महर्षि जमदग्नि की तपस्थली व परशुराम की जन्मस्थली है जौनपुर | #NayaSaveraNetwork

महर्षि जमदग्नि की तपस्थली व परशुराम की जन्मस्थली है जौनपुर | #NayaSaveraNetwork

  • तमाम ऐतिहासिक धरोहर समेटे है मां शीतला चौकियां की नगरी
  • शीराज-ए-हिन्द से नवाजा गया है भारत की राजधानी रहने वाला यह जनपद

कृष्णा सिंह 

@ नया सवेरा नेटवर्क

जौनपुर। मुगल बादशाह शाहजहां द्वारा शीराज-ए-हिन्द के खिताब से नवाजा गया जौनपुर जहां एक ओर शिक्षा के क्षेत्र में मध्यकालीन भारत के इतिहास में अपनी जगह स्थापित करता है, वहीं अपनी ऐतिहासिक इमारतों जैसे शाही किला, अटाला मस्जिद, झंझरी मस्जिद, शाही पुल के अलावा पूर्वांचल की शक्तिपीठ मां शीतला चौकियां धाम, मैहर माता मंदिर, धर्मापुर के प्राचीन शिव मंदिर के साथ ही अन्य तमाम ऐतिहासिक धरोहरों को सजोये हुये है। 

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प्राचीनकाल में महर्षि यमदग्नि (भगवान परशुराम के पिता) की तपोस्थली एवं कालान्तर बुद्ध काल के क्रिया-कलापों में महत्वपूर्ण स्थान मच्छिका सण्ड (मछलीशहर) एवं कीटगिरि (केराकत) को अपने में समेटे इस शहर का नाम जौनपुर संस्थापक जूना शाह के नाम पर सन् 1360 में रखा गया। 17वीं एवं 18वीं शताब्दी में सूती वस्त्र एवं इत्र उघोग के लिये प्रसिद्ध यह जनपद 15वीं शताब्दी में जहां महादेवी आंदोलन में सक्रिय भूमिका का निर्वाह करता था, वहीं उसे अंतिम शर्की शासन हुसैन शाह शर्की का नाम संगीत रागो हुसैनी, कन्हारा एवं टोडी की उत्पत्ति के साथ जोड़ा जाता है। 
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मुगल शासनकाल में ही यह जनपद भारत की राजधानी थी। किवदंती है कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में रोटी और कमलरूपी प्रतीक की योजना जौनपुर के मौलाना करामत अली की ही थी। आदि गंगा गोमती के दोनों तटों पर बसा यह शहर वर्तमान में अपनी 6 तहसीलों एवं 4038 वर्ग किमी क्षेत्रफल के साथ उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े जिलों में है। इसमें 2 लोकसभा क्षेत्र, 10 विधानसभा क्षेत्र, 6 तहसील एवं 21 विकास खण्ड है।
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वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार पूरे जिले में 1935576 पुरूष व 1975729 महिला हैं जिनमें साक्षरता का प्रतिशत क्रमशः पुरूष 77.16 और स्त्री 43.53 है। जिले में सामुदायिक विकास खण्ड 21, न्याय पंचायत 218, ग्रामसभाएं 1514 और नगर पालिका परिषद 3 तथा नगर पंचायत 5 हैं। इसी तरह कुल डाकघर (ग्रामीण व नगरीय) 428 (404.24), व्यावसायिक बैंकों में राष्ट्रीयकृत की संख्या 91 और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की संख्या 84 हैं। जिला सहकारी बैंक 37 हैं जबकि राज्य सहकारी कृषि एवं ग्राम्य विकास बैंक 5 हैं। शीत भण्डारों की संख्या 19 हैं जबकि किसानों के खेतों की सिंचाई के लिये बनाये गये नहरों की लम्बाई किमी 1647 और राजकीय नलकूप 507 व व्यक्त्तिगत नलकूप तथा पम्पसेट 81398 हैं। पशुपालन की दृष्टिकोण से पशु चिकित्सालय 35 व पशुधन विकास केन्द्र 47 हैं। इसके साथ ही चिकित्सालय एवं औषधालय के बाबत एलोपैथिकों की संख्या 9, आयुर्वेदिकों की संख्या 33, होम्योपैथिकों की संख्या 35, यूनानी की संख्या 8, प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों की संख्या क्रमशः 86 व 8 है जबकि विशेष चिकित्सा के लिये बनाये गये क्षय 1 और कुष्ठ के लिये 1 है। जनपद में अनेकों ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल हैं जिनमें शर्की कालीन इमारतें, सम्राट अकबर द्वारा निर्माण कराया गया शाही पुल और शीतला चौकियां धाम पर्यटकों के मुख्य आकर्षण केन्द्र है। इनके अलावा अन्य भी कई ऐतिहासिक स्थलों का विभिन्न दृष्टियों से अपना विशेष महत्व है।

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  • शीतला चौकियां-

पूर्वांचल की शक्तिपीठ मां शीतला चौकियां देवी का मन्दिर बहुत पुराना है। शिव और शक्ति की उपासना प्राचीन भारत के समय से चली आ रही है। इतिहास के आधार पर यह कहा जाता है कि हिन्दू राजाओं के काल में जौनपुर का शासन अहीर शासकों के हाथ में था। जौनपुर का पहला अहीर शासक हीरा चन्द्र यादव माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि चौकियां देवी का मंदिर कुल देवी के रूप में यादवों या भरों द्वारा निर्मित कराया गया लेकिन भरों की प्रवृत्ति को देखते हुये चौकियां मन्दिर उनके द्वारा बनवाया जाना अधिक युक्ति संगत प्रतीत होता है। भर अनार्य थे और अनार्यों में शक्ति व शिव की पूजा होती थी। जौनपुर में भरों का आधिपत्त भी था। सर्वप्रथम चबूतरे अर्थात् चौकी पर देवी की स्थापना की गयी होगी। संभवत इसीलिये इन्हें चौकिया देवी कहा गया। देवी शीतला आनंददायिनी की प्रतीक मानी जाती है। अतः उनका नाम शीतला पड़ा। ऐतिहासिक प्रमाण इस बात के गवाह हैं कि भरों में तालाब की अधिक प्रवृत्ति थी, इसलिये उन्होंने शीतला चौकियां के पास तालाब का भी निर्माण कराया।

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  • शाही पुल-

तारीख मुइमी के अनुसार जनपद के इस विख्यात शाही पुल का निर्माण अकबर के शासनकाल में उनके आदेशानुसार सन् 1564 ई. में मुनइन खानखाना ने करवाया था। यह भारत में अपने ढंग का अनूठा पुल है और इसकी मुख्य सड़क पृथ्वी तल पर निर्मित है। पुल की चौड़ाई 26 फीट है जिसके दोनों तरफ 2 फीट 3 इंच चौड़ी मुंडेर है। 2 ताखों के संधि स्थल पर गुमटियां निर्मित है। पहले इन गुमटियों में दुकानें लगा करती थीं। पुल के मध्य में चतुर्भुजाकार चबूतरे पर एक विशाल सिंह की मूर्ति है जो अपने अगले दोनों पंजों पर हाथी के पीठ पर सवार है। इसके सामने मस्जिद है। पुल के उत्तर तरफ 10 व दक्षिण तरफ 5 ताखें हैं जो अष्ट कोणात्मक स्तम्भों पर थमा है।

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  • शाही किला-

नगर में गोमती तट पर स्थित इस दुर्ग का निर्माण फिरोज शाह ने 1362 में कराया था। इस दुर्ग के भीतरी फाटक 26.5 फीट ऊंचा तथा 16 फीट चौड़ा है जबकि केन्द्रीय फाटक 36 फीट ऊंचा है। इसके ऊपर एक विशाल गुम्बद बना है। वर्तमान में इसका पूर्वी द्वार तथा अन्दर की तरफ मेहराबें आदि ही बची हैं जो इसकी भव्यता की गाथा कहती हैं। इसके सामने के शानदार फाटक को मुनीम खां ने सुरक्षा की दृष्टि से बनवाया था तथा इसे नीले एवं पीले पत्थरों से सजाया गया था। अन्दर तुर्की शैली का हमाम एवं एक मस्जिद भी है। इस दुर्ग से गोमती नदी एवं नगर का मनोहर दृश्य दिखायी देता है। इब्राहिम बरबक द्वारा बनवाई गई मस्जिद की बनावट में हिन्दू एवं बौद्ध शिल्प कला की छाप है।



  • अटाला मस्जिद-

सन् 1408 ई. में इब्राहिम शाह शर्की ने इस मस्जिद का निर्माण कराया जो जौनपुर में अन्य मस्जिदों के निर्माण के लिये आदर्श मानी गयी। इसकी ऊंचाई 100 फीट से अधिक है। इसका निर्माण सन् 1393 ई. में फिरोज शाह ने शुरू कराया था।


  • झंझरी मस्जिद-

यह मस्जिद नगर के मोहल्ला सिपाह में गोमती के उत्तरी तट पर विद्यमान है जिसको इब्राहिम शाह शर्की ने मस्जिद अटाला एवं मस्जिद खालिस के निर्माण के समय बनवाया था, क्योंकि यह मोहल्ला स्वयं इब्राहिम शाह शर्की का बसाया हुआ था। यहां पर सेना, हाथी, घोड़े, ऊंट एवं खच्चर रहते थे। इसके साथ ही यह सन्तों व पंडितों का स्थल भी था। सिकन्दर लोदी ने इस मस्जिद को ध्वस्त करवा दिया था। सिकन्दर लोदी द्वारा ध्वस्त किये जाने के बाद यहां के काफी पत्थर शाही पुल में लगा दिये गये हैं।

  • लाल दरवाजा- 

नगर के बेगमगंज मोहल्ले में स्थित लाल दरवाजा का निर्माण सन् 1450 ई. में इब्राहिम शाह शर्की के पुत्र महमूद शाह शर्की की पत्नी बीबी राजे ने करवाया था। इमारत का मुख्य दरवाजा लाल पत्थरों से निर्मित है जिसे चुनार से मंगवाया गया था। इमारत का बाहरी क्षेत्रफल 196 गुणे 171 फीट के लगभग है। इसमें मध्य के हर तरफ महिलाओं के बैठने का स्थान है जहां सुन्दर बारीक झझरियां कटी हुई हैं। इसके दो स्तम्भों पर संस्कृत तथा पाली भाषा में कुछ लिखावट उत्कीर्ण है जिसमें संवत् व कन्नौज राजाओं के नामातिरिक्त कुछ विशेष अर्थ नहीं निकलता। मस्जिद की केन्द्रीय मेहराब को ढांकने वाली चादर काफी सुन्दर है। काले पत्थरों पर ‘ला इलाहा इलल्लाहो मोहम्मदुर्रसूलल्लाह’ उभार लेकर उत्कीर्ण है। ऊपर छत पर जाने के 4 रास्ते हैं। महिलाओं के लिये 48 गुणे 44 फीट का पृथक रास्ता है। इस्लामी शैली पर बनायी गयी यह मस्जिद वर्तमान में इस्लामी शिक्षा का उच्च केन्द्र के रूप में प्रतिस्थापित है।


  • चार अंगुल की मस्जिद- 

नगर के मोहल्ला पान दरीबा में स्थित शर्की सम्राट इब्राहिम शाह के शासनकाल में बनवायी गयी थी। इब्राहिम शाह के भाई मलिक खालिस और मलिक मुखलिस द्वारा उस समय के प्रसिद्ध सूफी संत शेख उस्मान शिराजी की शान में सन् 1417 में बनवायी गयी इस मस्जिद के प्रवेश द्वार पर लगे एक पत्थर की विशेषता थी कि बच्चा, बूढ़ा या जवान चाहे जो भी नापे, वह 4 अंगुल का ही रहता था। इस मस्जिद का मुख्य भाग काफी भव्य है तथा बीच में एक बड़ा गुम्बद और दोनांे ओर दो छोटे-छोटे गुम्बद हैं। वर्तमान में इसमें मीनारें नहीं हैं जबकि इसकी छत 30 फीट के 10 खम्भांे पर टिकी हुई है और इसका सिंह द्वार 67 फीट चौड़ा है। सन् 1495 में हुसेन शाह शर्की को पराभूत करने के बाद सिकन्दर लोदी ने जौनपुर में जो तोड़-फोड़ करायी थी। यह मस्जिद भी उसका शिकार थी।

  • शहीद स्मारक- 

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बांकी निशां होगा। शहीद राम प्रसाद बिस्मिल की उक्त पंक्तियां धनियामऊ स्थित शहीद स्मारक पर सटीक बैठती है जहां प्रतिवर्ष 16 अगस्त को लोग क्षेत्र के अमर सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करने आते हैं। अंग्रेजी शासनकाल की मुखालफत करते हुये 16 अगस्त 1942 के दिन भारत माता के अमर सपूतों जमींदार सिंह, राम अधार सिंह, राम पदारथ चौहान व राम निहोर ने इसी स्थान पर ब्रिटिश सरकार की बर्बर गोली का शिकार हो अपना प्राण त्यागा था। वीर शहीदों की याद में 1991 में तत्कालीन भाजपा सरकार के कारागार मंत्री उमानाथ सिंह ने यहां शहीद स्थल का निर्माण कराया जहां लगे शहीद स्तम्भ पर उक्त चारों अमर सपूतों के अलावा 23 अगस्त 1942 को अगरौरा ग्राम में चिलबिल के पेड़ में बांधकर गोरी सरकार द्वारा गोली मारे गये रामानन्द चौहान जैसे शहीदों का जीवन परिचय लिखा गया है।

  • जामा मस्जिद- 

जौनपुर में शाहगंज रोड पर पुरानी बाजार के निकट 200 फीट से भी ज्यादा ऊंचाई लिये हुये यह मस्जिद विशिष्ट शर्कीकालीन उपलब्धि है। इब्राहिम शाह के जमाने में इसकी बुनियाद पड़ चुकी थी तथा विभिन्न चरणों में इसका निर्माण कार्य पूरा हुआ। यह हुसेन शाह वक्त पूर्ण बनकर तैयार हुई। यह मस्जिद काफी विस्तृत आकर्षक व कलात्मक है तथा ऊपर तक पहुंचने के लिये 27 सीढ़ियां हैं। इसका दक्षिणी द्वार पृथ्वी तल से 20 फीट ऊंचा है। इसके भीतरी प्रांगण का विस्तार 219 गुणे 217 फीट है। इसके प्रत्येक दिशा में फाटक है। पूर्वी फाटक को सिकन्दर लोदी ने ध्वस्त कर दिया था। मस्जिद का सम्पूर्ण घेरा 320 फीट पूर्व पश्चिम व 307 फीट उत्तर दक्षिण है। इस मस्जिद की सजावट, मिश्री शैली के बेले, बूटे, मेहराबों की गोलाइयों, कमल, सूर्यमुखी व गुलाब के फूलों का वैचित्रय, जाली आदि दर्शनीय है। जामा मस्जिद मछलीशहर- इस प्राचीन मस्जिद का निर्माण हुसेन शाह शर्की के शासनकाल में हुआ था। इसमें सादगी का बाहुल्य है तथा कोई मेहराब नहीं है। पहले यहां पर एक शिलालेख था जो अब नहीं है। गूजर ताल- खेतासराय से दो मील पश्चिम में प्रसिद्ध गूजरताल है जिसमें आजकल मत्स्य पालन कार्य हो रहा है। इसका चतुर्दिक वातावरण सुरम्य प्राकृतिक है।

  • अन्य इमारतें- 

उपर्युक्त इमारतों के अलावा यहां मुनइम खानखाना द्वारा निर्मित शाही पुल पर स्थित शेर की मस्जिद, इलाहाबाद राजमार्ग पर स्थित ईदगाह, मोहम्मद शाह के जमाने में निर्मित सदर इमामबाड़ा, बरगूदर पुल, जलालपुर का पुल, मडियाहूं का जामा मस्जिद, राजा श्रीकृष्ण दत्त द्वारा धर्मापुर में निर्मित शिवमंदिर, नगरस्थ हिन्दी भवन, केराकत में काली मंदिर, हर्षकालीन शिवलिंग गोमतेश्वर महादेव (केराकत), वन विहार, परमहंस का समाधि स्थल (ग्राम औका, धनियामऊ), गौरीशंकर मंदिर (सुजानगंज), गुरूद्वारा (रासमण्डल), बड़े हनुमान मंदिर (रासमंडल), शारदा मंदिर (परमानतपुर), विजेथुआ महावीर (सूरापुर), कबीर मठ (बडै़या मड़ियाहूं) आदि महत्वपूर्ण हैं।

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1 टिप्पणियाँ

  1. बहुत कुछ समाहित है कुछ चीजें छूटी हैं|जैसे करशूल नाथ सई नदी पर स्थित है|घसीटानाथ बरईपार में हैं| आदि

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