- डॉ.आरपी ओझा ने राम और रावण युद्ध का मार्मिक वर्णन किया
- स्व.अशोक सिंह की तीसरी पुण्यतिथि पर तीसरे दिन राम कथा के समापन के बाद हुआ भंडारा
नया सवेरा नेटवर्क
जौनपुर। महरूपुर स्थित हनुमान मंदिर पर टीडीपीजी कॉलेज के पूर्व प्रबंधक स्व.अशोक सिंह की तीसरी पुण्यतिथि के तीसरे दिन अयोध्या से आये स्वामी देवेशदास ने भरत चरित्र एवं द्रोपदी चीरहरण का मार्मिक वर्णन कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने कहा कि भरत जैसा भाई दुनिया में बिरले ही होगें। उन्होंने कहा कि भाई के प्रेम के आगे उन्होंने अपनी मां तक को बुरा भला कह डाला। पूरे रामायण में भरत जैसा चरित्र किसी का नहीं है। इसी दौरान उन्होंने महाभारत का भी थोड़ा जिक्र किया और कहा कि कन्हैया ने द्रोपदी को भीष्मपितामाह के चरणों का संपर्क कर अखंड सौभाग्यवती का जो वरदान लिया उसे भीष्मपितामाह भी चकित रह गये। हुआ यह कि सौभाग्यवती का आशीर्वाद भानुमति को लेना था लेकिन कन्हैया ने द्रोपदी को इस वेषभूषा में लेकर पहुंचे कि भीष्मपितामाह समझ ही नहीं पाये और भानुमति की जगह द्रोपदी को सौभाग्यवती का आशीर्वाद दे दिया। बाद में बहुत पूछने पर द्रोपदी ने सबकुछ बताया तब भीष्मपितामाह ने कहा कि बेटी तुमको यहां लेकर आने वाला कहां है।
कन्हैया साड़ी पहनकर सिर पर चप्पल रखकर भीष्म पितामाह के सम्मुख गये कि लगेगा कि कोई सेविका द्रोपदी के साथ आई है। द्रोपदी ने भीष्मपितामाह से कहा कि जो आशीर्वाद दिये हैं यह मुझे लगेगा कि नहीं बोले बेटी यह पूजा करते समय आशीर्वाद दिया हूं जो कि अवश्य लगेगा। कहा कि मेरे युद्ध में एक भी पति अगर मारा गया तो हमारे लिए अनर्थ हो जायेगा। कहा कि ठा.अशोक सिंह की जिस तरह की धार्मिक प्रवृत्ति थी उसी प्रवृत्ति के तहत उनके सुपुत्रों ने उनकी पुण्यतिथि तीन साल से वैसे ही मना रहे हैं। कहा कि संसार में बहुत कम ही लोग होते हैं जिनके जाने पर उन्हें याद किया जाता है। स्व.अशोक सिंह का व्यक्तित्व ही एक अलग था। जिसके कारण उनके जाने के बाद भी परिवार को प्रेरणा मिल रही है और समाज के लोग उनको आज भी याद कर रहे हैं। डॉ.आरपी ओझा ने स्व.अशोक सिंह की तीसरी पुण्यतिथि के तीसरे दिन राम-रावण युद्ध का मार्मिक वर्णन किया।
कहा कि रावण प्रकांड विद्वान था लेकिन सिर्फ उसके अंदर कमी थी चरित्र की। वह माता सीता का हरण नहीं किया होता तो न तो युद्ध होता है और न ही वह सुरधामपुर जाता। राम रावण युद्ध छिड़ा और जब मेघनाथ के बाण से लक्ष्मण मूर्छित होकर गिर गए तो उस समय राम भी विचलित हो गये और कहने लगे कि अयोध्या जाकर मां सुमित्रा को मैं क्या मुंह दिखाऊंगा और क्या जवाब दूंगा। भगवान राम के सेवक हनुमान जी हिमालय पर्वत पर जाकर और संजीवनी बूटी लेकर चले तो वह दिगभ्रमित हो गये। उसी दौरान भरत को यह आभास हुआ कि अयोध्या पर कोई हमला कर रहा है और उन्होंेने तरकश से बाण छोड़ दिया और हनुमान जी पहाड़ लेकर गिर पड़े और राम राम कहने लगे। जब हनुमान ने भरत को सारी बाते बताई तो भरत जी ने अपने तरकश पर बैठाकर इस तरह से भेजा कि सूर्योदय होने से पहले संजीवनी बूटी लेकर पहुंच गये और सुखेन वैद्य को ले आये तब जाकर लक्ष्मण का मूर्छा समाप्त हुआ।
इस तरह से कई संकटों में भगवान राम के सेवक के रूप में हनुमान जी ने जो कार्य किया उसे आज के समाज को सीख लेने की जरूरत है। पूर्णाहुति के बाद भगवान राम की आरती हुई और भक्तों को प्रसाद वितरण किया गया। भंडारे का भी आयोजन हुआ जिसमें काफी लोग श्रद्धांजलि देने के लिए पहुंचे थे और कथा के समापन के बाद भंडारे में प्रसाद भी ग्रहण किया। अशोक सिंह के बड़े पुत्र टीडीपीजी कॉलेज के प्रबंधक राघवेंद्र प्रताप सिंह ने आरती की।
इस मौके पर लोकसेवा अयोग के सदस्य डॉ.आरएन त्रिपाठी, मंंत्री गिरीशचंद्र यादव, भाजपा के वरिष्ठ नेता ज्ञानप्रकाश सिंह, माउंट लिटरा जी स्कूल के डायरेक्टर अरविंद सिंह, भाजपा प्रत्याशी कृपाशंकर सिंह, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता ओमप्रकाश सिंह, पूर्व ब्लॉक प्रमुख सुरेंंद्र प्रताप सिंह, पूर्व विधायक सुरेंद्र प्रताप सिंह, पूर्व प्राचार्य समरबहादुर सिंह, विनोद सिंह, एकांउटेंट डॉ.अजय सिंह, शिवेंद्र प्रताप सिंह, देवंेद्र प्रताप सिंह, राघवेंद्र प्रताप सिंह, डॉ.विजय सिंह, विनय सिंह, पूर्व सांसद कृष्णप्रताप सिंह, डॉ.महेंद्र प्रताप सिंह, जिलाध्यक्ष पुष्पराज सिंह सहित काफी संख्या मंें भक्तगण उपस्थित रहे।
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