नया सवेरा नेटवर्क
खुटहन जौनपुर। क्षेत्र के विद्यालय से पढ़ लिखकर विभिन्न प्रांतों में दशकों तक कमिश्नर के पद पर सेवा देने के बाद अवकाश प्राप्त कर चुके सौरइयां गांव निवासी वेदानंद ओझा का मानना है कि अपने पिछड़ेपन के लिए काफी हद तक जिम्मेदार खुद ग्रामीण ही है। तमाम सरकारी सुविधाओं के बाद भी आलस्य और अकर्मण्यता के कारण वे विकास की मुख्य धारा से दूर होते जा रहे हैं। उक्त बातें श्री ओझा ने पत्रकारों से वार्ता करते हुए कही। उन्होंने कहा कि हम सरकारी सेवा में उच्च पद पर आसीन रहते हुए भी गांव से हमेशा लगाव बनाए रखे। लोगों को हमेशा पढ़ाई के लिए प्रेरित भी करते रहे। कुछ में सुधार दिखा तो कई लोग पीठ पीछे बुराइयां भी करते रहे। कहा जाता है कि भारत कि आत्मा गांवों में बसती है। यही हमारे देश के अन्नदाता है। इसी लिए सरकार इनके उत्थान के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास के अलावा तमाम योजनाएं संचालित कर रही है। छोटे मोटे उद्योग धंधों के लिए तीस से चालीस प्रतिशत तक की छूट पर ऋण भी मुहैया करा रही है। बावजूद इसके वे हाथ पर हाथ धरे आलस्य की चादर ओढ़े गांव में बैठे हुए हैं। इनके भीतर स्पर्धात्मक क्षमता गिरती जा रही है। ईष्या और द्वेष बढ़ रहा है। इसी का परिणाम है कि वे खुद विकास की धारा से दूर होते जा रहे हैं। उन्होंने अपने बचपन की यादों को समेटते हुए कहा कि उस समय जीविका का मुख्य साधन खेती ही था। गांव में बीस प्रतिशत परिवार थे जिनके पास अच्छी कास्तकारी थी। बाकी परिवार बंटाई पर खेती या मजदूरी करता था। बेतहाशा जनसंख्या बृद्धि से आज पूर्वांचल की हालत यह है कि अब पांच फीसदी से कम ही बड़े किसान रह गये है। ऐसे में एक दो बीघे की खेती से गुजारा कर पाना नामुमकिन है। विडंबना है कि ग्रामीण इसे समझ कर भी नासमझ बने हुए हैं। जो उन्हें पतन की ओर ले जा रहा है।
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