नागपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र | #NayaSaveraNetwork



  • कभी रहा कांग्रेस का गढ़, अब गडकरी का किला


अजीत कुमार राय 

मुंबई। नागपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र आज देश के सर्वाधिक चर्चित सीटों में से एक है। इसका कारण है इस सीट से भाजपा प्रत्याशी तथा कैबिनेट मंत्री नितिन गडकरी। हालांकि भाजपा की मातृसंस्था कहलाने वाले आरएसएस का मुख्यालय भी नागपुर में ही है। लेकिन इन सबके बावजूद यह लोकसभा सीट कभी कांग्रेस का गढ़ थी। वर्तमान में, नागपुर लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र नागपुर दक्षिण पश्चिम, नागपुर दक्षिण, नागपुर पूर्व, नागपुर सेंट्रल, नागपुर पश्चिम, नागपुर उत्तर (आरक्षित) का समावेश है। नागपुर लोकसभा सीट 1951 में अस्तित्व में आई थी और अनुसूया बाई 1952 में यहाँ से सांसद निर्वाचित हुईं। वो 1956 में भी वापस चुनकर आईं। इसके बाद 1962 में माधव श्रीहरि अणे यहां से निर्दलीय चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। इसके बाद 1967 में नरेंद्र देवघरे कांग्रेस को वापस सीट दिलाने में सफल रहे। विदर्भ को महाराष्ट्र से अलग करने एवं नागपुर को राजधानी बनाने को लेकर उठी आवाज ने कांग्रेस को यहां सत्ता से बाहर कर दिया। परिणामत: 1971 में ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक पार्टी के जंबुवंतराव धोटे चुनाव जीते। लेकिन अपने समर्थकों के बीच विदर्भ के शेर कहलाने वाले जंबुवंतराव धोटे को 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के गेव मनचरसा अवरी से हार झेलनी पड़ी। इसके बाद जंबुवंतराव धोटे कांग्रेस (आई) से जुड़ गए। इसका फायदा उन्हें 1980 के चुनाव में भी मिला जब वे इस सीट से जीतकर पुन: लोकसभा में पहुंचे। 1984 एवं 1989 में कांग्रेस के टिकट पर तथा 1996 में भाजपा के टिकट पर बनवारीलाल पुरोहित यहां से चुनाव जीते। वहीं 1991 में कांग्रेस की दत्ता मेघे ने इस सीट का संसद में प्रतिनिधित्व किया। 1998 से 2014 तक यहां से कांग्रेस के विलास मुक्तेमवार लगातार चार बार सांसद रहे।


 


  • गडकरी ने रोका मुत्तेमवार का विजय रथ


2014 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपने पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को नागपुर का मुश्किल किला फतह करने की जिम्मेदारी सौंपी। इस जंग को नितिन गडकरी ने बड़ी ही मेहनत से लड़ा और कांग्रेस को 3 लाख वोटों से मात दी। इन चुनावों में गडकरी को 5,87,767 वोट मिले थे और कांग्रेस के विलास मुत्‍तेमवार को 3,02,939 वोट मिले। वहीं 2019 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने नितिन गडकरी को एक बार फिर से इसी सीट पर उतारा। उन्होंने पार्टी का भरोसा कायम भी रखा और दो लाख से भी ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव जीतकर दोबारा सांसद चुने गए थे। इन चुनावों में उन्हें 660,221 वोट मिले थे। वहीं कांग्रेस ने उनके खिलाफ उनके ही शिष्य कहे जाने वाले नाना पटोले को मैदान में उतारा था। पटोले भाजपा के नेता रह चुके हैं और गडकरी को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। वे भाजपा के पूर्व सांसद भी रह चुके हैं। उन्हें 4,44,212 ही मत मिल सके।


  • गडकरी के काम को सबने सराहा


मोदी सरकार में सड़क परिवहन और राजमार्ग, जहाजरानी, जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री नितिन गडकरी के देश का निर्माता एवं विकास पुरुष बताया जा रहा है। उन्होंने पूरे देश में सड़कों का जो जाल बिछाया है, उसकी चर्चा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रही है। गडकरी के प्रशंसक हर पार्टी के नेता हैं। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने साल 2018 में गडकरी को चिट्ठी लिखकर उनकी ओर से रायबरेली में किए गए विकास कार्यों की सराहना की थी और उन्हें धन्यवाद भी कहा था। शरद पवार ने एक कार्यक्रम में कहा था, “मौजूदा सरकार में कुछ मंत्री ऐसे हैं, जिनका काम निर्विवाद है, जैसे नितिन गडकरी। अगर हम उनके पास कोई मुद्दा लेकर जाते हैं, तो वह उसकी अहमियत देखते हैं, न कि उसे बताने वाले व्यक्ति को।” सबकी आलोचना करने वाले संजय राऊत ने भी पत्रकारों से बातचीत में कहा था, “नितिन गडकरी मोदी कैबिनेट के अहम नेता और काबिल मंत्री हैं। देश में उनका काम दिख रहा है, वह भविष्य के नेता हैं।” 


  • “वोट देना है तो दो, लेकिन…!”


वाशिम में एक सड़क का उद्घाटन करने पहुंचे केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि “मैंने इस लोकसभा चुनाव में सोच लिया है कि बैनर-पोस्टर नहीं लगाएंगे। चाय पानी भी नहीं करवाएंगे, वोट देना है तो दो…, नहीं तो मत दो। तुमको माल-पानी भी नहीं  मिलेगा। लक्ष्मी दर्शन नहीं होंगे। देशी विदेशी भी नहीं मिलेगी। मैं पैसा खाऊंगा भी नहीं और खाने भी नहीं दूंगा, लेकिन तुम्हारी सेवा ईमानदारी से करूंगा। यह विश्वास करिए।”


 


  • शिवसेना (यूबीटी) ने दिया था ऑफर


भाजपा की सूची जारी होने से पहले अटकलों का बाजार खूब गर्म था और ऐसी चर्चा जोरों पर थी कि शायद गडकरी को नागपुर सीट से टिकट ही न मिले। ऐसे में शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भी नितिन गडकरी को पार्टी में आने का ऑफर देते हुए कहा था, “गडकरी जी भाजपा छोड़ दीजिए, हम आपको एमवीए से चुनाव जितवाकर लाएंगे। आप उन्हें दिखा दीजिए की महाराष्ट्र क्या है। महाराष्ट्र कभी दिल्ली के आगे झुका नहीं है।” हालांकि इस ऑफर को गडकरी ने बड़े ही चुटिले अंदाज में खारिज कर दिया था।

  • कांग्रेस विधायक ठाकरे देंगे चुनौती


गडकरी का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस ने यहाँ नागपुर पश्चिम सीट से विधायक विकास ठाकरे को मैदान में उतारा है। गडकरी के खिलाफ उतारे जाने पर कांग्रेस नेता विकास ठाकरे ने कहा, “कांग्रेस पार्टी ने मुझ पर विश्वास जताया, मैं इसके लिए आभारी हूं। यह सीट वीआईपी नहीं है और चुनाव में कुछ भी चुनौती नहीं है। मतदाता कभी नहीं बताते कि वे किसे वोट देंगे। कौन जीतेगा यह कभी स्पष्ट नहीं होता है। यह चुनाव विचारधाराओं की लड़ाई है और मेरा मानना है कि हर कोई जानता है कि नागपुर किस विचारधारा का समर्थन करेगा।” विकास ठाकरे नागपुर सिटी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और एआईसीसी के सदस्य भी हैं। उनकी पहचान एक कर्मठ नेता के रूप में होती है। यही कारण है कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने उन पर विश्वास जताया है।


  • अपनों से ही परेशानी


विधायक ठाकरे को वर्तमान सांसद गडकरी को मजबूत चुनौती देने से पूर्व अपने पार्टी के ही नेताओं की चुनौतियों से भी लड़ना पड़ेगा। विकास ठाकरे आज भले ही नागपुर पश्चिम सीट से विधायक हैं, लेकिन उनकी राजनीति मुख्य रूप से नागपुर महानगरपालिका पर ही केंद्रित रही है। जमीनी नेता होने, स्थानीय लोगों में पहुँच, उनकी मजबूती है। लेकिन उनकी यही विशेषता उनके लिए मुश्किलें भी पैदा करती रहती है। क्योंकि नागपुर में सक्रिय अथवा प्रभाव रखने वाले उनकी ही पार्टी के कई नेताओं को वो पसंद नहीं है। इन नेताओं में पूर्व मंत्री सतीश चतुर्वेदी, नितिन राऊत, अहमद का नाम उल्लेखनीय है। अब देखना यह है कि दो-दो मोर्चों पर एक साथ लड़ते हुए ठाकरे गडकरी को कितने मजबूती से चुनौती दे पाते हैं? यह चुनाव उनके राजनीतिक भविष्य के लिए बेहद निर्णायक हो सकता है। फोटो : विकास ठाकरे

लेखक जागरूक टाइम्स के एसोसिएट एडिटर हैं।

जागरूक टाइम्स से साभार

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