शिक्षक दिवस और ईद-ए-मिलाद का अनूठा संगम 5 सितंबर 2025: भारतीय संस्कृति और वैश्विक सद्भाव का प्रतीक

Unique confluence of Teachers' Day and Eid-e-Milad 5 September 2025: A symbol of Indian culture and global harmony

शिक्षक दिवस और ईद-ए-मिलाद का संगम भारत की शक्ति बहुसांस्कृतिक परंपरा की पुष्टि करता है।

संभवतःपहली बार ऐसा अवसर आया है जब शिक्षक दिवस और  ईद-ए-मिलाद-उन-नबी एक ही दिन मनाया जा रहा है। यह अद्वितीय संयोग भारत की सांस्कृतिक धरती की विशेषता को दर्शाता है-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र

नया सवेरा नेटवर्क

गोंदिया - वैश्विक स्तरपर भारत विविधताओं का देश है जहाँ भाषाएँ, धर्म, संस्कृतियाँ,परंपराएँ और विचारधाराएँ एक साथ मिलकर सह-अस्तित्व का अद्भुत उदाहरण पेश करती हैं।5सितंबर 2025 का दिन इस सांस्कृतिक विविधता को और भी गहराई से महसूस करने का अवसर प्रदान करता है, क्योंकि इस दिन शिक्षक दिवस और ईद-ए- मिलादउन -नबी दोनों एक साथ मनाए जा रहे हैं। यह केवल कैलेंडर का संयोग भर नहीं है, बल्कि भारतीय समाज के उस ताने-बाने का प्रमाण है जिसमें विभिन्न आस्थाएँ और मान्यताएँ एक ही मंच पर आकर सामंजस्य और भाईचारे का संदेश देती हैं। मैं एडवोकेट किशन समुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र अपनी राइस सिटी के नाम से मशहूर गोंदिया सिटी में जब एक ही दिन आने वाले हैं दोनों पर्वों की तैयारी स्थलों की ग्राउंड रिपोर्टिंग क़ी तो मुझे बहुत अच्छा लगा और इस विषय पर आर्टिकल लिखने की सोची।भारत के इतिहास में कई ऐसे अवसर आते रहे हैं जब अलग-अलग समुदायों के पर्व एक ही दिन पड़े हों। इसने हमेशा भारतीय लोकतंत्र और समाज की बहुलतावादी संरचना को मज़बूत किया है। 5 सितंबर 2025 का यह संगम भी इसी श्रंखला का हिस्सा है। जहाँ एक ओर शिक्षा और ज्ञान के महत्व को रेखांकित करने वाला शिक्षक दिवस है,वहीं दूसरी ओर करुणा, नैतिकता और पैग़म्बर मुहम्मद साहब की शिक्षाओं को स्मरण कराने वाला ईद-ए-मिलाद-उन- नबी है। यह दो अलग-अलग आयामों के उत्सव हैं,किंतु दोनों ही मानवता के कल्याण और समाज के उत्थान से जुड़े हैं। 

साथियों बात अगर हम शिक्षक दिवस व ईद-ए-मिलाद- उन-नबी का निर्धारण और महत्व की करें तो,शिक्षक दिवस हर वर्ष 5 सितंबर को मनाया जाता है, जो कि भारत के दूसरे राष्ट्रपति और महान दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती है। उन्होंने शिक्षा को केवल ज्ञानार्जन का साधन न मानकर, बल्कि जीवन और समाज को सही दिशा देने वाला स्तंभ बताया।उनकेअनुसार शिक्षक केवल पढ़ाने वाला नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माता होता है।1962 से हर वर्ष यह दिन भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है ताकि शिक्षकों के योगदान को सम्मान दिया जा सके। यह परंपरा शिक्षा और ज्ञान की महत्ता को रेखांकित करती है और समाज में गुरु-शिष्य परंपरा की गरिमा को बनाए रखती है।दूसरी ओर, ईद-ए-मिलाद-उन- नबी इस्लामी चंद्र कैलेंडर के अनुसार तय होता है। इसे पैग़म्बर मुहम्मद साहब के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मुस्लिम समुदाय पैग़म्बर की शिक्षाओं, उनके जीवन-दर्शन और मानवता के लिए दिए गए मार्गदर्शन को याद करता है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि इंसानियत, बराबरी और करुणा का संदेश भी देता है। चूँकि यह पर्व चंद्र कैलेंडर पर आधारित है, इसलिए हर वर्ष इसकी तिथि बदलती रहती है।संयोगवश 2025 में यह 5 सितंबर को पड़ रहा है, जो इसे और भी विशेष बना देता है। 

साथियों बात अगर हम दोनों दोनों पर्वों के संयोग क़े ऐतिहासिक पहलू की करें तो, इतिहासकारों और धार्मिक विद्वानों के अनुसार, संभवतः पहली बार ऐसा अवसर आया है जब भारत का शिक्षक दिवस और इस्लामी जगत का ईद-ए- मिलाद-उन-नबी एक ही दिन मनाया जा रहा है। यह अद्वितीय संयोग भारत की सांस्कृतिक धरती की विशेषता को दर्शाता है। भारतीय समाज हमेशा से विभिन्न समुदायों के मेल-जोल का प्रतीक रहा है, और यह घटना उसी परंपरा की एक नई झलक प्रस्तुत करती है। 

साथियों बातें अगर हम दोनों पर्वों शिक्षा और धर्म क़े साझा संदेश क़ी करें और इसे यदि हम गहराई से देखें तो शिक्षक दिवस और ईद-ए-मिलाद दोनों का मूल संदेश एक ही है, ज्ञान, नैतिकता और मानवता की सेवा। डॉ. राधाकृष्णन ने शिक्षा को राष्ट्र और मानवता के विकास की आधारशिला माना, वहीं पैग़म्बर मुहम्मद साहब ने इंसानियत, भाईचारे और समानता को सबसे महत्वपूर्ण बताया। इस तरह, दोनों पर्व हमें सिखाते हैं कि चाहे शिक्षा के माध्यम से हो या धर्म के माध्यम से, लक्ष्य हमेशा इंसान को बेहतर बनाना और समाज में शांति व न्याय स्थापित करना ज़रूरी है। 

साथियों बातें कर हमअंतरराष्ट्रीय स्तरपर यह संगम और भी महत्वपूर्ण है होने की करें तो, आज पूरी दुनियाँ धार्मिक असहिष्णुता, सांप्रदायिक टकराव और सांस्कृतिक विभाजन की चुनौतियों का सामना कर रही है। ऐसे में भारत से यह संदेश जाता है कि विभिन्न धर्म और परंपराएँ एक साथ मिलकर मनाई जा सकती हैं और समाज में भाईचारा स्थापित किया जा सकता है। यह केवल भारतीय लोकतंत्र की शक्ति ही नहीं, बल्कि वैश्विक शांति की दिशा में भी एक प्रेरक उदाहरण है।शिक्षक दिवस और ईद-ए- मिलाद का साझा उत्सव व सामाजिक प्रयोग हैँ भारत के कई राज्यों में 5 सितंबर 2025 को विद्यालयों, कॉलेजों और मस्जिदों दोनों में उत्सव का माहौल रहेगा। बच्चे अपने शिक्षकों का सम्मान करेंगे और मुस्लिम समाज पैग़म्बर साहब की शिक्षाओं को याद करेगा। यह दृश्य उस सामाजिक प्रयोग जैसा होगा जहाँ दो अलग- अलग मान्यताएँ एक-दूसरे के साथ विरोध में नहीं, बल्कि सहयोग में खड़ी होती हैं। इससे समाज में आपसी सम्मान और विश्वास बढ़ता है। 

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साथियों बात अगर हम अवकाश का प्रश्न,राष्ट्रीय और राजपत्रित छुट्टियाँ बहुसांस्कृतिकता का जीवंत उदाहरण की करें तो, ध्यानt देने योग्य तथ्य यह है कि न तो शिक्षक दिवस और न ही ईद-ए-मिलाद भारत में राष्ट्रीय अवकाश की श्रेणी में आते हैं।हालाँकि ईद-ए-मिलाद को राजपत्रित अवकाश माना जाता है, यानी केंद्र सरकार इसेमान्यता देती है और राज्यों को यह अधिकार होता है कि वे अपने स्तर पर छुट्टी घोषित करें। उदाहरण के लिए महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में यह दिन सरकारी अवकाश होता है। इसके विपरीत, शिक्षक दिवस को प्रायः शैक्षिक संस्थानों में ही विशेष कार्यक्रमों और समारोहों के रूप में मनाया जाता है, जबकि औपचारिक अवकाश नहीं होता। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान और प्रशासन दोनों ही विभिन्न आस्थाओं को सम्मान देते हुए लचीलेपन की नीति अपनाते हैं।भारत की शक्ति हमेशा उसकी बहुसांस्कृतिकता में रही है। यहाँ एक ओर हिन्दू पर्व दीपावली और होली हैं, तो दूसरी ओर मुस्लिम पर्व ईद और मुहर्रम हैं;एक ओर क्रिसमस और गुड फ्राइडे हैं तो दूसरी ओर गुरु नानक जयंती और बुद्ध पूर्णिमा। इन सभी त्योहारों का एक साथ मनाया जाना और समाज के हर वर्ग का इसमें शामिल होना ही भारत को विशिष्ट बनाता है। शिक्षक दिवस और ईद-ए-मिलाद का संगम इसी बहुसांस्कृतिक परंपरा की पुष्टि करता है जो अच्छी बात है।

साथियों बात अगर हम वैश्विक शांति और शिक्षा का सेतु व भारतीय लोकतंत्र का संदेश की करें तो,आज कीदुनियाँ में जहाँ हिंसा, युद्ध और आतंकवाद जैसी चुनौतियाँ हैं,वहाँ शिक्षा और धार्मिक मूल्यों का सही संगम ही मानवता को बचा सकता है।शिक्षक दिवस शिक्षा के महत्व को उजागर करता है,जबकि ईद- ए- मिलाद हमें धार्मिक और नैतिक मूल्यों की याद दिलाता है। यदि इन दोनों को मिलाकर देखा जाए तो यह मानव सभ्यता के लिए एक मजबूत सेतु का काम करता है।भारत का संविधान सभी धर्मों को समान अधिकार देता है। यहाँ न तो किसी एक धर्म को सर्वोपरि माना गया है और न ही किसी आस्था के अनुयायियों कोकमतर आँका गया है। 5 सितंबर 2025 का यह संयोग भारतीय लोकतंत्र के उस मूलभूत सिद्धांत को और मज़बूत करता है,जिसमें सभी धर्म और मान्यताएँ समान रूप से आदरणीय हैं। यह दुनिया को यह संदेश देता है किलोकतंत्र केवल चुनाव या शासन व्यवस्था नहीं है, बल्कि यह विविधताओं को साथ लेकर चलने की क्षमता भी है।दोनों पर्वों के संगम से समाज में सामूहिक उत्साह का वातावरण बनेगा। विद्यालयों और मस्जिदों से निकलने वाले संदेश मिलकर समाज में भाईचारे और शांति को और गहरा करेंगे। यह अवसर केवल धार्मिक या सांस्कृतिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। 

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि 5 सितंबर 2025 को मनाया जाने वाला शिक्षक दिवस और ईद-ए-मिलाद का संगम भारतीय संस्कृति और लोकतंत्र की जीवंत मिसाल है।यह केवल तिथियों का मेल नहीं, बल्कि शिक्षा और धर्म के साझा मूल्यों का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि चाहे हम किसी भी समुदाय से आते हों, हमारे लक्ष्य और मूल्य समान हैंज्ञान, नैतिकता, इंसानियत और समाज का कल्याण। यह अद्वितीय अवसर भारत की उस आत्मा को प्रकट करता है, जो सदैव विविधताओं में एकता और विभिन्नताओं में सामंजस्य का मार्ग दिखाती है।

-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र 9226229318

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