जालना लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र | #NayaSaveraNetwork

  • दानवे6 का दबदबा, जरांगे बनेंगे बाधा!

अजीत कुमार राय 

मुंबई। लोकसभा चुनाव 2024 का रणक्षेत्र पूरी तरह सज चुका है। सभी दल अपने-अपने दिग्गज नेताओं पर दांव आजमा रहे हैं। कोई अपने गढ़ को बचाने की तैयारी में हैं, तो कोई किसी के किले पर अपना कब्जा करने के लिए पूरी ताकत लगा रहा है। इन सबसे परे कुछ लोकसभा क्षेत्र ऐसे भी हैं, जहां कोई विशेष परिवर्तन होता दिखाई नहीं दे रहा है। हालांकि विपक्षी गठबंधन उस सीट पर अपनी विजय पताका फहराने के लिए सारे गणित बैठा रहा है। महाराष्ट्र में एक ऐसी ही सीट है जालना की; जिस पर पिछले पांच लोकसभा चुनावों से केंद्रीय मंत्री राव साहब दानवे मतदाताओं की पसंद बने हुए हैं। हालांकि इस बार परिस्थितियां पहले जैसी पूरी तरह अनुकूल नहीं हैं। क्योंकि जालना संसदीय क्षेत्र मराठा आरक्षण को लेकर लगातार अनशन कर रहे मराठा कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल के आंदोलन का केंद्र बना हुआ है। वहीं वंचित बहुजन आघाड़ी के प्रमुख प्रकाश आंबेडकर ने जरांगे का नाम विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में उछालकर यहां के राजनीतिक माहौल को अलग दिशा दे दी है। अब देखना यह है कि क्या जरांगे चुनावी रणक्षेत्र में उतरते हैं और यदि हाँ तो क्या वे दानवे के विजय रथ को रोक पाएंगे। केंद्रीय मंत्री राव साहब दानवे इस सीट से सन 1999 से सांसद है। उन्होंने इस सीट से न केवल लगातार जीत दर्ज की है बल्कि जीत के अंतर को बढ़ाया भी है। यही कारण है कि पार्टी ने पूरा विश्वास दिखाते उन्हें फिर से उम्मीदवारी दी है। दानवे का राजनीतिक अनुभव वैसे भी काफी वृहद है। सांसद बनने से पहले वे 1990 और 1995 में विधायक भी रहे है। दानवे मोदी सरकार में रेल, कोयला और खान मंत्री हैं। इससे पूर्व वे उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण विवाद और भाजपा के महाराष्ट्र राज्य अध्यक्ष के रूप में भी कार्य कर चुके हैं। ग्राम पंचायत से राजनीति की शुरुआत करने वाले दानवे विभिन्न समितियों एवं संगठन में भी महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं।

  • कांग्रेस-राकां में विवाद, जरांगे पर दांव!

जालना लोकसभा सीट पर परंपरागत रूप से कांग्रेस की दावेदारी रही है। इस आधार पर कांग्रेस अपनी दावेदारी कर रही है। हालांकि पिछले कुछ चुनावों से हार का अंतर लगातार बढ़ता रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां भाजपा के रावसाहेब दानवे, कांग्रेस के विलास औताडे और वंचित बहुजन अघाड़ी के शरद चंद्र वानखेड़े के बीच त्रिकोणीय मुकाबला था। चुनाव में दानवे को 698,019, विलास औताडे को 3,65,204 वोट तथा शरदचंद्र वानखेड़े को 77,158 वोट मिले थे। वहीं दिग्गज मराठा नेता शरद पवार ने गत दिनों यहां एक रैली करके इस बात का संकेत दिया है कि वे भी इस सीट से अपना उम्मीदवार उतार सकते हैं। हालांकि बदली परिस्थितियों में ऐसी संभावना है कि इस बार विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरे। ऐसे पहला दांव चलते हुए वंचित बहुजन आघाडी के प्रकाश आंबेडकर ने कहा है कि जरांगे पाटिल को जालना लोकसभा क्षेत्र से संयुक्त विपक्ष का लोकसभा उम्मीदवार घोषित किया जाए। प्रकाश आंबेडकर ने दावा किया कि अगर जारांगे जालना से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे तो उन्हें हमारा समर्थन रहेगा। अगर राज्य सरकार पर दबाव बनाना है, तो जरांगे को राजनीतिक रुख अपनाना होगा। हालांकि जारांगे ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि राजनीति उनका तात्कालिक एजेंडा नहीं है, लेकिन वह अपने समुदाय के साथ इस प्रस्ताव पर चर्चा करेंगे। “प्रकाश अंबेडकर हमेशा हमारे साथ रहे हैं और मेरे आंदोलन का समर्थन किया है। मैं इस भाव के लिए उन्हें धन्यवाद देता हूं। मेरी प्राथमिकता अपने समुदाय को कोटा दिलाना है।”


  • पहले रही कांग्रेस, फिर भाजपा भारी


जालना पहले निजाम राज्य का हिस्सा था और मराठवाड़ा मुक्ति संग्राम के बाद संभाजीनगर (उस समय औरंगाबाद) की एक तहसील के रूप में भारत का हिस्सा बन गया। जालना जिले की सीमाएं पूर्व में परभणी और बुलढाणा, पश्चिम में औरंगाबाद, उत्तर में जलगांव और दक्षिण में बीड से सटी हुई हैं। जालना लोकसभा सीट के राजनीतिक परिदृश्य की बात करें तो यहां पहली बार 1952 में आम चुनाव हुए थे तब कांग्रेस के हनुमंतराव गणेश राव वैष्णव सांसद चुने गए थे। 1957 में भी कांग्रेस ही रही और सैफ तैयबजी सांसद रहे। इसके बाद यहां 1957 में ही उपचुनाव हुए और पीजेंट एंड वर्कर्स पार्टी ऑफ इंडिया के एवी घरे सांसद निर्वाचित हुए। 1960 के चुनाव में कांग्रेस के रामराव नारायण राव सांसद बने। 1967 में कांग्रेस के वीएन जाधव, 1971 में बाबूराव काले सांसद चुने गए। 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के पुंडलिक हरि दानवे सांसद निर्वाचित हुए। 1980 से 1984 तक यह सीट कांग्रेस के पास रही और बालासाहेब पवार सांसद रहे। 1989 में यह सीट बीजेपी के पाले में चली गई और पुंडलिक हरि दानवे फिर से सांसद चुने गए। 1991 के चुनाव में कांग्रेस के अंकुशराव टोपे सांसद बने। 1996 और 1998 में बीजेपी की फिर से वापसी हुई और उत्तम सिंह पवार सांसद बने। इसके बाद से ही यह सीट बीजेपी के पास ही रही। 1999 से रावसाहेब दानवे सांसद बने। तब से उनका ही सीट पर कब्जा बना हुआ है।

  • मराठा उम्मीदवार बनेंगे मुसीबत

इस सीट पर मनोज जरांगे पाटिल का काफी प्रभाव है। ऐसे में संभावना व्यक्त की जा रही है कि वे न केवल दानवे बल्कि चुनाव आयोग के लिए भी मुसीबत बन सकते हैं। उल्लेखनीय है कि मनोज जरांगे ने राज्य के हर चुनाव क्षेत्र से 400 से अधिक उम्मीदवार खड़े हो ऐसा ऐलान किया है। उनका मानना है कि यदि ऐसा होता है तो फिर ईवीएम के बजाए बैलेट से चुनाव होंगे। इस पर जालना के जिलाधिकारी ने कहा की ईवीएम के जरिए अधिकतम 384 उम्मीदवारों तक ही चुनाव कराना संभव है। यदि इससे अधिक उम्मीदवार होते भी है तो चुनाव विभाग के निर्देश पर जो नियम होंगे उसके अनुसार ही चुनाव कराए जाएंगे। वहीं सुनने में आया है कि प्रशासन को परेशान करने के लिए 25 से अधिक उम्मीदवार अनामत रकम 1-1 रुपए के सिक्के में जमा करने वाले है।

  • कुल 19 लाख 36 हजार 990 मतदाता


जालना लोकसभा चुनाव क्षेत्र में जालना जिले के जालना, बदनापुर और भोकरदन के साथ ही छत्रपति संभाजीनगर के सिल्लोड, फुलंब्री और पैठण विधानसभा क्षेत्र का समावेश है। यहां पर कुल 1192 मतदान केंद्र के साथ ही 69 सहायक मतदान केंद्र सहित कुल 2061 मतदान केंद्र रहेंगे। इनमें से कुल 13 केंद्र संवेदनशील है जहां पर प्रशासन की विशेष नजर रहेगी। 50 प्रतिशत मतदान केंद्रों पर वेबकास्टिंग भी होगी।  जालना लोकसभा चुनाव क्षेत्र में 10 लाख 18 हजार 251 पुरुष मतदाता है जबकी 9 लाख 16 हजार 319 महिला मतदाता है। इसके अलावा 51 तृतीयपंथी मतदान भी है। सेना में शामिल मतदाताओं की संख्या 2 हजार 369 है। इस तरह जालना लोकसभा क्षेत्र से कुल 19 लाख 36 हजार 990 मतदाता है।  18 और 19 वर्ष उम्र के नव मतदाता जो की अपनी जिंदगी का पहला वोट डालेंगे की संख्या 24 हजार 121 है। इनमें पुरुष 15 हजार 601, महिला 8 हजार 518 तथा 2 तृतीयपंथी मतदान का समावेश है।

लेखक जागरूक टाइम्स के एसोसिएट एडिटर हैं।

जागरूक टाइम्स से साभार


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