ट्रंप का टैरिफ वाऱ:- रूस-चीन- भारत(आऱसीआई) त्रिकोण का नई वैश्विक शक्ति संरचना की ओर कदम बढ़ा-वैश्विक पश्चिमी समूह सख़्ते में?



ट्रंप की टैरिफ नीतियों ने एशिया में एक नए त्रिकोणीय गठबंधन- रूस-चीन-भारत (आरसीआई) के उभरते स्वरूप को जन्म दिया है

वैश्विक बदलते भू-राजनीतिक हालात,आर्थिक टकराव, सामरिक हित और व्यापारिक रणनीतियाँ नए गठबंधन गढ़ती और पुराने समीकरण तोड़ती रहती हैं- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र 

नया सवेरा नेटवर्क

गोंदिया - अंतरराष्ट्रीय राजनीति और वैश्विक अर्थव्यवस्था इस समय जिस मोड़ पर खड़ी है, वहाँ हर कदम और हर निर्णय आने वाले दशकों की शक्ति- संतुलन की रूपरेखा तय कर रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा हाल में उठाए गए टैरिफ वार के कदमों ने न केवल भारत बल्कि एशियाई परिदृश्य में गहरी अनिश्चितता पैदा कर दी है।भारत को अब यह समझना पड़ा है कि एकपक्षीय अमेरिकी दबाव और संरक्षणवाद के बीच अपनी अर्थव्यवस्था को टिकाऊ और सशक्त बनाए रखने के लिए बहुस्तरीय रणनीतिक साझेदारियाँ आवश्यक हैं।अंतरराष्ट्रीय राजनीति में शक्ति- संतुलन कभी स्थिर नहीं रहता। बदलते भू-राजनीतिक हालात, आर्थिक टकराव, सामरिक हित और व्यापारिक रणनीतियाँ नए गठबंधन गढ़ती और पुराने समीकरण तोड़ती रहती हैं। 21वीं सदी के तीसरे दशक में, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आक्रामक आर्थिक नीतियों और टैरिफ वार ने वैश्विक व्यापार पर गहरा असर डाला है। यही नहीं, इन नीतियों ने एशिया में एक नए त्रिकोणीय गठबंधन- रूस,चीन और भारत (आरसीआई) ,के उभरते स्वरूप को भी जन्म दिया है। इसी परिप्रेक्ष्य में अगस्त 2025 के मध्य दिनों में कई ऐसे घटनाक्रम घटे जिन्होंने भारत-चीन-रूस त्रिकोण (आरसीआई) को मजबूती की दिशा में निर्णायक आगे धकेल दियाहै। 18 और 19 अगस्त को चीनी विदेश मंत्री का भारत दौरा, 19 अगस्त को भारतीय विदेश मंत्री का मास्को जाना और 31 अगस्त को प्रधानमंत्री का बीजिंग दौरे की संभावना,ये सब घटनाएँ संकेत देती हैं कि भारत अपनी विदेश नीति में लचीलापन और व्यावहारिकता दोनों को नया आयाम दे रहा है। 

साथियों बात अगर हम  ट्रंप के साथ टैरिफ वार और भारत के सामने खड़ी चुनौती को समझने की करें तो,ट्रंप प्रशासन का टैरिफ वार मूलतःअमेरिकी उद्योगों को बचाने और घरेलू नौकरियों को संरक्षित करने की आक्रामक रणनीति है। लेकिन इसने वैश्विक आपूर्ति शृंखला को झकझोर दिया है। भारत पर भी इसका असर पड़ा है, क्योंकि अमेरिका भारत के लिए बड़े निर्यात बाज़ारों में से एक है। ट्रंप ने विशेष रूप से भारतीय स्टील, दवाओं, आईटी सेवाओं और मैन्युफैक्चरिंग गुड्स पर 27 अगस्त से टैरिफ की धमकी दी है। इस अनिश्चितता ने भारतीय उद्योगों को नई साझेदारियाँ तलाशने के लिए मजबूर कर दिया है।भारत समझ गया है कि केवल अमेरिका और यूरोप पर निर्भर रहना जोखिमपूर्ण है। यही कारण है कि चीन और रूस जैसे देशों के साथ सहयोग को नई प्राथमिकता मिल रही है।चीनी विदेश मंत्री से पहले दिन बैठक होने के अगले ही दिन भारतीय विदेश मंत्री मास्को रवाना हुए। यह समय-निर्धारण यूं ही नहीं था। इसने स्पष्ट किया कि नई दिल्ली बीजिंग और मॉस्को दोनों के साथ लगातार संवाद बनाए रखना चाहती है।मॉस्को में भारतीय विदेश मंत्री की वार्ता का मुख्य एजेंडा संभवतः ऊर्जा व्यापार, रक्षा सहयोग और डॉलर के विकल्प के रूप में राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार बढ़ाने पर केंद्रित रहने की संभावना है। रूस ने अमेरिका के प्रतिबंधों का सामना करने के बाद चीन और भारत दोनों की ओर झुकाव तेज किया है। वहीं भारत भी यह समझता है कि तेल और रक्षा क्षेत्र में रूस एक भरोसेमंद साझेदार बना रह सकता है।पिछले एक दशक में रूस से संबंध और अधिक मजबूत हुए हैं। दोनों देशों ने ऊर्जा,रक्षा और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में आपसी निर्भरता बढ़ाई है।अमेरिका और यूरोप द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों ने रूस को चीन की ओर और नज़दीक ला दिया।भारत के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण स्थिति है। एक ओर वह अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ आर्थिक व तकनीकी साझेदारी चाहता है, वहीं दूसरी ओर रूस और चीन के साथ ऐतिहासिक, भौगोलिक और सामरिक रिश्तों को भी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकत। यही कारण है कि भारत ने रूस-चीन के त्रिकोणीय ढांचे में अपनी भूमिका को संतुलित और रणनीतिक तरीके से परिभाषित करना शुरू किया है,जो रेखांकित करने वाली बात है। 

साथियों बात अगर हम भारत, रूस और चीन,तीनों देश अपनी- अपनी जरूरतों और चुनौतियों से घिरे हैं होने की करें तो,भारत को अमेरिका के टैरिफ और तकनीकी प्रतिबंधों से निकलने के लिए वैकल्पिक बाजारों और साझेदारियों की ज़रूरत है।चीन अमेरिका के सीधे व्यापार युद्ध से जूझ रहा है और एशियाई देशों के साथ गठबंधन मजबूत करना चाहता है।रूस पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण ऊर्जा और रक्षा बाजार को एशिया में स्थिर करना चाहता है।इन तीनों की आवश्यकताएँ मिलकर आरसीआई त्रिकोण को आकार देती हैं। यह गठबंधन केवल सामरिक ही नहीं बल्कि आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से भी संतुलन साध सकता है।आरसीआई त्रिकोण यदि मजबूत होता है, तो यह अमेरिका और यूरोप केंद्रित व्यवस्था के सामने एक नई धुरी स्थापित कर सकता है। यह न केवल टैरिफ वार का जवाब होगा बल्कि बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था (मल्टीपॉलर वर्ल्ड आर्डर) को भी नई गति देगा।भारत की भागीदारी इस त्रिकोण को खास बनाती है क्योंकि भारत के पास जनसांख्यिकीय लाभ, तकनीकी क्षमता और भू- राजनीतिक महत्व है। चीन के पास आर्थिक ताकत और रूस के पास ऊर्जा-रक्षा संसाधन हैं। यदि ये तीनों समन्वित होते हैं, तो यह वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) की आवाज़ को और मजबूत बना सकता है।अमेरिका की आक्रामक टैरिफ नीति ने अनजाने में ही रूस, चीन और भारत को एक दूसरे के और करीब ला दिया है। जुलाई 2025 की घटनाओं ने इस संभावना को और प्रबल किया है कि आने वाले वर्षों में एक नया त्रिकोणीय ढांचा आरसीआई, वैश्विक राजनीति का निर्णायक तत्व बनेगा। भारत के लिए चुनौती यह होगी कि वह अपनी स्वायत्त विदेश नीति बनाए रखते हुए इस गठबंधन का हिस्सा बने और साथ ही अमेरिका तथा पश्चिमी देशों के साथ भी संतुलन साधे। विश्व राजनीति के इस संक्रमणकाल में, एशियाई शक्तियों का यह त्रिकोण केवल व्यापार या रक्षा तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि 21वीं सदी के भू- राजनीतिक नक्शे को गहराई से प्रभावित करेगा। 

अतः अगर हम आपके पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विशेषण करें तो हम पाएंगे किट्रंप का टैरिफ का रस्किन भारत आईसीआई त्रिकोण का नई वैश्विक शक्ति संरचना की ओर कदम बढ़ा।ट्रंप की टैरिफ नीतियों ने एशिया में एक नए त्रिकोणीय गठबंधन-रूस, चीन और भारत (आरसीआई)-के उभरते स्वरूप को भी जन्म दिया है।वैश्विक बदलते भू-राजनीतिक हालात, आर्थिक टकराव, सामरिक हित और व्यापारिक रणनीतियाँ नए गठबंधन गढ़ती और पुराने समीकरण तोड़ती रहती हैं।


-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र 9284141425

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