साठे की जज नियुक्ति सिफारिश पर विवाद
भाजपा ने दिया विपक्ष के आरोपों पर जवाब
मुंबई। सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की हालिया सिफारिश में शामिल वकील आरती साठे का नाम महाराष्ट्र में राजनीतिक मुद्दा बन गया है। विपक्षी दलों का कहना है कि साठे भारतीय जनता पार्टी की प्रवक्ता रहीं, इसलिए उनकी जज के रूप में नियुक्ति न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल उठाती है। बता दें कि आरती साठे एक वकील परिवार से हैं। उनके पिता, वरिष्ठ वकील अरुण साठे, राजनीति से भी जुड़े रहे हैं। आरती साठे टैक्स विवाद, सैट और सेबी मामलों के साथ-साथ मैट्रिमोनियल केस भी देखती हैं। जब आरती साठे से इसको लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने इस पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। वहीं इस पर विपक्ष काफी मुखर है, तो भाजपा ने भी तर्कों के साथ आरोपाें का खंडन किया है।
न्यायिक प्रणाली पर होगा दूरगामी असर : रोहित
इस प्रकरण को लेकर मुखर रोहित पवार ने अपने सोशल पेज पर लिखा, “किसी व्यक्ति को, जो सत्तारूढ़ दल के लिए सार्वजनिक मंच से पक्ष रखता हो, सीधे जज के रूप में नियुक्त करना लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा आघात है। यह भारतीय न्यायिक प्रणाली की निष्पक्षता पर दूरगामी असर डालेगा।” उन्होंने पूछा कि क्या सिर्फ योग्यताएं पर्याप्त हैं या राजनीतिक पृष्ठभूमि रखने वाले व्यक्तियों को सीधे जज बनाना न्यायपालिका को राजनीतिक अखाड़ा बनाने जैसा है?
अब उनका भाजपा से कोई संबंध नहीं : उपाध्ये
भाजपा की ओर से राज्य के मुख्य प्रवक्ता केशव उपाध्ये ने विपक्ष के आरोपों को नकारते हुए कहा कि साठे ने डेढ़ साल पहले पार्टी से इस्तीफा दे दिया था और अब उनका भाजपा से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस और रोहित पवार को कोलेजियम के निर्णय पर उंगली उठाने का कोई अधिकार नहीं है। उपाध्ये ने यह भी जोड़ा कि यह पूरी तरह राजनीतिक हमला है जो न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचा सकता है।
पहले ही दे चुकीं हैं इस्तीफा : नवनाथ बन
महाराष्ट्र भाजपा के मीडिया प्रमुख नवनाथ बन ने पवार को जवाब देते हुए कहा, “झूठे आरोप बेवजह नहीं लगाने चाहिए।” उन्होंने कहा कि आरती साठे ने 6 जनवरी 2024 को मुंबई भाजपा प्रवक्ता पद से इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफा तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले और मुंबई अध्यक्ष आशीष शेलार को सौंपा गया था। नवनाथ बान ने साठे का इस्तीफा पत्र भी साझा किया, जिसमें उन्होंने ‘हेड- लीगल सेल भाजपा एवं मुंबई भाजपा की प्राथमिक सदस्यता और प्रवक्ता पद से निजी और पेशेवर कारणों का हवाला देते हुए तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देने की बात कही थी।
फोटो : बन
पहले भी हुईं ऐसी नियुक्तियां
हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है कि किसी राजनीतिक दल से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी शख्शियत को जज की कुर्सी मिली हो। इतिहास में ऐसे और भी उदाहरण हैं।
केएस हेगड़े :
साल 1947 से लेकर 1957 तक सरकारी वकील लोक अभियोजक रहने के बाद केएस हेगड़े ने अपनी राजनीतिक पारी के लिए कांग्रेस का दामन थामा। 1952 में पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेजा। खास बात रही है कि राज्यसभा सदस्य होने हुए उन्हें मैसूर हाई कोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त किया गया। बाद में उन्हें दिल्ली, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। 30 अप्रैल सन् 1973 को उन्होंने अपने पद से इसलिए इस्तीफा दे दिया क्योंकि उनके जूनियर को भारत का मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया। इसके बाद फिर वो राजनीति में आए। 1973 में इस्तीफे के बाद जनता पार्टी के टिकट पर दक्षिण बेंगलुरू लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीता भी। 20 जुलाई 1977 तक वो सांसद रहे ओर 21 जुलाई 1997 को उन्हें लोकसभा अध्यक्ष चुना गया।
जस्टिस आफताब आलम :
जस्टिस आफताब आलम ने कानून की पढ़ाई की थी। पटना हाई कोर्ट से वकालत शुरू की। सितंबर 1981 में हाई कोर्ट में भारत सरकार के अतिरिक्त स्थाई वकील नियुक्त हुए। इस पद पर वे सन् 1985 तक नियुक्त रहे। इसी बीच उन्होंने सीपीआई की सदस्यता ग्रहण कर राजनीति में छलांग लगा दी। बाद में वहां से वे कांग्रेस के नेता हो लिए। 27 जुलाई सन् 1990 को पटना हाई कोर्ट के जब जज बने तो उन्होंने नेतागिरी छोड़ दी। 2007 तक वे कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में जम्मू एंड कश्मीर हाई कोर्ट पहुंच गए। जबकि सन् 2007 में ही वे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त कर दिए गए।
बहरूल इस्लाम
असम के बहारूल इस्लाम 1962 और 1968 में कांग्रेस के टिकट से राज्यसभा पहुंचे। दूसरा कार्यकाल पूरा होने से पहले उन्होंने इस्तीफा दे दिया और गुवाहाटी हाईकोर्ट में जज बन गए। एक मार्च 1980 को रिटायरमेंट के बाद 4 दिसम्बर 1980 को इंदिरा गांधी सरकार ने उन्हें सप्रीम कोर्ट में जज बनाया। 1982 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस्तीफा दिया। इसके बाद ही कांग्रेस ने 1983 में तीसरी बार राज्यसभा सांसद बनाया।
वीआर कृष्ण अय्यर :
वीआर कृष्ण अय्यर सन् 1957 में वे ईएमएस नम्बूदरीपाद के नेतृत्व वाली वाम मोर्चा की सरकार में कानून कानून मंत्री बनाए गए। सन् 1959 से उन्होंने दोबारा वकालत शुरू कर दी और सन् 1968 में वे केरल हाई कोर्ट के जज नियुक्त किए गए। अय्यर 17 जुलाई सन् 1973 को सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया में जस्टिस के पद तक जा पहुंचे। 14 नवंबर 1980 के सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के पद से रिटायर होने वाले वीआर कृष्ण अय्यर ने सन् 1987 में राष्ट्रपति पद के लिए भी ताल ठोकी थी।
जस्टिस एफ रिबोले :
जस्टिस रिबोल 1966 में बॉम्बे हाई कोर्ट में जस्टिस बनाए जाने से पहले तक, गोवा से जनता पार्टी के विधायक रहे थे। सन् 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस पद से रिटायर होने के बाद उन्होंने अनंतनाग क्षेत्र से लोकसभा प्रत्याशी के रूप में भी राजनीति के अखाड़े में भाग्य आजमाया।