फिल्म जगत सनातन का दुश्मन | #NayaSaveraNetwork



नया सवेरा नेटवर्क

 वैसे तो फिल्में विश्व में बहुत बनती हैं|सभी अपनी भाषा अपनी सभ्यता के अनुसार फिल्में बनाकर अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं|एक जमाना था जब फिल्मों में जाना काम करना बुराई मानी जाती थी|सम्भ्रांत परिवार के लोग फिल्मों में अभिनय करने नहीं जाते थे|क्योंकि न तब इतना मान था न धन ही था|लेकिन फिल्में अच्छी और सुसंस्कृत बनती थी|समाज को जीने रहने का तरीका बताती थीं|बड़े छोटे का महिमामंडन करती थी|सनातन पर चोट नहीं करती थी|इसलिए फिल्मों की महत्ता और उसमें लोगों की रुचि बढ़ने लगी|और धीरे धीरे फिल्मों में काम करने वाले अकूत धन कमाने लगे|अब आलम यह है कि आज सभी अभिनेता अभिनेत्री बन कर खूब धन कमाने में लगे हैं|धन के साथ साथ मान भी खुब होने लगा है|आज किसी व्यक्ति से पूँछो कि देश का शिक्षा मंत्री कौन है तो आधे से अधिक बगले झाँकने लगे गें|

वही फिल्मी कलाकारों के बारे में सभी उनकी कुण्डली बता देंगे|इतना अधिक प्रभाव आज कल फिल्मों का लोगों पर है|पड़ना भी लाजिमी है|क्योंकि कल्पनालोक में जीने वालों के लिए फिल्म एक साकार रूप दिखती है|लोग उसी में अपने को पिरोना चाहते हैं|फिल्म देखकर ही लोग बहुत कुछ सीखते हैं|और उसी के जैसा बनना चाहते हैं|इसलिए अच्छे बुरे कार्य भी करते हैं|मानव मन पर इसका गहरा असर दिखाई दे रहा है|जैसे जैसे फिल्मों में धन वर्षा बढ़ी,वैसे वैसे फिल्में लीक से हटकर बननी शुरू हो गईं|फिल्मकार धन कमाने के चक्कर में समाज को बिद्रुपता की तरफ धकेलना शुरू कर दिए|

        अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर,महिला सशक्तीकरण के नाम पर भोंदापन और अश्लीलता परोसना शुरू कर दिए|जो अंग महिलाओं के लोग बंद कमरे में नहीं देख पाते थे वह फिल्मों के जरिए सरे बाजार देखने को मिलने लगा|हमारे भारत की फिल्में दना दन सनातन संस्कृति को रौंदते हुए धन कमाने की पिपासा में आगे बढ़ती रहीं|खास बात यह है कि भारत में हिन्दी फिल्मों के द्वारा जितना सनातन संस्कृति पर कुठाराघात हो रहा है

उतना किसी भी धर्म संस्कृति पर नहीं हो रहा|दूसरे की धर्म संस्कृति को छूने की किसी भी फिल्मकार में आज तक हिम्मत नहीं दिखी|सनातन संस्कृति की ऐसी तैसी करने के लिए सनातनी फिल्मकार ही सबसे आगे रहे हैं|अक्सर फिल्मों में सनातनी ब्राह्मण को पाखंडी ढोंगी जोकर बनाकर पेश किया जाता है|और हम सनातनी विरोध की बजाय ताली बजाके उनका उत्साह बढ़ाते जा रहे हैं|जो सनातन के दुश्मन है|सनातन संस्कृति की ऐसी तैसी कर रहे है|जिस सनातन संस्कृति में छोटे बड़े का लिहाज गौरव की बात होती थी,आज कहाँ दिख रहा है|कारण फिल्मों में इस तरह से बताया दिखाया जा रहा है|अब लोग अभद्र बनना ही अपनी शान समझने लगे|जिस तरह से सनातनी देवी देवताओं का अपमान मूर्ति पूर्ति पूजा को ढकोसला आदि आदि बताकर अपमानित किया जाता है|और हम सनातनी उसी पर ताली बजाते हैं|यह सनातनियों को चुल्लू भर पानी में डूब मरने के बराबर है|हम सनातनियों में भेद उत्पन्न करने के लिए विगत सरकारों ने ऐसे फिल्मकारों को खूब प्रोत्साहित करती रहीं,जो सनातन संस्कृति की बखिया उधेड़ता रहा|सरकार फिल्म के जरिये हम सनातनियों में विष घोलती रही और हम सनातनी ताली बजाते रहे|

      फिल्मों के जरिए ही पहले हम सनातनियों के परिवार तोड़े गये|सास बहू का किस्सा दिखा दिखा कर सास बहू में तकरार उत्पन्न कराई गई|हमारी भारतीय फिल्मों में सास को इतना क्रूर बताया गया कि जिसकी सीमा ही नहीं रही|ननद भौजाई के रिस्ते में देवर भौजाई के रिस्तों को तार तार किया गया|और हम सनातनी यह सब देखकर ताली बजाते रहे|संसार में परिवार क्या होता है,परिवार कैसे चलता है|उसका महत्व क्या है|यह भारत के अलावाँ विश्व में कहीं नहीं दिखता|उसी भारत में फिल्मों की बदौलत परिवार छिन्न भिन्न हो गये|लोग एकाकी बनते जा रहे हैं|इसी तरह फिल्मों में सवर्ण और अन्य जातियों में यह दिखाकर भेद पैदा किया कि सवर्ण बड़े ही क्रूर होते हैं|और अन्य जातियों पर जुल्म करते हैं|जबकि ऐसा था नहीं|यह गलत धारणा विगत सरकारों की मिलीभगत से हमारे देश की व सनातन की खूबसूरती को छिन्न भिन्न करने के लिए हमें दिखाया व समझाया गया|और हम सनातनी वही किये जो वो दिखाते गये|एक कहावत है कि कौवा कान ले गया,हमने कान नहीं तपासा कौवा को खदेड़ लिया|हम कौवा के पीछे यदि भाग रहे हैं तो यह फिल्म का ही कमाल है|हमने न कायदे से पढ़ा न देखा न समझा|और कूद गये उनकी सुलगाई हुई भट्ठी में|

          वहीं और किसी धर्म संस्कृति के बारे में आज तक किसी भी फिल्म में माखौल उड़ाते नहीं देखा|न ही कभी ईश निंदा करते किसी फिल्म में मैने तो कम से कम नहीं देखा|आज तक किसी फिल्मकार में उनकी गंदगी दिखाने की हिम्मत नहीं हुई|उनके परिवारों में क्या हो रहा है|वहाँ महिलायें किस तरह जानवरों जैसा जी रही हैं|कितनी जलालत झेल रही हैं|इस विषय को न कभी फिल्मकारों को दिखाने हिम्मत हुई न विद्वान हित चिंतकों को|न विगत सरकारों की हिम्मत हुई|उनकी गंदगी को भी फिल्मकारों विद्वानो ने अच्छाई बनाकर सबके सामने पेश किया|और उसे खूब महिमामंडित भी किया|वहीं हमारी अच्छाई को बिद्रुप बनाकर पेश किया|हमारे सनातनी पर्व को कुरीति बता कितने तो बंद करवा दिए|आज हमारे युवक युवतियों में खासकर युवतियों को जितना बेलेन्टाइन डे जानकारी में है,उतना करवा चौथ नहीं|जितना थर्टीफस्ट की जानकारी है,उतना गुड़ी पाड़वा की नहीं|और सब बड़ी ही चालांकी द्वारा सनातन संस्कृति को नष्ट भ्रष्ट ध्वस्थ करने के लिए विदेशी धनकुबेरों अधर्मी माफियाओं द्वारा फिल्मों के जरिए किया जा रहा है|और हम सनातनी उसी की हाँ में हाँ मिलाये अपनी संस्कृति से विमुख अपसंस्कृति की तरफ आँख मूँदे बढ़े जा रहे हैं|

    आधुनिकता महिला सशक्ती करण व अभिव्यक्त के नाम पर हमारे घर की सनातनी महिलायें कुसंस्कृति अपनाती जा रही हैं|वहीं अन्य धर्मों की संस्कृति आज भी वहीं चरम पर है|वहाँ आज भी उनकी वही विद्रुप संस्कृति समान रूप से लागू है|यदि कोई हेर फेर की कोशिस भर करता है तो शर तन से जुदा हो जाता है|और हम सनातनी अपने ही माँ बाप को अपमानित करने वालों के साथ खड़े होकर ताली बजाते हैं|हम सनातनी अपनी ही संस्कृति को दकियानूसी बताकर रौंद रहे हैं|

    इसके मूल में जब हम झाँकते हैं कि यह विद्रुपता हम सनातनियों में क्यों आ रही है तो,पता चलता है कि यह विद्रुपता फिल्मों के द्वारा ही सनातनियों में पैठ बनाई है|क्योंकि मानव मन सत्य कभी स्वीकार नहीं करता|यदि उसे चाँप के न बताया जाय|और झूठ को कहने की बताने की जरूरत ही नहीं पड़ती|वह झट से अंगीकार कर लेता है|हमारी हिन्दी फिल्मों ने सनातन के साथ व सनातनियों के साथ कालांतर से वही करती आ रही हैं|और हमारे धर्म के ठेकेदार शंकराचार्य आदि लोगों ने कभी भी इस विषय पर खुलकर न सामने आये|न ही खुलकर विरोध किये|जिस तरह से हमारे कथित शंकराचार्यों ने श्रीराम मंदिर के उद्घाटन का मुखर होके विरोध किये|उस तरह से कभी भी सनातन विरोधी फिल्मों का विरोध तो छोड़िए एक शब्द बोले तक नहीं|वहीं अन्य धर्म पंथों के धर्मगुरुवों व ईश के बारे में या उनकी संस्कृति के बारे में जरा भी इधर उधर हुआ कि बवाल हो जाता है|फतवे जारी हो जाते हैं कि हमारे ईश निंदक या हमारी संस्कृति निंदक का शर तन से जुदा हो|वही हमारे सनातनी झंडाबरदार मौन साधे रहते हैं|इसलिए फिल्मकारो के मन बढ़ते गये और सनातन संस्कृति को रसातल में धकेलते गये|और कुसंस्कृति को बढ़ावा देकर भारत में स्थापित करते गये|मनोरंजन के नाम पर आज भी फिल्मकार सनातन के दुश्मन बने हुए हैं|और सनातनी धर्मध्वजवाहक आज भी मूक बने देख रहे हैं|

पं.जमदग्निपुरी


*एस.आर.एस. हॉस्पिटल एवं ट्रामा सेन्टर स्पोर्ट्स सर्जरी डॉ. अभय प्रताप सिंह (हड्डी रोग विशेषज्ञ) आर्थोस्कोपिक एण्ड ज्वाइंट रिप्लेसमेंट ऑर्थोपेडिक सर्जन # फ्रैक्चर (नये एवं पुराने) # ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी # घुटने के लिगामेंट का बिना चीरा लगाए दूरबीन  # पद्धति से आपरेशन # ऑर्थोस्कोपिक सर्जरी # पैथोलोजी लैब # आई.सी.यू.यूनिट मछलीशहर पड़ाव, ईदगाह के सामने, जौनपुर (उ.प्र.) सम्पर्क- 7355358194, Email : srshospital123@gmail.com*
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