Jaunpur News: 5 बैंक मैनेजर व प्रोपराइटर पर धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज करने का आदेश
गोल्ड की जांच कर वादी को दिया गया 17 लाख का लोन
नया सवेरा नेटवर्क
उसे व्यवसाय के लिए पैसे की आवश्यकता थी। उसने तत्कालीन मैनेजर यूनियन बैंक आफ इंडिया कजगांव से 2022 में संपर्क किया। तत्कालीन बैंक के गोल्ड अप्रेजर मनीष कुमार सेठ से वादी के गोल्ड की शुद्धता कराई गई जो 22 कैरेट बताई गई, जिसका सर्टिफिकेट वादी के पास है।
इस गोल्ड को बैंक द्वारा गिरवी रखकर 17 लाख रुपए गोल्ड लोन के रूप में स्वीकृत किया गया और गोल्ड लोन खाता को वादी के बचत खाता से संबद्ध किया गया। बाद में बैंक कर्मियों द्वारा साजिश करके वादी को हानि पहुंचाने और खुद को लाभ पहुंचाने के लिए बैंक के कागजात में कूटरचना, जालसाजी, हेराफेरी करके वादी के गोल्ड को हड़पने की नीयत से 20 जनवरी 2023 को वादी के गोल्ड का रिवैल्युएशन गोल्ड अप्रेजल राकेश कुमार से कराया गया, लेकिन इसकी सूचना वादी को नहीं दी गई।
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वादी की अनुपस्थिति में गोल्ड की शुद्धता की जांच करते हुए जीरो कैरेट बताया गया। वादी को 20 जनवरी 2023 को सूचित किया गया कि आपका गोल्ड किसी काम का नहीं है।आप तत्काल गोल्ड लोन का संपूर्ण पैसा ब्याज सहित बैंक में जमा कर दें। बैंक कर्मियों के दबाव में वादी ने 10 फरवरी 23 को संपूर्ण गोल्ड लोन की धनराशि ब्याज सहित बैंक में जमा किया। बैंक कर्मचारियों ने बैंक का 92 लाख का झूठा घाटा दिखाते हुए काल्पनिक कथानक के आधार पर धोखाधड़ी का मुकदमा लाइन बाजार थाने में दर्ज कराया गया, जिसके पीछे तत्कालीन ब्रांच मैनेजर मुकेश कुमार की मनसा थी कि वादी अपने गोल्ड की मांग न कर सके। व गोल्ड लोन फ्रॉड के लिए उच्च अधिकारियों को बचाया जा सके।
आरोपी बैंक कर्मी वादी के 25 लख रुपए गोल्ड को हड़पना चाहते हैं। गोल्ड मांगने पर हत्या की धमकी देते हैं। कोर्ट ने संपूर्ण मामले का जिक्र करते हुए आदेश में लिखा कि गोल्ड को जीरो कैरेट बताया गया जबकि गोल्ड बैंक के कब्जे में अनवरत रहा। बैंक ने प्रपत्रों की जांच करके लोन दिया और अब सोने की शुद्धता को लेकर विवाद खड़ा कर दिया। बैंक में अप्रेजल नियुक्त होते हैं जो प्रपत्रों की जांच करते हैं फिर यह गलती कैसे हुई, यह आश्चर्यजनक है। साथ ही मात्र अप्रेजर के आधार पर लोन कैसे दिया गया तथा दौरान बंधक रखे गए सोने के साथ ही कोई आदला बदली की गई है या नहीं यह पुलिस की विवेचना से ही संभव है। कोर्ट ने विधि व्यवस्थाओं का हवाला देते हुए थानाध्यक्ष को मुकदमा दर्ज करने व विवेचना का आदेश दिया।
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