Varanasi News: काशी की गलियों में आज गूंजेंगे 100 वर्षों का कदमताल: राष्ट्र के यज्ञ का प्रतीक

धनधान्येश्वर मंदिर से आधुनिक शाखाओं तकः काशी में संघ की यात्रा

सुरेश गांधी  @ नया सवेरा 

वाराणसी। काशी की गलियों और महानगर की सड़कें गूंज उठेंगी, स्वयंसेवक रूपी अनुशासन और समर्पण के कदमताल से। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष पूरे होने पर यह पर्व केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि राष्ट्र के प्रति 100 वर्षों की अटूट सेवा, संकल्प और संस्कार का प्रतीक है। प्रांत प्रचारक रमेश जी ने बताया कि काशी की गलियों में आज जो कदमताल गुंजेगा, वह केवल उत्सव का स्वर नहीं, बल्कि 100 वर्षों की राष्ट्र सेवा, समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा का गीत है। यह संदेश हैकृमां भारती की सेवा और राष्ट्र निर्माण के लिए हमेशा तत्पर रहना ही सच्ची विजय है।

महानगर के प्रमुख मार्गों से स्वयंसेवक पथ संचलन निकालेंगे, और देश की नई पीढ़ी को अनुशासन, सेवा और संस्कार की भावना से परिचित कराएंगे। पूर्ण गणवेश में सज-धजकर, स्वयंसेवक विजयादशमी उत्सव को राष्ट्र निर्माण के यज्ञ के रूप में मनाएंगे। काशी की पहली शाखा धनधान्येश्वर शाखा में काशी प्रांत के प्रांत प्रचारक रमेश जी की उपस्थिति में विशेष कार्यक्रम आयोजित होगा। 

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डॉ. केशव राव बलिराम हेडगेवार जी और श्री गुरुजी के चित्र पर माल्यार्पण कर उनके जीवन और राष्ट्र सेवा की प्रेरणा को सम्मानित किया जाएगा। शताब्दी वर्ष का यह गौरवपूर्ण आयोजन काशी प्रांत के सभी मण्डलों और बस्तियों में भी सम्पन्न होगा। संघ शताब्दी वर्ष के उद्घाटन के उपरांत पूरे वर्ष भर समाज के सहयोग से अनेकों कार्यक्रम संचालित होंगे।

काशी में संघ की नींव 13 मार्च 1931 को धनधान्येश्वर मंदिर में रखी गई थी। डॉ. हेडगेवार ने हिन्दू समाज को संगठित करने और व्यक्ति निर्माण के उद्देश्य से इस शाखा की स्थापना की। स्वतंत्रता वीर सावरकर के बड़े भाई, श्री गणेश दामोदर सावरकर ने डॉ. हेडगेवार को प्रेरित किया और काशी में शाखा स्थापित करने हेतु टेलीग्राम भेजा। सन् 1931 से 1962 तक शाखा धनधान्येश्वर मंदिर में संचालित रही। कालांतर में मंदिर में नव निर्माण कार्य होने के कारण शाखा के लिए स्थान छोटा पड़ने लगा। तब से शाखा ब्रह्मा घाट वाराणसी में संचालित होने लगी और पूरे काशी क्षेत्र में नई शाखाओं का विस्तार हुआ।

विजयादशमी का यज्ञ : राष्ट्र के प्रति समर्पण का प्रतीक

आज से ठीक 100 वर्ष पहले, सन् 1925 की विजयादशमी पर राष्ट्र के प्रति सेवा, संकल्प और समर्पण का यज्ञ आरंभ हुआ। अनेकों तपस्वियों की आहुति ने इस यज्ञ को ऐसा वटवृक्ष बना दिया, जिसका नाम हैकृराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। यह वटवृक्ष आज पूरे भारत में अपनी शाखाओं के पत्तों के माध्यम से अनुशासन, संस्कार और राष्ट्रभक्ति का संदेश फैलाता है।

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