जौनपुर: बहु के साथ बेटी जैसा बर्ताव करे सास:शांतनु महाराज | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
मंथरा की बुद्धि बदलने के लिए सरस्वती को आना पड़ा अयोध्या
जिस घर में रामचरित मानस का पाठ होता है वहां नहीं आती है दरिद्रता
राम कथा के पांचवे दिन महाराज ने सुनाए कई प्रसंग
जौनपुर। बीआरपी इंटर कॉलेज के मैदान में भाजपा के वरिष्ठ नेता ज्ञान प्रकाश सिंह द्वारा आयोजित की गई श्री राम कथा के पांचवे दिन शांतनु महाराज ने कई प्रसंगों को बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया। जनकपुर में जनक जी बारात की विदाई जैसे साधुओं की विदाई होती है उस ढंग से की। राजा दशरथ जाने के लिए कहते रहे लेकिन एक दिन और रूक जाईये और एक दिन और रूक जाईये कहकर एक महीने तक रोक लिए। जनकपुर से बारात लौटकर अयोध्या आई। राजा दशरथ और माता कौशिल्या अपनी बहुओं को बेटियों की तरह बर्ताव किया। शांतनु महाराज ने कहा कि समाज में सास बहु का विवाद दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। सास को बहु को अपने बेटी जैसा मानना चाहिए और बहु को भी अपनी सास को अपनी मां जैसा बर्ताव करना चाहिए। इस तरह का माहौल होने पर वह घर अयोध्यामय हो जायेगा। शांतनु महाराज ने कहा कि राजा दशरथ का यह स्वभाव था कि वह बड़ी बड़ी सभाओं मंे भी आईने में अपना चेहरा देखते थे।
एक दिन वह आईने में देखा कि कान के पास बाल पक गया है तो उनको यह चिंता हुई कि अब मेरी अवस्था राजगद्दी संभालने की नहीं है अब यह जिम्मेदारी बड़े पुत्र राम को दी जाये। यह विचार लेकर राजा दशरथ गुरू वशिष्ठ के पास पहुंचे और उन्होंने कहा गुरूदेव अब मेरी अवस्था जिम्मेदारी संभालने की नहीं है और राम को राजा बना दिया जाये तो गुरू वशिष्ठ खुशी से विह्वल हो गये लेकिन राजा दशरथ चाह रहे थे कि जल्द हो जाये। उन्होंने गुरू वशिष्ठ से कहा कि कल ही कर दिया जाये। राज्याभिषेक की तैयारी चल रही थी। मंथरा की बुद्धि बदलने के लिए सरस्वती को अयोध्या जाना पड़ा और मां सरस्वती ने मंथरा की बुद्धि इस तरह बदली की वह माता कैकेई को इस तरह से ला दिया कि राज्याभिषेक का पूरा माहौल ही बदल गया। कैकेई कोप भवन में जाती है इसकी सूचना राजा दशरथ को लगती है तो वह कोप भवन को जाते हैं और क ैकेई को राम के राज्याभिषेक की सूचना देते हैं लेकिन मंथरा ने कैकेई की इस तरह बुद्धि बदल दी कि वह अपने दो वरदानों को राजा दशरथ को याद दिलाते हुए मांग की। जैसे ही कैकेई ने पहला वरदान मांगा कि राम को चौदह वर्ष का बनवास हो और दूसरा वरदान मांगी कि भरत को राजगद्दी हो। राजा दशरथ यह सुनते ही द्रवित हो गये और अपने कक्ष में चले गये। शांतनु महाराज ने कहा कि जिस घर में रामचरित मानस का पाठ लोग करते हैं उस घर मे कभी दरिद्रता नहीं आती है। उन्होंने यह कहा कि दु:ख में सुमिरन सब करे सुख में करेै न कोई।
जो सुख में सुमिरन करै तो दु:ख काहै को है। सुख मिलने पर भगवान का भजन करते रहना चाहिए। काल करै सो आज करै, आज करै सो अब। क्षण में प्रलय होत है बहुरे करोगे कब। यह उदाहरण महाराज जी ने रावण के क्रियाकलाप पर दिया कहा कि जब रावण ने मां सीता का अपहरण कर लंका में ले गया तो उनकी पत्नी मंदोदरी ने कहा कि मां सीता को वापस कर दीजिए लेकिन रावण अपनी पत्नी से कहता रहा कि कल कर देगें लेकिन कल नहीं आया और पूरी लंका समाप्त हो गई। कहा कि जब कोई पद मिल जाये तो आदमी को गंभीर हो जाना चाहिए और उस गरिमा को बनाये रखना चाहिए। इस मौके पर केंद्रीय कैबिनेट मंत्री डॉ.महेंद्रनाथ पांडेय, एमएलसी विनीत सिंह, कुलपति डॉ. वंदना सिंह, आयोग के सदस्य डॉ.आरएन त्रिपाठी, बीएसए डॉ.गोरखनाथ पटेल, विनीत सेठ, टीडीपीजी कॉलेज के प्रबंधक राघवेंद्र प्रताप सिंह, डॉ.वीएस उपाध्याय, राकेश श्रीवास्तव, अरविंद सिंह, अमित सिंह, दीपक सिंह, पूर्व ब्लॉक प्रमुख संदीप सिंह, रजनीश श्रीवास्तव, ऋषि सिंह सहित हजारांे महिला व पुरूष श्रद्धालु मौजूद रहे।



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