Varanasi News: दशानन के अहंकार का दहन, कुंभकर्ण, मेघनाथ के साथ शूर्पणखा का भी होगा अंत!
वाराणसी में रंग, उत्साह और भव्यता का संगम
बरेका में रावण का पुतला तैयार, दशानन के पुतले की लंबाई 75 फीट
मलदहिया का रावण अब अपने पैरों पर खड़ा
सुरेश गांधी @ नया सवेरा
वाराणसी। भगवान राम ने किस तरह से अहंकार को ध्वस्त किया था उसकी एकबानगी आज भी देखने को मिलेगी। दशहरा पर वर्षो पुरानी परंपरा के तहत शहर में रावण का दहन किया जायेगा। दशहरा 2 अक्टूबर, को है. दशहरा को विजयादशमी के नाम से भी जानते हैं. वाराणसी के बरेका मैदान में इस बार 75 फीट का रावण, 65 फीट का कुंभकर्ण और 55 फीट के मेघनाद का पुतला बनकर तैयार हो गया है।
सनातन के अनुसार, अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा मनाते हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, दशमी के दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था, जिससे अधर्म पर धर्म की जीत हुई थी. इस वजह से हर साल इस तिथि को दशहरा मनाते हैं. वहीं मां दुर्गा ने दशमी को महिषासुर का वध किया था. इस वजह से भी यह दिन महत्वपूर्ण है. दशहरा के दिन आप देवी अपराजिता की पूजा करत हैं तो आपको कठिन से कठिन कार्यों में सफलता प्राप्त होगी और दुश्मनों पर विजय प्राप्त करेंगे. कहा जाता है कि रावण पर विजय के लिए प्रभु राम ने भी देवी अपराजिता की पूजा की थी. दशहरा के अवसर पर शमी के पेड़ और शस्त्रों की भी पूजा करते हैं.n
बरेका में विजयादशमी का पर्व इस बार भी रंग और भव्यता का ऐसा संगम लेकर आया है, जिसे देखने के लिए श्रद्धालु और पर्यटक पूरे शहर से उमड़ पड़े हैं। जिला और बरेका प्रशासन की बुधवार को हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया कि बरेका के सभी प्रवेश द्वार पूर्ववत खुले रहेंगे। जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार ने कहा कि सुरक्षा और कानून व्यवस्था के दृष्टिकोण से अतिरिक्त फोर्स तैनात की जाएगी, ताकि दर्शकों और परिवारों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। बरेका की विजयादशमी केवल रावण दहन का पर्व नहीं, बल्कि रंग, उत्साह और आस्था का महाकुंभ है। ध्वनि, रोशनी, ढोलक और ढाक की गूंज पूरे क्षेत्र में गूँजती है, और दर्शक रामलीला के हर दृश्य में खो जाते हैं। बच्चों की खुशी, महिलाओं की भक्ति और पुरानी पीढ़ी की परंपरा का संगम इसे और भी खास बनाता है। इस बार बरेका की विजयादशमी यह संदेश देती है कि अहंकार और बुराई का अंत निश्चित है, और धर्म, नैतिकता और संस्कृति की जीत हमेशा होती है। रावण का पुतला केवल आग में जलता नहीं, बल्कि समाज में अच्छाई और चेतना का दीप भी प्रज्वलित करता है।
इस बार मलदहिया में 50 फीट से अधिक ऊंचाई वाले रावण का पुतला अपने पैरों पर खड़ा होगा। समाज सेवा संघ के अध्यक्ष मंगल सोनी, कमल सलूजा, तिलक राज कपूर और विनय दत्त ने बताया कि पांच साल बाद रावण के पैरों का निर्माण किया गया है, जिससे उसकी भव्यता और अधिक बढ़ गई है। पहली बार रावण दहन से पहले राम-रावण संवाद का आयोजन भी होगा, जो दर्शकों को रामायण की जीवंत झलक दिखाएगा। विजयादशमी के दिन, शाम छह बजे रावण का दहन होगा। इससे पहले श्रीकृष्ण धर्मशाला से देवस्वरूपों की झांकी निकलेगी, जो नगर की गलियों और सड़कों को भक्तिमय रंग से भर देगी। 75 वर्षों से चल रही इस परंपरा में हर वर्ष रावण दहन के अवसर पर हजारों श्रद्धालु और कलाकार जुड़ते हैं।
पर्यावरण संरक्षण का संदेश
गंगा-वरुणा संगम के तट पर आयोजित इस वर्ष की रामलीला न केवल भव्य होगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देगी। रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतले इको-फ्रेंडली सामग्री से बनाए गए हैं। रावण 51 फीट ऊंचा, जबकि कुंभकर्ण और मेघनाथ 45-45 फीट ऊंचे होंगे। इस पहल से यह संदेश जाता है कि धार्मिक उत्सवों में पर्यावरण की रक्षा करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
हिंदू रिवाजों के अनुसार अंतिम संस्कार
रामनगर की रामलीला में रावण के पुतले को जलाने के बाद उसकी परंपरागत हिंदू विधि से मुखाग्नि दी जाएगी। रावण के पूरे कुनबे में केवल विभीषण ही जीवित पुरुष सदस्य रह गए हैं, और यही उसे अंतिम संस्कार देंगे। इस अनोखी परंपरा में दर्शक न केवल राम-रावण की कथा का आनंद लेते हैं, बल्कि धर्म और संस्कार की गहराई को भी महसूस करते हैं। रामलीला मैदान में लगने वाले मेले का मुख्य आकर्षण 65 फीट ऊंचे और 30 फीट परिधि वाले विशालकाय रावण का पुतला होगा। पाँच व्यक्ति आग देने वाले की अगुवाई में चिता के चारों ओर परिक्रमा करेंगे, जैसे विभीषण करते हैं। इस भव्य परिक्रमा के बाद रावण के पुतले को आग दी जाएगी। मुहूर्त के अनुसार गुरुवार की रात रावण का अंतिम संस्कार संपन्न होगा, और अहंकार का प्रतीक आग में विलीन हो जाएगा।
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मंत्र
दशहरा पर पूजा के लिए देवी अपराजिता का मंत्र है- ओम अपराजितायै नमः। इसके अलावा आप चाहें तो अपराजिता स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं.
पूजा विधि
दशहरा पर सुबह में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर साफ कपड़े पहनें. फिर दशहरा पूजा का संकल्प करें. उसके बाद दोपहर को विजय मुहूर्त में पूजा स्थान पर देवी अपराजिता की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित करें. उनका गंगाजल से अभिषेक करें. फिर ओम अपराजितायै नमः मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी अपराजिता को फूल, अक्षत्, कुमकुम, फल, धूप, दीप, नैवेद्य, गंध आदि अर्पित करें. आप चाहें तो इसके बाद अर्गला स्तोत्र, देवी कवच और देवी सूक्तम का पाठ कर सकते हैं. पूजा का समापन देवी अपराजिता की आरती से करें. देवी अपराजिता की कृपा से आपकी मनोकामनाएं पूरी होंगी, आपका घर सुख और समृद्धि से भर जाएगा.
शमी के पेड़ की पूजा
दशहरा के दिन देवी अपराजिता के अलावा शमी के पेड़ की भी पूजा करते हैं. इस दिन शमी पूजा करने से धन, सुख, समृद्धि बढ़ती है. शमी के पेड़ के नीचे रंगोली बनाएं और एक दीपक जलाएं. उसके बाद शमी के कुछ पत्तों को तोड़कर घरवालों में बांटते हैं. ऐसा करने से धन, समृद्धि बढ़ती है. दुख दूर होते हैं. शनि देव की भी कृपा प्राप्त होती है. शमी पूजा से ग्रह दोष और नकारात्मकता दूर होगी.
उपाय
दशहरे के दिन दान करने के साथ कुछ उपाय करना भी लोगों के लिए बहुत शुभ माना जाता है. हर पर्व की तरह इस दिन भी लोग दान पुण्य करते हैं. इससे जीवन में आने वाली बुराइयां खत्म होती हैं. दशहरा के दिन रोग से मुक्ति पाने के लिए सुंदरकांड का पाठ करें. इसके अलावा, एक नारियल हाथ में रखकर हनुमान चालीसा का दोहा नासे रोग हरे सब पीरा, जपत निरंतर हनुमान बीरा पढ़कर रोगी के सिर के ऊपर से सात बार घुमाएं. इसके बाद नारियल को रावण दहन में फेंक दें. ऐसा करने से सभी तरह की बीमारियां खत्म हो जाती हैं. व्यापार-कारोबार में उन्नति पाने के लिए दशहरे के दिन पीले वस्त्र में नारियल, मिठाई, जनेऊ किसी ब्राह्मण को दान करें. इससे मंद पड़े व्यापार में फायदा पहुंचेगा और आर्थिक लाभ पहुंचता है और कारोबार में तरक्की के रास्ते खुल जाते हैं. यदि आपकी कुंडली में शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या है तो इससे राहत पाने के लिए दशहरे के दिन शमी पेड़ के नीचे तिल तेल का 11 दीपक जलाएं और प्रार्थना करें. इससे शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या के प्रभाव से राहत मिलेगी.
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