Poetry: मेरी पहचान.....!
नया सवेरा नेटवर्क
मेरी पहचान.....!
कहते हैं दुनियावाले कि....!
नागपंचमी का नाग हूँ मैं...
बिन सुर-लय-छन्द-ताल के....!
एक बेसुरा सा राग हूँ मैं....
संग इसी के अक्सर कहते....!
उष्ण रुधिर और तप्त हृदय संग....
बारिश में...जलती हुई सी आग हूँ मैं,
और....चट्टानों से बहते निर्झर से...!
मथकर उठता...गन्दा सा झाग हूँ मैं..
अब कैसे बताऊँ उनको मैं... कि....
जाने कितने अभागों का भाग हूँ मैं...
खपरैले घर के छाजन पर....
शुभ सूचना देने वाला...काग हूँ मैं...
सुरती-चूना-कत्था-बीड़ी नहीं....!
पान-सुपाड़ी-गरी-सौंफ...और...
भोले बाबा ठण्डी भाँग हूँ मैं....
गर्म ताप का गोल सूर्य नहीं मैं....!
चन्द्र देव का शीतल सा पराग हूँ मैं...
चौसर-जुए-पासे का मैं खेल नहीं,
होली वाला सुन्दर सा फाग हूँ मैं...
इसके अलावा सुन लो प्यारे....
और नहीं कुछ बोल सकूँगा मैं...
माँ के ममतामयी हाथों से....!
बच्चे के माथे पर लगने वाला,
काज़ल का गोला वाला दाग़ हूँ मैं....
रचनाकार....
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ
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