चंद्रपुर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र | #NayaSaveraNetwork



  • कांग्रेस की इकलौती सीट पर भाजपा की नजर

अजीत कुमार राय 

मुंबई। गोंड साम्राज्य की राजधानी रहे चंद्रपुर का किला फतह करने के लिए देश के दोनों प्रमुख दल अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। दोनों दलों के प्रत्याशियों ने पूरे दमखम के साथ नामांकन भी कर दिया है। कांग्रेस ने चुनावी मैदान में 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से निर्वाचित हुए दिवंगत सुरेश धानोरकर की पत्नी विधायक प्रतिभा धानोरकर को तो भाजपा ने महाराष्ट्र भाजपा के दिग्गज नेता एवं कैबिनेट मंत्री सुधीर मुनगंटीवार को मैदान में उतारा है। यदि चुनावी दृष्टि से देखें तो चंद्रपुर लोकसभा के अंतर्गत 6 विधानसभा राजुरा, चंद्रपुर, बल्लारपुर, वरोरा, वणी और अर्नी शामिल हैं। महाराष्ट्र का यह इकलौता संसदीय क्षेत्र है, जहां से पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को विजयश्री प्राप्त हुई थी। इस सीट से जीत दर्ज करने वाले सुरेश धानोरकर का गतवर्ष निधन हो गया था। इस सीट से भाजपा किसी भी हालत में दर्ज करना चाहती है। यही कारण है कि पिछले चुनाव में प्रत्याशी तथा यहाँ से तीन बार सांसद रहे पूर्व गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर को टिकट न देते हुए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने दिग्गज एवं स्थानीय नेता सुधीर मुनगंटीवार को उम्मीदवार बनाया है।


  • कांग्रेस का गढ़ रहा है चंद्रपुर


पिछले चुनावों के इतिहास पर गौर करें तो यहां कांग्रेस का वर्चस्व रहा है। यहाँ से 1952 में कांग्रेस की टिकट पर अब्दुल्लाभाई मुल्ला तहेराली चुनाव जीते थे। उनके बाद 1957 में वी एन स्वामी चुनाव जीते थे। फिर 1962 में लाल श्याम शाह निर्दलीय जीत दर्ज करने में सफल रहे। लेकिन उनके इस्तीफे के बाद यहां 1964 में उपचुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस ने जीत दर्ज की और जी एम कन्नमवार सांसद बने। फिर 1967 में के एम कौशिक, 1971 में अब्दुल शफी, 1977 में राजेश विश्वेश्वर राव भारतीय लोकदल ने कांग्रेस के लगातार जीत का सिलसिला तोड़ा। लेकिन कांग्रेस के शांताराम पोटदुखे ने शानदार वापसी करते हुए 1980, 1984, 1989 और 1991 में लगातार कांग्रेस को जीत दिलाई। चंद्रपुर लोकसभा सीट पर सबसे पहले बीजेपी की एंट्री 1996 में हुई थी। उस वक्त हंसराज अहीर ने पोटदुखे को 1 लाख वोटों के अंतर से पराजित किया। हालांकि, इसके बाद अहीर साल 1998 के चुनाव में अपनी सीट बरकरार रखने में असफल रहे। कांग्रेस के नरेश पुगलिया ने उन्हें पराजित कर चंद्रपुर लोकसभा सीट पर कब्जा जमाया। वर्ष 1999 में भी पुगलिया ने अपनी जीत कायम रखी। अहिर ने 2004 एवं 2009 के चुनाव में अहीर ने पुगलिया को पराजित किया।


  • चंद्रपुर : 18 लाख 36 हजार मतदाता


चंद्रपुर लोकसभा क्षेत्र में कुल 18 लाख 36 हजार 314 मतदाता हैं।  इसमें 9 लाख 45 हजार 26 पुरुष मतदाता, 8 लाख 91 हजार 240 महिला मतदाता और 48 अन्य शामिल हैं। यहां 85 वर्ष और उससे अधिक आयु के और विकलांग कुल 16621 मतदाता हैं, जिनमें 7117 पुरुष मतदाता और 9504 महिला मतदाता हैं। 


  • भाजपा ने खेला दांव, मुनगंटीवार करेंगे बेड़ा पार!


महाराष्ट्र में ‘मिशन 45’ को लेकर चुनावी मैदान में उतरी भाजपा कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है। यही कारण है कि भाजपा ने चन्द्रपुर लोकसभा सीट से तीन बार सांसद रहे हंसराज अहीर का टिकट काटते हुए सुधीर मुनगंटीवार को उम्मीदवार बनाया है। मुनगंटीवार चंद्रपुर जिले के बल्लारपुर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। मुनगंटीवार महाराष्ट्र की शिंदे सरकार में वन, सांस्कृतिक मामलों और मत्स्य पालन के कैबिनेट मंत्री हैं। उन्होंने पहले फडणवीस सरकार में वित्त और योजना और वन विभागों के कैबिनेट मंत्री के रूप में भी कार्य किया है। इससे पहले, वह 2010 से 2013 तक भाजपा के महाराष्ट्र राज्य अध्यक्ष और मंत्री थे। उनके पास चंद्रपुर और वर्धा जिलों के संरक्षक मंत्री के रूप में अतिरिक्त प्रभार भी है। अब देखना यह है कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने उन पर जो विश्वास दिखाया है। उस पर वे खरे उतरते हुए पार्टी को विजयश्री दिला पाते हैं। सीट की घोषणा होने के बाद कांग्रेस पर हमला बोलते हुए सुधीर मुनगंटीवार ने कहा था, “कांग्रेस कंफ्यूज पार्टी है। सी फॉर कांग्रेस, सी फॉर कन्फ्यूजन, सी फॉर चाइना, कांग्रेस चाइना का ‘मोदी जी हटाओ’ का सपना पूरा करना चाहती है। चीन का सपना पूरा करने के लिए ही कांग्रेस चुनाव लड़ रही है।”


  • प्रतिभा के लिए अपने ही प्रतिघाती


कांग्रेस ने चंद्रपुर से प्रतिभा सुरेश धानोरकर को टिकट दिया है। माना जा रहा था कि कांग्रेस विजय वडेट्टीवार को टिकट देगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सूत्रों का कहना है कि वडेट्टीवार यहाँ से अपनी बेटी शिवानी के लिए टिकट चाह रहे थे। लेकिन पार्टी ने उनकी इस मांग को दरकिनारी करते हुए प्रतिभा पर विश्वास जताया है। वर्तमान में वे जिले के वरोरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। प्रतिभा के लिए भाजपा के साथ अपने पार्टी के असंतुष्ट नेताओं एवं विजय वडेट्टीवार के समर्थकों के विरोध से भी निपटना पड़ेगा, जो उनके लिए बड़ी चुनौती है। अभी कुछ दिनों पूर्व ही उन्होंने पार्टी में विरोध को लेकर बड़ा बयान देते हुए कहा था कि “जब से एमपी साहब गए हैं, मेरी पार्टी के कुछ लोग मेरा विरोध कर रहे हैं। इसी विरोध के कारण उन्होंने मेरे पति की जान ले ली। अब वे मेरे पीछे पड़े हैं। एक जान तो चली गयी लेकिन अब दूसरी जान नहीं जायेगी। मैं इसका ध्यान रखूंगी।” हालांकि टिकट मिलने के बाद उनके सुर बदल गए हैं। अब वे पार्टी हित में एकजुट होकर लड़ने की बात करने लगी हैं। टिकट मिलने के बाद उन्होंने कहा कि, हम सभी मिलकर लड़ने वाले हैं। अगर उन्हें टिकट मिली होती तो पार्टी जो आदेश देती उसका पालन मैं करती, वहीं मुझे उम्मीदवारी मिली है तो पार्टी के आदेश का पालन वह करेंगे।

लेखक जागरूक टाइम्स के एसोसिएट एडिटर हैं।

जागरूक टाइम्स से साभार


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