नया सवेरा नेटवर्क
आज पिछले कुछ वर्षों से खास करके उत्तर प्रदेश में जबसे योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने हैं,तबसे उत्तर प्रदेश के बड़े बड़े अपराधी, जिससे लोग भय खाते थे|जरायम की दुनियाँ में जिनका नाम ही काफी था|जिनके लिए प्रशासन पंगु था,प्रशासनिक अधिकारी जिनकी रखैल हुआ करते थे|वो सभी खौफ में जीने के लिए मजबूर हैं|जो जीना चाह रहा है,वो भूमिगत हो गया|और जो अब भी प्रशासन को पंगु और प्रशासनिक अधिकारी को अपनी रखैल समझने की भूल की या तो खाक के मिल गया,या मिट्टी में मिल गया|जबसे योगी की सरकार उत्तर प्रदेश में बनी है,तबसे उत्तर प्रदेश में बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर जी का संविधान किताब से निकलकर जमीन पर दिखने लगा है|नहीं तो कहने के लिए सरकार थी,मगर शासन अपराधी करते थे|जबसे बाबा का बुलडोजर अपराधियों के सीने पर चढ़कर शेर की तरह गरजने लगा है,तबसे उत्तर प्रदेश में शासन और कानून दोनो दिखने लगा है|जबसे बाबा जी ने प्रशानिक अधिकारियों को निर्देशित कर दिया है कि किसी भी अपराधी द्वारा सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा है तो,उसे उसके कब्जे के साथ ही जमींदोज कर दिया जाय,तबसे अपराध में बहुत कमी आई है|आम जन सकून से जी रहे हैं|व्यापारी और उद्योगपति चैन से सो रहे हैं|प्रशासनिक अधिकारी ढंग से काम कर रहे हैं|उसी की देखा देखी अन्य राज्यों में बुलडोजर गरजने लगे|जिससे अपराधियों के हौंसले पस्त होने लगे हैं|अपराधियों में भय व्याप्त है|उन्हें यह भय सताने लगा है,जो अवैध तरीके से साम्राज्य खड़ा किए हैं,वो एक झटके से ढह जायेगा|
आज मैं यह देख रहा हूँ कि अपराधियों से अधिक माननीय न्यायालय भयाक्रांत है|बड़े बड़े अपराधियों द्वारा जो गरीबों का हक मारकर जबरन बंदूक की नोक पर कब्जा जमाया गया था|उसे अब सरकार मुक्त करा रही है तो माननीय न्यायालय को बहुत तकलीफ है|दुर्दान्त अपराधियों का परिवार दिख रहा है|उनकी तकलीफ दिख रही है|उनके रिस्तेदारों का दुख दिख रहा है|लेकिन वहीं हमने देखा है,जब आम आदमी मालगुजारी नहीं भर पाता है तो ,यही माननीय अदालत उसके घर की कुर्की का आदेश देती है|गुस्से में यदि आम आदमी से छोटे गुनाह हो जाते हैं तो तब यही माननीय न्यायालय कैसे कैसे आदेश पारित करती है|उस आम आदमी के नात रिश्तेदार मित्र सब प्रताड़ित किये जाते हैं,क्यों?तब क्यों माननीय अदालत यह नहीं कहती की अपराधी के अलावाँ किसी को प्रताड़ित न किया जाय|और घर की कुर्की तो बिल्कुल न की जाय|क्योंकि कुर्की होने पर नौनिहालों पर इसका बुरा असर पड़ता है|परिवार भुखमरी की कागार पर चला जाता है|माननीय अदालत को यह क्यों नहीं दिखता|
क्या आम आदमी का कोई मौलिक अधिकार नहीं है|क्या सभी मौलिक अधिकार जिसकी दुहाई माननीय अदालत ने दी है,वह सिर्फ दुर्दान्त अपराधियों,भ्रष्टाचारियों आतंकवादियों,दहशतगर्दों के ही हैं|आम आदमियों के नहीं हैं|आज दुर्दान्त अपराधियों पर,दंगाइयों पर जब सरकार उचित कार्यवाई कर रही है तो,माननीय अदालत को इतनी पीड़ा क्यों?|आम आदमी का दर्द जो प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा,दुर्दान्त अपराधियों द्वारा,आतंकवादियों द्वारा,दंगाइयों द्वारा प्रताड़ित किये जाते हैं तो माननीय अदालत को क्यों नहीं दिखा या दिखता है|क्या माननीय न्यायालय भी नहीं चाहती कि आम आदमी,उद्योगपति,व्यापारी सकून से अपना काम करके जीये चैन से खा पीकर सोये|बार बार माननीय न्यायालय दुर्दान्त अपराधियों के समर्थन में बिना किसी विरोध क्यों खड़ी होती है|यह आम जनता आज तक नहीं समझ पाई|
कहीं ऐसा तो नहीं कि माननीय न्यायालय अपराधियों के संरक्षण में इसलिए तो नहीं खड़ी होती कि अपराध नहीं होंगे तो हम क्या करेंगे|सभी फैसले यदि सरकार ही कर देगी तो,हमारी जरूरत ही खत्म हो जायेगी|इसीलिए तो माननीय न्यायालय अपराधियों के साथ खड़ी नहीं हो रही|कहीं माननीय न्यायालय को यह भय तो नहीं सता रहा कि यदि अपराधी नहीं रहेंगे तो हमारा ही अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा|यदि सरकार ही न्याय करने लगेगी तो न्यायाधीश की जरूरत ही खत्म हो जायेगी|हमारी और हमारे परिवार के विलाशितापूर्ण जीवन पर ग्रहण लग जायेगा|इस भय से तो नहीं माननीय न्यायालय अपराधियों के मौलिक अधिकार की दुहाई देकर उनकी सुरक्षा में खड़ी है,और प्रशासन को पंगु बनाने में लगी है|जिस तरह का निर्णय कल माननीय न्यायालय ने दिया है,वह उपरोक्त बातों की तरफ ही इशारा कर रहा है|माननीय न्यायालय नहीं चाहती कि अपराध और अपराधी दोनों खत्म हों|माननीय न्यायालय नहीं चाहती कि आम आदमी उद्योगपति व्यापारी इस देश में सकून से जीये खाये और काम करके देश की उन्नति में योगदान कर सके,और चैन से सो सके|
अपराधी शायद इसीलिए बेखौफ अपना साम्राज्य खड़ा कर लेते हैं|क्योंकि उनकी सुरक्षा में माननीय न्यायालय सदैव तत्पर है|न्यायालय न्यायालय न होकर अपराधियों अतिवादियों आतंकवादियों देशद्रोहियों भ्रष्टाचारियों की शरणस्थली सी हो गई है|माननीय अदालत अच्छी तरह से जानती है कि दुर्दान्त अपराधियों के विरोध में कोई गवाह नहीं खड़ा होगा|फिर भी माननीय न्यायालय स्व संज्ञान लेकर उचित फैसला नहीं करती|अब सरकार कर रही है तो माननीय न्यायालय के पेट में दर्द हो उठा|यह बात कल के माननीय न्यायालय के निर्णय से परिलक्षित हो रहा है|आम जन के लिए न्यायालय भी कठोर है|यह दोगलापंथी आज तक समझ से परे ही है|इसलिए कहना पड़ रहा है,आम आदमी छला जा रहा है|
पं.जमदग्निपुरी
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