Article : वंदना और प्रार्थना | Naya Savera Network



नया सवेरा नेटवर्क

       एक बार एक कवि मित्र ने चर्चा करते हुए वंदना और प्रार्थना में अंतर पर चर्चा शुरू कर दी|मैने कहा भाई वंदना और प्रार्थना में अंतर कहाँ है|दोनो एक ही है|और दोनो ईश्वर पूजन ही तो है|आप सब भी सहमत हो गये होंगे कि वंदना और प्रार्थना एक ही तो है|शायद वंदना और प्रार्थना को हम सभी एक ही मानते भी हैं|लेकिन वो कवि महोदय मानने को तैयार नहीं|वो अपनी बात पर डटे रहे|और जोर देकर ये कहते रहे कि वंदना और प्रार्थना में अंतर है|थक हार कर आत्मसमर्ण कर दिया उनके आगे|बोले भाई मुझे नहीं समझ आ रहा,आप ही बतायें|


     उन्होंने जो तर्क दिया वह मुझे सोंचने पर विवश कर दिया|उन्होंने कहा कि महोदय वंदना में केवल पूजन होता है|और प्रार्थना में माँग होती है|मैने कहा जरा और स्पष्ट कीजिए|उन्होंने कहा कि महोदय जब हम वंदना करते हैं तब अपने पास जो कुछ भी धूप दीप नैवेद्य आदि सामग्री होती है,उसे ईश्वर को समर्पित करते हैं|कहने का आशय ये कि वंदना में आत्मसमर्पण होता है|और जब प्रार्थना करते हैं तो माँग करते हैं|जैसे-
"हे देवी माँ शारदा,आकर हमको ज्ञान दो|
हम सेवक हैं आपके,हिय में मेरे भर ज्ञान दो"||
  इन लाईनों में हम प्रार्थना कर रहे हैं|माँग रहे हैं|जबकि हमें ज्ञान पहले से ही मिला हुआ है|फिर भी हम माँग रहे हैं|जितनी भी पूजन के नाम से प्रार्थनायें लिखी गई हैं|जिसे वंदना के नाम से गाया जाता है,असल में वंदना नहीं प्रार्थना है|मैने कहा तो फिर वंदना क्या है|तो,वो महाशय ने जो बताया,कम से कम मैं संतुष्ट हुआ|उन्होंने कहा वंदना वो है जो निर्लेप भाव से की जाती है|
जैसे-
मंदिर तेरा सजाके,चुनरी तुझे चढ़ा के|
पूजा करूँ हे मइया,सेवा करूँ हे मइया||
इन लाइनों में समर्पण है|तो मैने कहा जिज्ञासा बस कि शायद आगे माँग हो, तो उन्होने अगली लाईन पढ़ी|
" माला फूल सुगंधित मइया,सब कुछ तुझे चढ़ाऊँ|
धूप दीप नैवेद्य चढ़ा माँ, गाथा तेरी गाऊँ||
सुन लो शारदा मइया,जग की कल्याण करइया|
पूजा करूँ हे मइया,सेवा करूँ हे मइया"||
लाजवाब कर दिया|सच में इन लाइनों को सुनने के बाद मानना पड़ा कि  प्रार्थना और वंदना में अंतर है|शायद आप सब भी मेरी ही तरह इस अंतर को समझ गये होंगे कि,प्रार्थना ईश्वर से इसलिए की जाती है कि माँग पूरी करें|हम प्रार्थना करते समय ईश्वर से कहते हैं कि 
"दूर करअ दुख दूर करअ,भोले नाथ जी|
सुनो शिव डमरू वाले,सुनो बाघम्बर वाले,सुनो हे बम बम भोले"||
या यूँ कहते हैं कि
"तोहरी दुवरिया पे आये हम दुखरिया,कि सुनि लेतू ना|
माई हमरी पुकरिया तूँ सुनि लेतू ना||
    यानी कि हम यहाँ पूजन नहीं कर रहे,हम यहाँ अपना दुखड़ा लिए खड़े हैं|और वही दुख दूर करने की प्रार्थना करते हैं|और सुखी होने की कामना करते हैं|लेकिन जब हम वंदना करते हैं तब सब कुछ समर्पित करके कहते हैं कि
"बिन माँगे दे थू बहुत कुछ माई,माँगि काहें नमूसी कराई|
तोहरी कृपा खुब पाई,हे तोहरी कृपा खुब पाई||
शारदा मंदिर में तोहरे आई"||
     उनके तर्क और उनकी निर्मल बातें सुनकर मैं संतुष्ट हुआ कि सच में वंदना और प्रार्थना में अंतर है|हम जब भी मंदिर आदि में जाते हैं|या घर  पर पूजन आदि करते हैं तो समर्पण नहीं होता|हम अमनी मनोकामना सिद्धि के लिए याचना करते हैं|और उसी को पूजन का नाम दे देते हैं|जबकी पूजन बस पंचोपचार व षोडसोपचार ही है|जहाँ हम सबकुछ ईश्वर को समर्पित करते हैं|जब हम माँगते हैं तो वह प्रार्थना हो जाती है याचना हो जाती है|जैसे मैं संतुष्ट हुआ हूँ उम्मीद है आप सब भी इस लेख को पढ़कर संतुष्ट होंगे|और प्रार्थना व वंदना में अंतर समझेंगे|और गलती करने से बचेंगे|
पं. जमदग्निपुरी

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