जौनपुर: मन मनुष्य का दोस्त भी है, दुश्मन भी: प्रो. अखिलेश्वर | #NayaSaveraNetwork


नया सवेरा नेटवर्क

जौनपुर। पूर्वजों ने चौरासी लाख योनियों की गणना के साथ ही मनुष्य योनि को श्रेष्ठ साबित किया। कारण स्पष्ट है मनुष्य बल, बुद्धि, विद्या को धारण करने का सौभाग्य व सामर्थ्य प्राप्त कर सकता है। लेकिन कैसे -यह भी ऋषि मुनियों ने सिद्ध करके बताया है। चार युगों, चार वेदों, चार वर्णों, चार पुरुषार्थों को सनातन धर्म रक्षकों ने प्रचारित-प्रसारित करने के लिए अनेकानेक पंथों यथा कर्म, उपासना, ज्ञान भक्ति, यज्ञ, तप, योग, मंञ, तंञ, यंञ के साथ साथ अनेकानेक मार्ग प्रशस्त किया है। 

हम कलयुगी मनुष्यों की दृष्टि, सोंच, विचार, केवल यंञ (कल-कारखाने) अर्थात मशीन तक सिमट कर रह गया है। हम स्वयं अपने जीवन को यंञवत मशीन की तरह संचालित करने के आदि हो गये हैं। 

जबकि अपने पूर्वजों, ऋषि - मनीषियों जिनके वैज्ञानिक अनुसंधानों पर किसी सिद्ध आधुनिक वैज्ञानिक ने प्रश्न खड़ा करने के बजाय उन्हीं प्राचीन अनुसंधानों के सहारे आधुनिक काल के मनुष्यों को आधुनिक भाषा में हमें समझाने में सफल हो रहे हैं। कारण स्पष्ट है -हम अपने प्राचीन भाषा से भी दूर हो चुके हैं। यही कारण है कि आधुनिक शिक्षा व्यवस्था ने हमें लाखों-करोडों वर्ष पूर्व के गौरवशाली अतीत/इतिहास को भूल जाने और अपने अन्दर हीन भावना भरने के लिए मजबूर कर दिया है। 

अपने सनातन संस्कृति, सभ्यता, प्राचीन परम्पराओं, भावनाओं, धार्मिक ग्रंथों से दूर होकर-आधुनिक शिक्षा व्यवस्था, पश्चिमी संस्कृति सभ्यता जो मुंबई के फिल्मी दुनिया से होता हुआ आज जन जन तक पहुंच रहा है। लोकलुभावन वातावरण में आधुनिक वैज्ञानिक विकास ने हम सभी को इतना आनंददायक वातावरण प्रदान किया है कि हम प्रकृति प्रदत्त मुफ्त में मिलने वाले अन्न, जल, अग्नि, वायु, भूमि आदि के प्रति आभार व्यक्त करना तो दूर की बात है। उसके महत्व को भी समक्षने के लिए तैयार नहीं हैं। 

पहले छुट्टियां बाल-बच्चों सहित ननिहाल में नाना-नानी, मामा-मामी, मौसेरे फुफेरे आदि नातेदार-रिस्तेदारों के यहां मनाने में लोग गर्व महसूस करते थे। आधुनिक वैज्ञानिक विकास के काल में माता पिता बच्चों को लेकर जुहू चौपाटी, गोवा-गंगटोक, मार्ट-मांल अत्यधिक चकाचौंध में लुफ्त उठाते, जन्मदिन- वर्षगांठ पर मंदिर के बजाय कहीं और मनाने में गर्व महसूस करते हैं। हिन्दू धर्म नहीं बल्कि जीवन जीने की एक शैली है। "उत्तम ब्यक्तित्व चरित्र के लिए", सामाजिक समरसता भाईचारे के लिए, राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय शांति सौहार्द के लिए, हिन्दू धर्म नहीं बल्कि जीवन जीने का एक विधि विधान है। 

इस आशय का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय ने भी दिया है। फिर हम धर्म के नाम पर राजनीति, समर्थन- विरोध में क्यों उलक्षे हुए हैं? वास्तव में भारतीय सनातनधर्मीयों का जो काल खंड है-उससे हम इतने दूर जा चुके हैं कि वहां तक पहुंचने में सैकड़ों नहीं बल्कि हजारों वर्ष हमें लगेंगे। हजारों वर्षों के गुलामी के अनेकानेक घटनाओं के कारण बहुत सारी विकृतियां पैदा हो चुकी हैं। 

जिसे आदिगुरु शंकराचार्य, स्वामी रामानुजाचार्य, महात्मा बुद्ध, कौटिल्य से होते हुए सुर, कबीर, बाबा तुलसीदास, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानन्द सरस्वती, राजा राममोहन राय, अहिल्याबाई, ज्योतिबा फूले आदि युग पुरुषों ने कुरीतियों को समाप्त ही नहीं किया बल्कि यह भी सिद्ध किया कि यह भारतीय सनातन ब्यवस्था का हिस्सा नहीं रहा है। 

सामाजिक संरचना में सामाजिक सौहार्द स्थापित करने के उद्देश्य से चार वर्णों की ब्यवस्था की गई थी- जो आज सैकड़ों नहीं बल्कि हजारों जातियों में बिभाजित होकर राजनैतिक दलों के लिए संजीवनी बूटी बने हुए हैं। बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर ने इस खाई को पाटने का एक युक्ति इजात तो किया, लेकिन जाति-आधारित नेतृत्व इस खाई को और गहरा करने के नित्य नए उपक्रम में लगे हुए हैं। सफल भी हो रहे हैं।

मन और मनुष्य का इतना गहरा सम्बन्ध है कि दोनों एक दूसरे से अलग नहीं रह सकते। मनुष्य का मन की चंचलता पर कितना नियंत्रण है। यह मानवीय मूल्यों को प्रभावित करता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। सामाजिक ताम-झाम, चकाचौंध,संग कुसंग, से सभी कार्य ब्यवसाय के लोग प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते। आधुनिक कुआचरण आधुनिकता का प्रतिफल है। 

यदि प्राचीन भारतीय संस्कृति, सभ्यता, परम्पराओं के करीब जाने का जब हम प्रयास करते हैं तो मनुष्य मन की चंचलता पर नियंत्रण रखने में कामयाब हो जाते है। अन्यथा सामान्य जीवन जीने के कारण मानवीय स्वाभाविक गुणों से युक्त होकर यदा-कदा मानवीय अवगुणों का शिकार होना पड़ता है। आज के लोग स्वयं की समीक्षा कम औरों का छिद्रान्वेषण ज्यादा करते हैं। 

वर्तमान सामाजिक मानसिकता यह है कि किसी ब्यवसाय, वर्ग, जाति, धर्म से जुड़े किसी एक व्यक्ति के मन की चंचलता ने कोई आपराधिक कृत्य की ओर प्रेरित किया तो लोग स्वयं को पवित्र सिद्ध करने में पुरे उस सम्बन्धित समाज पर चटकारे लेने लगते हैं। वर्तमान वैश्विक ब्यवस्था में लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की अहम भूमिका है। किसी भी समाज या राष्ट्र निर्माण में शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा की उत्तम व्यवस्था होगी तभी मानवीय मूल्यों में हो रहे गिरावट को रोका जा सकता है। 

किसी भी शिक्षण संस्थानों को ईंट पत्थर से नहीं बल्कि परिसर की पवित्रता से पहचाना जाता है- यह सत्य है। लेकिन यह भी सत्य है कि शिक्षक समाज हो,शिक्षण संस्थाएं हों या कोई भी पेशा, ब्यवसाय, जाति-धर्म हो - उसमें अच्छे से अच्छे ब्यक्तित्व चरित्र के लोग हैं। यह अलग बात है कि ऐसे सामान्य लोग सुर्खियां बटोरने के बजाय सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक चिंतन -मनन में अपने समय, अपने विचार को समर्पित करते हैं।  जौनपुर में घटित घटना में चौथे स्तम्भ ने अपने दायित्व का निर्वहन किया। 

किसी एक ने कुछ ऐसी टिप्पणी प्रस्तुत किया कि मुझे अपने स्वय के विचार ब्यक्त करने को मजबुर होना पड़ा कि --"""मन मनुष्य का मिञ भी है और शञु भी है"" यह हम सभी कलयुगी मनुष्य पर निर्भर करता है कि हम अपने मन की चंचलता पर नियंत्रण कितना करने में सफल होते हैं, या मन मनुष्य को कितना नियंत्रण करने में सफल होता है? यदि हमें सम्मान चाहिए तो औरों को सम्मान देने की आदत डालनी होगी। यदि हम किसी का उपहास करते हैं,गाली देते हैं तो हमें औरों से सम्मान की अपेक्षा करनें का हक नहीं है। यह सिद्धांत "न्यूटन के थर्ड ला आफ मोशन" से नहीं बल्कि उसके हजारों साल पहले के अपने पूर्वजों से लिया है।

ऐसे में एक सामान्य शिक्षक होने के कारण नौजवान, युवा वर्ग से लेकर राष्ट्रीय गौरव के प्रति जागरूक संवेदनशील नागरिकों से यह ध्यान रखने का आग्रह करता हूं कि-- जब तथाकथित कोई साधू-संत-बाबा का नाम किसी प्रकार के कुकृत्य में सुर्खियां बटोरता है तो हम पुरे साधु संत बाबा समाज पर कीचड़ उछालने लगते हैं। ऐसी सीमित, संकुचित मानसिकता से उपर उठकर अपने गौरवशाली अतीत पर स्वाभिमान उत्पन्न करने की आवश्यकता है।

मन पर नियंत्रण है तब तक वह दोस्त है,, अन्यथा चंचल मन का नियंत्रण जब मनुष्य पर हो जाता है तो वह दुश्मन की भूमिका निभाने लगता है। परम् पुज्य गुरुदेव गोवर्धन मठ पूरी पीठाधीश्वर सनातन धर्म रक्षक अनंत विभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज द्वारा चलाए जा रहे भारतीय संस्कृति सभ्यता परम्पराओं के प्रति जागरूकता अभियान को सफल बनाने में सहभागी हों ऐसी कामना करता हूं।


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