Jaunpur News : भरत का निश्छल भातृत्व प्रेम व त्याग की कथा सुन सजल हो गये नयन | Naya Savera Network
शिवशंकर दुबे @ नया सवेरा
खुटहन, जौनपुर। मरहट गांव में यूनिक आइडिया एजूकेशन पब्लिक स्कूल के सौजन्य से आयोजित साप्ताहिक श्रीराम कथा में व्यासपीठ से श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए धर्मराज तिवारी महराज ने कहा कि तीनों लोकों में भरत जैसा दूसरा भाई नहीं हो सकता। उन्होंने श्रीराम के मनावन में भरत का त्याग और निश्छल प्रेम का ऐसा चित्रण किया कि स्रोताओं की आंखें छलक पड़ी। जब वे गुरु और माताओं के साथ भाई राम के द्वारा दी गई खड़ाऊ को सिर माथे पर रख अश्रुपूरित नेत्रों से वापस अयोध्या लौटने लगे, इस वृतांत को सुन दर्शक अपने आंसूओं को नहीं रोक सके। उन्होंने कहा कि वन से श्रीराम को वापस अयोध्या लाने के लिए भरत हर संभव तरीके से भगवान को मनाते हैं लेकिन भगवान पिता के वचनों के आगे खुद को असमर्थ बताते हैं। इसका निर्णय महाराज जनक से करने का दोनों भाई आग्रह करते हैं। असमंजस में पड़े जनक ने कहा कि आप दोनों में महान कौन है? यह ब्रह्मा भी तय नहीं कर सकते। राम कर्तव्य और मर्यादा की सीमा हैं तो भरत त्याग और निश्छल प्रेम की परिसीमा। जब प्रेम पराकाष्ठा में अनन्य भक्ति का रूप धर लेता है तो सारे बंधन तोड़ स्वयं ईश्वर को भक्त के पास भागकर आना पड़ता है। वहीं राम मर्यादा और धर्म के शिखर हैं। तीनों लोकों में धर्म से बड़ा कुछ नहीं होता। इस प्रेम, त्याग, मर्यादा और धर्म के द्वंद में देखें तो भक्त भरत का पलड़ा भारी दिखता है लेकिन प्रेम सदैव त्याग और निस्वार्थ की धुरी पर टिका होता है इसलिए भरत तुम श्रीराम के चरणों में बैठ उन्हीं से निर्णय पूछिए।
आगे कहा कि व्याकुल भरत भागकर श्रीराम के चरणों में गिर याचना करने लगते हैं। श्रीराम ने कहा कि भाई भरत मैं तुम्हारे द्वारा दिए गए राज्य को स्वीकार करता हूं लेकिन पिता के वचन भी झूठे न हो इस लिए इस राज्य को 14 वर्षों के लिए तुम्हें धरोहर के रूप में सौंप रहा हूं इस अवधि के बाद मैं वापस आकर तुमसे अपना राज्य वापस ले लूंगा। राज्य सिंहासन के लिए कथा में जब चरण पादुका लेकर भरत अश्रु धारा बहाते वापस लौटने लगे तो दर्शकों की आंखें भर आईं। इस मौके पर पूर्व सांसद कुंवर हरिवंश सिंह, अजीत सिंह, गौरव सिंह, प्रधानाचार्य अनिल उपाध्याय, सुधाकर सिंह, सुरेंद्र, सुभाष उपाध्याय आदि मौजूद रहे।