अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला सद्गुरू

नया सवेरा नेटवर्क

मानव जीवन काल में सुख—दुख लगा रहता हैं। बिना गुरु के मानव जीवन में कल्याण नहीं होता है। अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले सदगुरु है।जीवात्मा से परमात्मा का मिलन कराने वाला ही सच्चा सदगुरु है। हमारे हिन्दू सत्य सनातन धर्म में गुरु को महान विशेष दर्जा दिया गया है। गुरू पूर्णिमा ज्ञान और श्रद्धा का पर्व है। इसे आषाढ़ पूर्णिमा की महर्षि वेद व्यास जी की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन शिष्य अपने गुरु के प्रति सम्मान पूजन और आभार प्रकट कर आध्यात्मिक जीवन में मार्गदर्शन का स्मरण किया जाता है। हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा को बेहद पवित्र और आध्यात्मिक महत्व का दिन माना जाता है, क्योंकि इसी दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। उन्होंने न केवल महाभारत, बल्कि श्रीमद्भागवत, अट्ठारह पुराण, ब्रह्म सूत्र जैसे ग्रंथों की रचना करके सनातन धर्म को अमूल्य धरोहर दी। गुरु पूर्णिमा को गुरु-शिष्य परंपरा का महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने आध्यात्मिक, सामाजिक या शैक्षिक गुरु का सम्मान करते हैं। उनका आशीर्वाद लेते हैं और उनके मार्गदर्शन के लिए कृतज्ञता प्रकट करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना, दान-पुण्य करना और गुरु का पूजन करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

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गुरु पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं बल्कि उस ज्ञान की आराधना है जो जीवन के अंधकार को मिटाकर हमें सही राह दिखाता है। गुरु पूर्णिमा वह विशेष दिन है जब हम अपने जीवन के गुरुओं को सम्मानपूर्वक नमन करते हैं। ये गुरु हमारे शिक्षक हो सकते हैं। माता-पिता, आध्यात्मिक मार्गदर्शक या कोई भी ऐसा व्यक्ति, जिसने हमें जीवन का सही रास्ता दिखाया हो। इस पर्व का धार्मिक और भावनात्मक महत्व बेहद गहरा है। मान्यता है कि आषाढ़ माह पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेद व्यास जी का जन्म हुआ था जिन्होंने वेदों, पुराणों और महाभारत जैसे ग्रंथों की रचना करके सनातन धर्म को एक गहरी बौद्धिक नींव दी। गुरु पूर्णिमा के अगले ही दिन से सावन मास का शुभारंभ होता है। जो विशेष रूप से उत्तर भारत में शिवभक्ति और व्रतों के लिए पवित्र माना जाता है।

जानकारों के अनुसार भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और वेदव्यास जी की पूजा करने का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन लोग अपने गुरुओं का पूजन अर्चन कर आशीर्वाद लेते हैं। उन्हें उपहार अर्पित करते हैं व उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। गुरु पूर्णिमा केवल परंपरा नहीं, बल्कि उस सच्चे ज्ञान और मार्गदर्शन की पूजा है जो जीवन को सार्थक बनाता है। गुरु-शिष्य परंपरा भारतीय सनातन धर्म संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। जो ज्ञान, कौशल, नैतिक मूल्यों और आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देती है। यह एक अनमोल धरोहर है जिसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना आवश्यक है।

बिपिन सैनी पत्रकार

तेजस टूडे, जौनपुर।

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