गोरखपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र | #NayaSaveraNetwork
- योगी के अभेद्य किले में त्रिकोणीय मुकाबला
अजीत कुमार राय / जागरूक टाइम्स
मुंबई। उत्तर प्रदेश का गोरखपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र बेहद अहम स्थान रखता है। क्योंकि यह क्षेत्र मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कर्मस्थली है। इसके साथ ही गोरखपुर को गोरखनाथ मंदिर और गीता प्रेस की वजह से भी दुनियाभर में विशेष पहचान है। इस सीट पर गोरखनाथ मंदिर का खासा प्रभाव माना जाता है। इस सीट पर नाथ सम्प्रदाय का विशेष प्रभाव रहा है। यहां से महंत दिग्विजयनाथ के बाद महंत अवैधनाथ चार बार सांसद चुने गए। फिर योगी आदित्यनाथ 5 बार सांसद चुने गए। गोरखपुर सीट के संसदीय चुनावों के आंकड़ों पर गौर करें तो 1984 तक हुए आठ चुनावों में यहां छह बार कांग्रेस का दबदबा रहा। इस बीच सिर्फ दो बार कांग्रेस को यह सीट गंवानी पड़ी थी। गोरखपुर में आजादी के बाद 1952 में हुए चुनाव में यहां कांग्रेस पार्टी ने जीत दर्ज की थी। कांग्रेस पार्टी के सिंहासन सिंह यहां से विजयी हुई थे।
इसके बाद दूसरे चुनाव 1957 और तीसरे चुनाव 1962 में भी कांग्रेस पार्टी के सिंहासन सिंह ने ही जीत दर्ज की। 1967 में यहां की राजनीति में गोरक्षपीठ की एंट्री हुई और महंत दिग्विजयनाथ और 1970 में महंत अवैद्यनाथ ने जीत दर्ज की। इसके बाद फिर 1971 से 1984 तक कांग्रेस पार्टी यहां चुनाव जीतती रही। 1989 में एक बार फिर महंत अवैद्यनाथ हिन्दू महासभा की टिकट पर संसद पहुंचे। 1991 में महंत अवैद्यनाथ ने बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की फिर वह 1998 तक यहां के सांसद रहे। उनके बाद 1998 से 2014 तक लगातार पांच बार योगी आदित्यनाथ यहां से सांसद चुने गए। 2017 में यूपी के सीएम बनने के बाद उन्होंने संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद यहां हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रवीण कुमार निषाद ने जीत दर्ज की। 2019 के चुनाव में फिर बीजेपी ने गोरखपुर सीट पर कब्जा कर लिया।
बीते दो लोकसभा चुनाव की बात करें तो गोरखपुर व बस्ती मंडल की सभी नौ सीटों पर गोरक्षपीठ के आभामंडल से भाजपा के प्रत्याशियों को जिताते रहे। इस क्षेत्र को भगवा खेमे का गढ़ बनाने का श्रेय गोरक्षपीठ को जाता है। योगी आदित्यनाथ के 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरक्षपीठ का चेहरा भले ही संसदीय सीट पर नहीं दिखता है, लेकिन एक साल के उप चुनाव वाले कार्यकाल को हटा दें तो 2019 से वर्तमान सांसद रवि किशन खुद को गोरक्षपीठ का सेवक और पीठ की खड़ाऊ रखकर सेवा करने वाला बताकर यह कहने से नहीं चूकते कि वह योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में ही चुनाव लड़ रहे हैं।
भाजपा ने इस बार भी वर्तमान सांसद रवि किशन शुक्ला को मैदान में उतारा है। वहीं समाजवादी पार्टी ने काजल निषाद को मैदान में उतारा है। वहीं बसपा ने जावेद सिमनानी को उतार मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया है। सिमनानी अपने शुरुआती छात्र जीवन से ही बीएसपी के साथ रहे हैं, क्योंकि उनके पिता और उनके भाई सभी अपने पूरे करियर के दौरान बीएसपी के साथ रहे हैं। सिमनानी ने अपना करियर एक बूथ अध्यक्ष के रूप में शुरू किया, लेकिन सेक्टर अध्यक्ष, सेक्टर प्रभारी, बीएसपी के मुख्य जोन समन्वयक और कई अन्य पदों पर काम किया।
- रवि किशन को बड़ी जीत का भरोसा
भारतीय जनता पार्टी ने अपने वर्तमान सांसद तथा प्रसिद्ध अभिनेता रवि किशन को एक बार फिर से टिकट दिया है। रवि किशन भोजपुरी, हिंदी, तमिल, तेलगू समेत कई अन्य कई फिल्मों के नामी अभिनेता हैं। 2019 के चुनाव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का आशीर्वाद ले पहली बार गोरखपुर सीट से उतरे रवि किशन ने सपा के राम भुआल निषाद को तीन लाख से अधिक वोटों से हराया था। जबकि सपा का बसपा के साथ चुनावी करार था। रवि किशन ने 717,122 वोट हासिल किए तो राम निषाद को 4,15,458 वोट मिले।
तीसरे नंबर पर रहने वाली कांग्रेस को महज 22,972 वोट ही मिले। रवि किशन ने 3,01,664 मतों के अंतर से जीत हासिल की थी। भाजपा जीत को दोहराने बल्कि इसके अंतर को पांच लाख वोटों के पार ले जाने के दावा कर रही है। नामांकन के बाद रवि किशन ने कहा कि गोरखपुर की जनता के आशीर्वाद से हमने नामांकन दाखिल कर दिया है। इस बार चुनाव में जनता भारी मतों से विजयी बनाकर पिछली बार के सभी रिकॉर्ड को तोड़ देगी। पूर्वांचल में वाराणसी के बाद गोरखपुर लोकसभा सीट को सबसे वीआईपी सीट माना जाता है।
- निषाद वोट बैंक के भरोसे इंडी गठबंधन
निषाद बहुल संसदीय क्षेत्र मानकर सपा गोरखपुर संसदीय सीट पर निषाद प्रत्याशियों के जरिये ही दांव आजमाती रही है। सपा ने पुरानी रणनीति अपनाते हुए एक बार फिर निषाद प्रत्याशी काजल को चुनाव मैदान में उतारा है, लेकिन सपा का यह दांव सफल होगा, इसपर संशय इसलिए दिख रहा, क्योंकि निषाद बिरादरी के वोटों पर अधिकार बताने वाली निषाद पार्टी भाजपा की सहयोगी होने के कारण रवि किशन के साथ है।
काजल भी अभिनय क्षेत्र से आती हैं। उन्होंने लापतागंज एवं कुछ भोजपुरी फिल्मों में एक्टिंग की है। गोरखपुर से उनका पुराना रिश्ता है। 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर कैम्पियरगंज से चुनाव लड़ी हैं। वहीं महापौर का चुनाव भी लड़ चुकीं है, जिसमें उन्हें हार मिली थी। सपा उम्मीदवार काजल निषाद क्षेत्र में प्रभावी निषाद वोटों पर दावेदारी कर रही हैं। 35 साल में सपा को गोरखपुर सीट पर सिर्फ 2018 के उपचुनाव में कामयाबी मिली थी। उस चुनाव में भाजपा ने उपेन्द्र दत्त शुक्ल को मैदान में उतारा था, जिन्हें सपा प्रत्याशी प्रवीण निषाद (वर्तमान में संत कबीर नगर से भाजपा के सांसद और प्रत्याशी) ने हराया था।