहनें और भाई में सबसे छोटे थे अशोक कुमार सिंह

गौरतलब हो कि सिरकोनी ब्लॉक के महरूपुर गांव में ठाकुर राम सूरत सिंह के घर में 12 नवंबर 1942 में जन्मे अशोक कुमार सिंह दो बहनें और भाई में सबसे छोटे थे। उनकी माता प्यारी देवी थीं। पंचायत चुनाव के दिन 15 अप्रैल 2021 को उन्होंने वाराणसी में एक निजी अस्पताल में इलाज के दौरान अंतिम सांस ली। सुबह प्रधानी के चुनाव में लोग लगे थे जैसे ही दोपहर में उनके निधन की सूचना आई पूरे जनपद में शोक की लहर दौड़ गई। 

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पूर्व मंत्री स्व. उमानाथ सिंह के पदचिन्हों पर चलकर परिवार को संभाला

बताते चलें कि बचपन में ही उनके सिर से पिता का साया उठ गया था और उनके बड़े भाई उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री स्व. उमानाथ सिंह ने पूरे परिवार को जिस तरह से संभाला उसी पद चिन्हों पर चलकर ठाकुर स्व. अशोक कुमार सिंह भी परिवार को आगे ले जाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। उनके अंदर भातृत्व का प्रेम इस कदर रहा कि 13 सितंबर 1994 को बड़े भाई के निधन के बाद उनका लगातार उमानाथ सिंह सेवा समिति बनाकर उनकी पुण्यतिथि अपने पूरे जीवनकाल तक मनाते रहे। वह शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किये वह जितने भी शिक्षण संस्थान स्थापित किये वह अपने बड़े भाई पूर्व मंत्री स्व. उमानाथ सिंह के नाम ही स्थापित किये।

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1994 में संभाला टीडीपीजी कॉलेज के प्रबंधक का कार्यभार

1994 में उन्होंने बड़े भाई के निधन के बाद टीडीपीजी कालेज के प्रबंधक का कार्यभार संभाला जो 14 अप्रैल 2021 तक इस पद पर बने रहे। लगभग 28 साल तक यह टीडीपीजी कालेज के प्रबंधक के रूप में अपनी सेवा दी तथा राजनीति के क्षेत्र में भी उनकी अच्छी खासी पकड़ थी और वह भाजपा के जिलाध्यक्ष पद पर भी काफी दिनों तक रहे। वह ईंट भट्ठा संघ उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष एवं जौनपुर इकाई के आजीवन जिलाध्यक्ष रहे। बताते चलें कि उनकी रूचि धार्मिक कार्यक्रमों एवं राष्ट्र से जुड़े कार्यक्रमों में रहती थी और इन कार्यक्रमों में भाग लेने में पीछे नहीं रहते थे। 

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भाषण के दौरान करते थे रामायण की चौपाईयों का उल्लेख 

उनकी धार्मिक प्रवृत्ति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह महीने में एक बार अयोध्या जाकर भगवान राम का दर्शन तथा वाराणसी में संकट मोचन जाना नहीं भूलते थे। उनकी पत्नी निर्मला देवी का निधन 30 जनवरी 2016 को ही हो गया था। पूजा पाठ करना उनकी दिनचर्या में शुमार थी। धार्मिक भावनाएं उनके अंदर इस कदर घर कर गई थी कि अगर किसी कार्यक्रम में उदबोधन के लिए खड़े होते थे तो वह अपने भाषण के दौरान रामायण की चौपाईयों का उल्लेख जरूर करते थे। उनके पुत्र उनके भावनाओं के मुताबिक उनकी पुण्यतिथि हर साल मनाते हैं। तीन दिवसीय रामकथा का आयोजन महरूपुर में स्थित हनुमान मंदिर पर चलता है। अंतिम दिन बड़े पैमाने पर भंडारा होता है। उनके बताए रास्तों पर उनके परिवारीजन चलकर समाज में अपनी मौजूदगी बरकरार रखे हुए हैं।

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परिवार में संस्कार और छोटे बड़ों का सम्मान सबसे बड़ी धरोहर

रामायण की कई चौपाईयां उनको कंठस्थ थी और भाषण के दौरान रामायण और महाभारत पर प्रकाश डालने से नहीं चूकते थे। उनके परिवार में संस्कार और छोटे बड़ों का सम्मान सबसे बड़ी धरोहर है। वह अपने पीछे भरा पूरा परिवार छोड़ गये हैं। उनके बड़े पुत्र टीडीपीजी कालेज के प्रबंधक राघवेंद्र प्रताप सिंह, देवेंद्र प्रताप सिंह, शिवेंद्र प्रताप सिंह, धर्मेंद्र प्रताप सिंह एवं उनके भतीजे पूर्व सांसद डा. कृष्ण प्रताप सिंह केपी, पूर्व मंत्री स्व. उमानाथ सिंह एवं स्व. अशेक कुमार सिंह के पद चिन्हों पर चलकर समाजसेवा में रमे हुए हैं।

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