Poetry: पहला सलवार सूट

नया सवेरा नेटवर्क

पहला सलवार सूट 

दुप्पटा ओढ़ने का बहुत शौक था 

और लंबे बाल का भी

बाल घने काले  थे 

पर कभी कमर से नीचे  नहीं रहे ।


और सूट तो ये कह कर 

टाल दिया जाता था कि 

जब समय आएगा 

तो नहीं पहनोगी ।


इसी  बीच मौसी के घर जाना हुआ

मिडी ,फ्रॉक ,पैंट पहनने वाली 

मुझसे पहली बार पूछा 

किसी ने कि क्या पहनोगी 

और ऑप्शन में सूट भी था ।

दिल खुश हो गया

जल्दी से बोल दिया ‘सूट’

जबकि कुछ माँगने की आदत नहीं थी ।


इस तरह आया पहला 

सलवार कुर्ते का कपड़ा 

 दुप्पटे समेत

आज भी उसका 

तोतिया रंग और सफ़ेद फूल याद है ।


लौटी वापस पर सूट सिलवाने 

की इजाज़त नहीं मिली ।

बड़ी बहन ने एक कुर्ती नुमा चीज़ सील दी 

आधे कपड़े की और बचे 

आधे पर विचार विमर्श 

होने लगा 


दिल धक धक ।


निश्चित यह हुआ कि बचे कपड़े की 

फ्रॉक सिलवा दी जाए

और दुप्पटे का कोई और इस्तेमाल कर लेगा

मैं तो मरी जा रही थी दुप्पटे के लिए

और यहाँ …


एक दिन दोपहर में चुपचाप वो 

कपड़ा लिया और मुहल्ले के दर्ज़ी को

दे आई सलवार बनवाने को

तब पहली बार पता चला 

कि सलवार में कमर की नाप नहीं 

ली जाती ।

नाप दे कर लौटी 

 तब याद आया कि

 सिलाई के पैसे भी देने होंगे

यह इतना चुपचाप होने वाला

 काम नहीं है

माँ से दूर रहती थी 

इसलिए केवल

 उनका प्यार जानती थी ।


पर उस दिन माँ ने 

भौहें चढ़ा ली

यह कहते हुए कि 

ऐसे तो चुपचाप 

कुछ भी कर लेगी यह लड़की

 माँ का 

अविश्वास और दु:ख खला

मार लेती तो ठीक था

पर उठाई छड़ी रख दिया

और घाव दे दिया ।


वह  सलवार कुर्ता पहने का 

मन नहीं हुआ फिर कभी ।


माँ भूल गई उस बात को 

पर दुप्पटा ओढ़ कर इतराने का 

सपना चूर हो गया मेरा ।


आज कह सकती हूँ कि

चुपचाप कुछ नहीं किया अम्मा !

पर जहाँ कहना था 

वहाँ चुप ज़रूर रही ।


माँ ने सूट में देख मुझे प्यार किया

सराहा पर मैं 

भूल नहीं पाई उनका कहा

माफ़ नहीं कर पाई ख़ुद को

आज भी,उस तरह की 

डिजाइन वाला

हरा रंग उस घाव को

हरा कर देता है ।


चित्र में  लड़की का लहराता ,

हरा दुप्पटा 

पेड़ की डाल पर अटका है ।


मेरा मन में चुभी कील पर ।

डॉ.वंदना मिश्रा


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