Poetry: होती नहीं अगर मजबूरी तुम को क्यों हम जाने देते
नया सवेरा नेटवर्क
होती नहीं अगर मजबूरी तुम को क्यों हम जाने देते
होती नहीं अगर मजबूरी तुम को क्यों हम जाने देते।।
रोक अगर पाते आंसू हम आंखों में क्यों आने देते।।
मिलना और बिछड़ना ही तो जीवन का प्रारब्ध है पगले-
कुछ दिन और रूके होते प्रिय आसूं तो ढ़ल जाने देते।।
मुश्किल है लगाना कठिन अंदाज आज कल।।
कब और कहाँ किस पे गिरे गाज़ आज कल।।
बदला हुआ है तेवर बच कर के जरा रहना-
सत्ता का बहुत गर्म है मिज़ाज आज कल।।
कुछ लोग हैं जो आते नहीं बाज आज कल।।
नीलाम कर दिये हैं शर्म लाज आज कल।।
गुमराह करने निकले हैं जनता को देश की-
बदला हुआ है जीने का अंदाज़ आज कल।।
रीति बदली रिवाज बदला है।।
है नया युग समाज बदला है।।
उफनी नदियाँ हैं चीखते पर्वत-
बादलों का मिज़ाज बदला है।।
संभव नहीं है आन बान शान बेंच दूं।।
क्या चाहते हो होठों की मुस्कान बेंच दूं।।
कितना गिरोगे गिरने की सीमा नहीं कोई-
मैं भी तुम्हारी तरह से ईमान बेंच दूं।।
गिरीश श्रीवास्तव गिरीश
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