हमसफ़र| #NayaSaveraNetwork
![]() |
लेखक- पं. आशीष मिश्र उर्वर |
नया सवेरा नेटवर्क
हम सफ़र
कभी दिल की धड़कन बनकर सांसों की डोर से जुड़ जाती हो,
कभी प्रणय का आधार बनकर अपनेपन का एहसास दिलाती हो।
कभी आंखों में चुपके से आकर ज्योति बनकर चमकती हो,
कभी होठों की मुस्कान बनकर मेरे चेहरे का नूर बढ़ाती हो।
कभी उषा की लालिमा बनकर भोर का सिंदूर लगाती हो,
कभी सूरज की किरण बनकर आशा के दीप जलाती हो।
कभी अरुणोदय की बेला फैलाकर लाल ओढ़नी पहनाती हो,
कभी उमंग की लहरें बनकर जीने की चाह को जगाती हो।
कभी शाम की चादर ओढ़कर सुरमई रंग में मदहोश करती हो,
कभी हवा का झोंका बनकर मुझ को मुझी से चुराती हो।
कभी पूनम का चांद बनकर रातों को मेरी रौशन करती हो,
कभी फ़लक से तारे तोड़कर चुपके से मेरी दुनिया सजाती हो।
कभी दीवाना बादल बनकर प्यार की बूंदों से रूह भिगोती हो,
कभी लहराता दरख़्त बनकर ख़ुशियों की बहार से रिझाती हो।
कभी ग़ज़ल के अल्फ़ाज़ बनकर काग़ज़ पे उतर जाती हो,
कभी ज़िन्दगी का साज़ बनकर दिल की आवाज़ बन जाती हो।
कभी तसव्वुर से उतर कर हाथों की लकीरों में बस जाती हो,
कभी जीवन की डोर थामकर कायनात मेरे कदमों में बिताती हो।
कभी पूजा का कलावा बनकर मेरी कलाई से लिपट जाती हो,
कभी ईश्वर का आशीर्वाद बनकर मेरी तकदीर से जुड़ जाती हो।
लेखक- पं. आशीष मिश्र उर्वर
कादीपुर, सुल्तानपुर उ.प्र.
![]() |
Advt |
![]() |
Advt |
![]() |
Advt. |