Poetry: अच्छी राह दिखाएं उनको... !

अच्छी राह दिखाएं उनको... !

नहीं सुनाता है अब कोई....!

कहनी-किस्सा अपने नाती-पोतों को

नहीं सुनाता है कोई...लोरी....

अपने ही बच्चे रोते को.....

शांत कहाँ कराता है कोई,

बच्चों की प्यारी-प्यारी जिज्ञासा....

परियों की तो उजड़ गई है दुनिया,

ख़याल नहीं आता...इनका जरा सा..

सपनों में भी दिखते नहीं हैं,

नौकर-चाकर और रानी-राजा....

ललचाने भर को भी नहीं दीखते,

लड्डू-पेड़ा-बरफी-इमरती-खाजा... 

तृप्त कहाँ कराता है कोई,

बच्चों की बाल सुलभ अभिलाषा...

ढूँढे पर भी नहीं है मिलता,

घर में गुड्डे-गुड़ियों वाला छोटा बक्शा

गीत-संगीत,भजन-कीर्तन सब,

अब तो हैं बीती बातें....

ठूँस-ठूँस के भरी जा रही हैं,

बस विज्ञान और तकनीक की बातें...

अब इनको कोई नहीं बताता प्यारे,

कि धवल चाँदनी और घुप्प अँधेरी..!

दो ढंग की होती हैं यहाँ रातें....

मोह-भंग हुआ है....हिन्दी से सबका

अंग्रेजी अब करती है सब करतूतें....

घर के बाहर शौच को जाने वाले....!

देखो घर ही में अब चौड़े से मूतें....

हुआ विकास है इतना  कि....!

पैदा होते ही.....सन्तानों को....

बना रहे हैं लोग कलक्टर....

इसी चाह में जीवन बच्चों का,

एकाकी सा बीत रहा...

फ्लैट-अपार्टमेंट में ही अक्सर....

गौरतलब है यह मित्रों....!

इनको जग-जीवन की माया....

जब हमने ही ना सिखलाया,

फिर क्या जाने ये दीन-दुःखी को,

क्या समझें ये जीवन के संघर्षों को...

वह भी तब....जब देखा हो इन सब ने...

जग के हर एक आभासी उत्कर्षो को...

पले-बढ़े हो जब वे सब,

बरगद की छाँव तले...फिर...

खुद बरगद बन जाने को.....!

कैसे न वह....किसी को छले ...

नित रोज की है यह दुनियावी माया,

इसीलिए तो...यह कहता हूँ प्यारे....!

कि आने वाला दौर कठिन है...

मानव का मानव से ही....!

तगड़ा सा संघर्ष....मुमकिन है...

फिर भलाई बस इसमें ही है...

अच्छी राह दिखाएं उनको... !

जिनके मन-मस्तिष्क मलिन है...

अच्छी राह दिखाएं उनको... !

जिनके मन-मस्तिष्क मलिन है...

रचनाकार....

जितेन्द्र कुमार दुबे

अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ

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