सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ़ टिप्पणी से बवाल-सांसद बनाम सुप्रीम कोर्ट-अवमानना की गाज़ गिरनें की संभावना? | Naya Sabera Network
क्या बड़े बयांन किसी रणनीति के तहत बैकिंग सपोर्ट से दिए जाते हैं?तीर निशाने पर नहीं लगा तो,निजी बयान बोलकर बेकिंग से किनारा?
कंटेंप्ट ऑफ़ कोर्ट एक्ट 1971 की धारा 15 (1) (बी) व अवमानना संबंधी सुप्रीम कोर्ट 1975 के नियम 3(सी) के तहत अटॉर्नी/सॉलिसिटर जनरल की सहमति से ही कार्रवाई शुरू होगी - एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
नया सवेरा नेटवर्क
साथियों बात अगर हम सांसद के खिलाफ़ अवमानना की कार्रवाई होने की संभावना की करें तो, सुप्रीम कोर्ट और सीजेआई के ख़िलाफ़ विवादित बयान के लिए सांसद पर अब अवमानना की तलवार लटक रही है। अब उनके ख़िलाफ़ आपराधिक अवमानना की कार्रवाई की मांग उठी है। सुप्रीम कोर्ट के एक वकील ने अटॉर्नी जनरल को पत्र लिखकर अवमानना कार्यवाही शुरू करनेकी अनुमति मांगी है। पत्र में कहा गया कि उनकी टिप्पणियां गंभीर रूप से अपमानजनक और ख़तरनाक रूप से उकसाने वाली' हैं, जो सुप्रीम कोर्ट की गरिमा और स्वतंत्रता पर हमला करती हैं। यह पत्र अवमानना अधिनियम की धारा 15 (1)(बी) और सुप्रीम कोर्ट की अवमानना नियमावली के नियम 3 (सी) के तहत लिखा गया। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्होंने वक़्फ़विधेयक के संदर्भ में सांप्रदायिक रूप से ध्रुवीकरण करने वाले बयान दिए जो कोर्ट की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं, हालांकि, कार्यवाही शुरू करने के लिए अटॉर्नी जनरल की सहमति ज़रूरी है। यह क़दम तब उठाया गया है जब सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश के ख़िलाफ़ विवादित टिप्पणियों ने सियासी हलकों में भूचाल ला दिया है। 19 अप्रैल को दिए गए अपने बयान में सांसद ने सुप्रीम कोर्ट को धार्मिक युद्ध भड़काने और अराजकता की ओर ले जाने का ज़िम्मेदार ठहराया था। उन्होंने एक्स पर लिखा था, क़ानून यदि सुप्रीम कोर्ट ही बनाएगा तो संसद भवन को बंद कर देना चाहिए। इसके बाद एएनआई से बातचीत में उन्होंने कहा था, इस देश में जितने गृह युद्ध जैसे हालात बन रहे हैं, उसके लिए सीजेआई जिम्मेदार हैं। सुप्रीम कोर्ट धार्मिक युद्ध भड़काने का काम कर रहा उन्होंने कोर्ट पर न्यायिक अतिक्रमण का आरोप लगाया और कहा कि संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत क़ानून बनाने का अधिकार सिर्फ़ संसद को है, न कि कोर्ट को। उन्होंने कोर्ट के उस फ़ैसले पर आपत्ति जताई, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा तय की गई थी। इसके अलावा वक़्फ़ संशोधन विधेयक 2025 पर कोर्ट की सुनवाई के दौरान सरकार के कुछ प्रावधानों को लागू न करने के आश्वासन पर भी उन्होंने ने सवाल उठाए। उनके बयानों से उपजे विवाद के बाद सत्ताधारी पार्टी अध्यक्ष ने उनके बयानों से पार्टी को अलग करते हुए इसे उनकी व्यक्तिगत राय क़रार दिया था।19 अप्रैल की रात को उन्होंने ने एक्स पर लिखा, 'निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा के बयान व्यक्तिगत हैं।पार्टी इनसे सहमत नहीं है और न ही इनका समर्थन करती है। हम इन बयानों को पूरी तरह खारिज करते हैं। उन्होंने जोड़ा कि पार्टी न्यायपालिका को लोकतंत्र का मज़बूत स्तंभ मानती है और उसका सम्मान करती है। उन्होंने दोनों सांसदों को भविष्य में ऐसे बयान देने से मना किया लेकिन, नड्डा का यह बयान विवाद को शांत करने में नाकाम रहा। विपक्ष ने इसे बीजेपी की दिखावटी सफाई करार दिया। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, पार्टी सुप्रीम कोर्ट को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। क्या उन्होंने ने सांसद को नोटिस भेजा?
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साथियों बात अगर हम अवमानना सहमति में अटॉर्नी/ सॉलिसिटर जनरल की भूमिका की करें तो, अगर अटॉर्नी जनरल अवमानना कार्यवाही की अनुमति देते हैं तोउनको कोर्ट में पेश होना पड़ सकता है। हालांकि, पहले भी कपिल सिब्बल और पी.चिदंबरम जैसे मामलों में अवमानना की मांग खारिज हो चुकी है, जिससे इसकी संभावना कम लगती है। फिर भी, सुप्रीम कोर्ट स्वत: संज्ञान ले सकता है, जैसा कि विपक्ष मांग रहा है।दुबे का बयान उस बड़े टकराव का हिस्सा है, जिसमें उपराष्ट्रपति ने भी सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद 142 के इस्तेमाल को लोकतांत्रिक ताक़तों के ख़िलाफ़ परमाणु मिसाइल क़रार दिया था। यह दिखाता है कि कुछ पार्टी नेता कोर्ट के फ़ैसलों को न्यायिक अतिक्रमण मानते हैं।उनकी बयानबाजी ने न केवल सुप्रीम कोर्ट की गरिमा पर सवाल उठाए, बल्कि पार्टी के लिए एक सियासी संकट भी खड़ा कर दिया है। अध्यक्ष की सफाई और पार्टी की दूरी के बावजूद यह विवाद पार्टी की छवि को नुक़सान पहुंचा सकता है, खासकर तब जब वह न्यायपालिका का सम्मान करने की बात करती है। सुप्रीम कोर्ट में अवमानना की कार्यवाही के लिए याचिका दाखिल करने से पहले अटॉर्नी जनरल की सम्मति अनिवार्य प्रक्रिया है, जिसमें एक विशेष समुदाय के खिलाफ पक्षपात का आरोप लगाया गया उन्होंने ने अपने पत्र में कहा है कि सार्वजनिक रूप से दिए गए दुबे के बयान घोर निंदनीय, भ्रामक हैं, इनका उद्देश्य सर्वोच्च न्यायालय की गरिमा और अधिकार को कमतर दिखाना है, पत्र में कहा गया है कि दुबे की टिप्पणियां न केवल तथ्यात्मक रूप से गलत हैं, बल्कि उनका मकसद सर्वोच्च न्यायालय की महिमा और छवि को धूमिल करना कीर्ति को बदनाम करना है ऐसे बयान देकर वोन्यायपालिका में जनता का विश्वास खत्म करना चाहते हैं, उनका असली उद्देश्य न्यायिक निष्पक्षता मेंसांप्रदायिक अविश्वास को भड़काना है. ये सभी कृत्य स्पष्ट रूप सेन्यायालय की अवमानना अधिनियम,1971 की धारा 2(सी) (आई) के तहत परिभाषित आपराधिक अवमानना के अर्थ में आते हैं.यह बयान खतरनाक रूप से भड़काऊ है'सीजेआई के खिलाफ बयान पर दुबे ने लिखा है कि यह बयान न केवल बेहद अपमानजनक है बल्कि खतरनाक रूप से भड़काऊ भी है. इसमें लापरवाही से राष्ट्रीय अशांति होने के आसार और वैसी स्थिति के लिए मुख्य न्यायाधीश को जिम्मेदार ठहराया गया है. उनके इस कृत्य से देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर कलंक लगाने की कोशिश की गई है. जनता में अविश्वास, आक्रोश और अशांति की भावना भड़काने का प्रयास किया गया है।पत्र में कहा गया है कि इस तरह का निराधार आरोप न्यायपालिका की अखंडता और स्वतंत्रता पर गंभीर हमला है तथा यह न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत तत्काल और अनुकरणीय कानूनी जांच का पात्र है।
साथियों बात अगर हम कंटेंप्ट ऑफ़ कोर्ट की धाराओं को समझने की करें तो, धारा 15 (1) (ख) यह निर्दिष्ट करती है कि यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ न्यायालय की अवमानना की कार्यवाही अधीनस्थ न्यायालय के निर्देश पर शुरू की गई है, तो उस निर्देश की प्रतिलिपि भी वकील ने अटॉर्नी जनरल को पत्र लिखकर सांसद के खिलाफ अदालत के प्रति आपराधिक अवमानना की कार्यवाही के लिए सम्मति प्रदान करने का आग्रह किया है।धारा 15 (1) (ख) न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 की एक महत्वपूर्ण धारा है जो अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की प्रक्रिया को निर्दिष्ट करती है। यह सुनिश्चित करती है कि सभी पक्ष उचित रूप से अवगत हों और उन्हें न्यायसंगत प्रक्रिया प्राप्त हो।धारा 2 (सी) (आई) की व्याख्या:यह धारा यह बताती है कि कोई भी प्रकाशन या कार्य, चाहे वह शब्दों, संकेतों या के माध्यम से हो, जो न्यायालय को बदनाम करता है, दृश्यों या उसके अधिकार को कम करता है, या न्यायिक कार्यवाही में बाधा डालता है, या न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप करता है, वह आपराधिक अवमानना होगा.उदाहरण:(1)अदालत की कार्यवाही के दौरान हंगामा करना या गवाहों को डराना।(2) न्यायालय के आदेश का पालन न करना। (3) न्यायालय की कार्यवाही के बारे में गलत या भ्रामक जानकारी फैलाना, सजा:आपराधिक अवमानना के लिए सजा छह महीने तक की जेल और/या दो हजार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे किसुप्रीम कोर्ट के खिलाफ़ टिप्पणी से बवाल- सांसद बनाम सुप्रीम कोर्ट- अवमानना की गाज़ गिरनें की संभावना?क्या बड़े बयांन किसी रणनीति के तहत बैकिंग सपोर्ट से दिए जाते हैं?तीर निशाने पर नहीं लगा तो,निजी बयान बोलकर बेकिंग से किनारा?कंटेंप्ट ऑफ़ कोर्ट एक्ट 1971 की धारा 15(1)(बी) व अवमानना संबंधी सुप्रीम कोर्ट 1975 के नियम 3(सी) के तहत अटॉर्नी/सॉलिसिटर जनरल की सहमति से ही कार्रवाई शुरू होगी।
-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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