Poetry: कच्चा आँगन

नया सवेरा नेटवर्क

कच्चा आँगन 


उस कच्चे आँगन  की  याद है 

और  मन भीगा भीगा ।


इस घर की सारी धरोहर 

 तुम्हारी है भाई !

मैं इस ऑंगन में

 खेली भी   तो   नहीं हूँ ।


पिता के अधकच्चे मकान में होता था

मिट्टी का आँगन 

 उसे कब का  टाइल्स

 लगवा कर  पक्का 

 नया कर दिया गया है ।


वो जगह जहां ,बड़ी बहन

 झूठ मूठ की रसोई बनाते -बनाते

 एक दिन सच में

छान लाई गर्म पूरियाँ

और मसालेदार सब्ज़ी

कब की छुप चुकी  है ।


जहाँ राख और मिट्टी के साथ 

घास के उसकन से माँजा जाता था 

बर्तन ,

उस कोने की पहचान मिट गई है ।


वो पेड़ जिसकी डाल पर पीढ़े

का झूला डाल देर तक झूलते थे 

हम सब 

(ये सुना ,देखा था कि )

चक्कर आने पर 

खटाई खानी चाहिए,

हम झूठ मूठ का 

चक्कर- चक्कर कहते 

अचार के लिए हाथ फैला देते थे

बाद में अम्मा समझ गई ये चाल ।


इसी ऑंगन में भतीजा 

घन्टों चिड़िया पकड़ने के लिए

दौरी में डंडा फँसा

उसमें डोरी 

बाँध चद्दर में छुपा बैठा रहता ।


जामुन 

के टपकते फल ,

नीम की गहरी हरी छाँव

छतों पर  पानी छिड़कना , 

 उसमें से तपन का  धुंआ

 बन कर निकलना  ,

  ज़मीन पर  गद्दे बिछाना , 

 खुले आसमान के नीचे  लेट कर  

 तारों  में आकृतियों को बनाना  , 

 अंताक्षरी खेलना  

 रिश्तेदारों  का आना ,

 उनके घर जाना , 

कम साधन में बड़ा दिल रखना 

 छतों पर चढ़ती हुई ,

लौकी ,नेनुआ ,कद्दू   की बेलें , 

छत पर  बिखरी हरियाली , 

 पत्तों को हटा कर  

ताज़ी सब्ज़ियों को  

 खोजना और तोड़ना  , 

एक ही चारपाई पर  

घन्टों  बिना स्पेस तलाशे,

 बैठे रहना ,

ननिहाल जाना 

, आम ,खरबूजा खाना 

बस  याद आती है उस समय की   ।


विकास के लिए ज़रूरी है 

हर जगह सीमेंट 

 पर मन को 

 सीमेंटेड  मत करना भाई!


 "अब बात  में भी

 कविता   ही  करने  लगी "

 कह कर भीगी  हँसी 

हँस दिया था भाई ।


कल भाई  से बात करके ,

लगा 


ऑंगन में लगी हुई टाईल्स

थोड़ा दरकने लगी हैं

और उनके नीचे से 

झाँकने लगी है 

कच्चे ऑंगन की

  भीगी मिट्टी ।

डॉ.वंदना मिश्रा

9thAnniversary: बीएसए कार्यालय लेखा विभाग के एकाउंटेंट उमाकान्त वर्मा की तरफ से नया सबेरा परिवार को 9वीं वर्षगांठ की बहुत-बहुत शुभकामनाएं



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