Poetry : "तुमने क्या डिलीट किया" | Naya Savera Network
नया सवेरा नेटवर्क
"तुमने क्या डिलीट किया"
अच्छा सवाल पूछा
कि 'तुमने क्या डिलीट किया'।
मैंने तुम्हारी यादों को ताज़ा ताज़ा डिलीट किया था।
सोचा था यादों को डिलीट कर दूँगा
तो सब ठीक हो जाएगा।
बहुत कोशिश की
पर न जाने क्यों
यादें डिलीट ही नहीं हो पाईं।
मैने सोचा मेमोरी से इरेज़ कर देता हूँ
पर नहीं हो पाया।
किसी ने उपाय बताया कि
पूरे सिस्टम को री-बूट करना पड़ेगा।
विचार किया तो लगा कि
यह तो अच्छा उपाय नहीं है।
ऐसे में तो तमाम ख़ूबसूरत
पलों और एहसासों की
फोटो और वीडियो
मेमोरी से हमेशा के लिए
डिलीट हो जाएँगी।
इतने सँजो और सहेज कर रखी हुई यादों को
जो मेरे जीने की वजह है,
मैं उनसे कैसे अलग हो सकता हूँ।
फिर क्या करूँ तुम्हारी यादों का।
जो हमेशा सिस्टम में पाॅप अप करके
मुझे तंग करती रहती हैं।
कुछ सोचने नहीं देती,
कुछ करने नहीं देती।
बहुत दर्द और टीस देती रहती हैं।
फिर लगा कि क्या हो जाएगा
अगर मुआ एक दर्द और पड़ा रहेगा
ज़ेहन के किसी कोने में।
यूँ भी तो न जाने कितने दुख दर्द
पड़े हुए हैं जहाँ तहाँ
कहीं सिस्टम में, कहीं मेमोरी चिप में
कहीं हार्ड डिस्क में और कहीं दूर आई क्लाउड में।
क्या बिगाड़ लेती हैं ये मेरा।
कुछ समय बाद तो
इनके नोटिफिकेशन भी
अपने आप
आने बन्द हो जाते हैं।
अच्छा ही है कि ये दर्द
मेरे साथ तो हैं।
जहाँ इन्सान इतना अकेला है
वहाँ मेरे पास कितना कुछ है।
पता नहीं मेरे सिस्टम की मेमोरी कितने बाईट की है।
कुछ भी और सब कुछ
सेव हो जाता है,
हमेशा के लिए।
रचनाकार
सन्तोष कुमार झा सीएमडी,कोंकण रेलवे
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