जौनपुर: बकरीद नज़दीक आते ही बढ़ी बाजारों की रौनक | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
दुकानों पर खरीदारी करने वालों की लग रही भीड़
खेतासराय जौनपुर। ईद-उल फित्र के बाद बकरीद मुसलमानों का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है। यह त्योहार ईद के तकरीबन 70 दिनों के बाद मनाया जाता है। जिसे, ईद अल-अज़हा, ईद उल-अज़हा, ईद अल-अधा और ईदुज़ जुहा के नाम से भी जाना जाता है। इस्लामी कैलेंडर के अनुसार 12वें महीने में मनाया जाने वाला यह त्योहार चंद्रमा की स्थिति के आधार पर प्रतिवर्ष तिथि बदलती रहती है। यही कारण है कि सभी देश अलग-अलग दिन ईद-उल-अजहा मनाते हैं। ईद-उल अजहा यानी बकरीद इस साल 29 जुलाई 2023 गुरु वार के दिन मनाई जाने की संभावना है। इस मौके पर ईदगाह या मस्जिदों में विशेष नमाज अदा की जाती है। इस पर्व पर इस्लाम धर्म के लोग साफ-पाक होकर नए कपड़े पहनकर नमाज पढ़ते हैं और उसके बाद कुर्बानी देते हैं। ईद-उल फित्र पर जहां खीर बनाने का रिवाज है वहीं बकरीद पर बकरे की कुर्बानी दी जाती है। जिसके बारे में बताया जाता है कि हज़रत इब्रााहिम अ.स. ने सपने देखा था कि वह अपने बेटे इस्माईल अ.स. को अल्लाह की राह में कुरबान कर देते हैं। हज़रत इब्रााहिम अ.स. ने अपने बेटे को अपने सपनों के बारे में बताया, जिस पर इस्माईल कुर्बान होने को राज़ी हो गए। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, अल्लाह ने हज़रत इब्रााहिम की परीक्षा लेने के लिए उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज़ कुरबान करने को कहा था। क्योंकि हज़रत इब्रााहिम के लिए सबसे अज़ीज़ और प्यारे उनके बेटे हज़रत ईस्माइल ही थे, इसलिए उन्होंने अपने बेटे को अल्लाह की राह में कुर्बान करने का फैसला किया। इसी बीच जब पिता पुत्र को कुर्बानी के लिए तैयारी कर रहे थे, तो शैतान हज़रत इब्रााहिम और उनके परिवार को बहकाने की कोशिश करता है। इसके बाद हज़रत इब्रााहिम शैतान पर कंकड़ फेंककर उसे वहां से दूर भगा देते हैं। कहा जाता है कि जैसे ही हज़रत इब्रााहिम अपनी आंखें बंद करके इस्माईल की गर्दन पर छुरी चलाते हैं, वैसे ही अल्लाह उनके बेटे की जगह दुंबा (भेंड़) भेज देते हैं और इस्माईल की जगह दुंबे की कुर्बानी हो जाती है और हजरत इस्माईल अ.स. सकुशल बच जाते हैं। इस घटना के बाद से ही दुनिया भर में इस्लाम के अनुयायियों द्वारा हलाल जानवरों की कुर्बानी देकर बकरीद का पर्व मनाया जाता है। इस त्योहार को मनाने के लिए मुस्लिम धर्म के लोग महीनों पहले तैयारी में जुट जाते है। बाजारों से जरूरतों के समान को खरीदने और जुटाने में लग जाते है। जिससे बाजारों के रौनक बढ़ जाती है। कुर्बानी के लिए बकरों की मंडी लगती है। खेतासराय-जौनपुर मुख्य मार्ग पर स्थित गुरैनी बाजार में क्षेत्र के सुम्बुलपुर गांव निवासी नाजि़म अली कुरैशी पिछले एक दशक से मंडी लगाते है। उन्होंने बताया कि इस बार महँगाई की मार इस व्यापार पर भी साफ दिखाई दे रही है। व्यापार पर लगभग 50 प्रतिशत की कमी आयी है। हर साल की अपेक्षा इस साल बिक्री कम है और बकरे का दाम महंगा है, नहीं तो बकरीद नज़दीक आते ही बकरों की खरीदारी तेज़ हो जाती थी, लेकिन इस बार बिक्री नाममात्र की है। उक्त मंडी में क्षेत्र के लगभग आधा दर्जन गांव जैसे मानीकला, अर्जनपुर, जपटापुर, तरसावा आदि गांव के आस-पास लोग अपना बकरा लेकर मंडी में आते थे। लेकिन इस बार अभी तक कोई और व्यापारी मंडी में बकरा लेकर बेचने नही आया। बकरीद के त्योहार तक 500 बकरों की बिक्री आसानी से हो जाती थी। लेकिन इस बार अभी तक 50 बकरे भी नही बिके है। ग्राहकों के बारे में बताया कि ग्राहक तो आ रहे है लेकिन मंहगाई इतना है कि रेट सुनकर अपने बजट से बाहर बकरा होने की बात करके वापिस चले जाते है। कुछ ग्राहक हल्के दामो के बकरों की खरीदारी करते है अब उसे महँगाई कही जाए या और कोई अन्य कारण समझ से परे है। पिछले सालों की तुलना की जाए तो इस वर्ष बिक्री आधे पर आ गई है। लगभग एक पखवारा से भी कम समय बचा हुआ है। लेकिन बकरीद का धंधा अभी मंदा पड़ा हुआ है।