UP News: प्रज्ञा प्रवाह युवा आयाम ने ऐतिहासिक विमर्श और साहित्यिक संवाद की नई पहल | Naya Sabera Network
नया सवेरा नेटवर्क
प्रयागराज। प्रज्ञा प्रवाह युवा आयाम, काशी प्रान्त तथा शंख डॉट ओ आर जी संस्था के संयुक्त तत्वावधान में प्रयागराज में पुस्तक समीक्षा कार्यक्रम की शुरुआत की गई। यह आयोजन न केवल पुस्तक के आलोचनात्मक अध्ययन तक सीमित रहा, बल्कि विचारों के आदान-प्रदान, इतिहास की पुनर्व्याख्या और सामाजिक विमर्श को दिशा देने वाली एक महत्वपूर्ण पहल साबित हुआ। इस पुस्तक समीक्षा में विक्रम सम्पत जी द्वारा लिखित वीर "सावरकर" पर आधारित दो भागों में विभाजित पुस्तक को केंद्र में रखा गया, जिसमें विभिन्न विद्वानों और शोधार्थियों ने गहन अध्ययन और विचार प्रस्तुत किए।
डॉ मृत्युंजय राव परमार, असिस्टेंट प्रोफेसर, अंग्रेजी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय एवं अभिजीत मुखर्जी, एडवोकेट, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मुख्य विशेषज्ञों के रूप में सावरकर जी के ऐतिहासिक योगदान, विचारधारा और भारतीय समाज पर उनके प्रभाव पर विस्तृत चर्चा की। डॉ. मृत्युंजय राव परमार ने अपने वक्तव्य को विक्रम संपत की "सावरकर" पुस्तक के प्रथम भाग पर केंद्रित करते हुए वीर सावरकर के शुरुआती जीवन, पुणे में शिक्षा, इंग्लैंड में बताया गया समय तथा लंदन के इंडिया हाउस से जुड़ने के कालखंड पर प्रकाश डालते हुए उनके द्वारा अभिनव भारत जैसे उनके क्रांतिकारी संघों की स्थापना और राष्ट्रवाद के प्रति समर्पण, उग्र प्रतिरोध, साहित्य प्रकाशन और हिंदुत्व के उनके प्रारंभिक दर्शन पर चर्चा प्रस्तुत की।
विषय पर दूसरे अध्ययनकर्ता अभिजीत मुखर्जी ने "सावरकर" पुस्तक के द्वितीय भाग पर चर्चा करते हुए सावरकर के काला पानी से रिहाई के बाद के जीवन, विशेषकर रत्नागिरी में उनकी सामाजिक सुधार गतिविधियों और हिंदू महासभा के साथ उनके जुड़ाव पर केंद्रित विचार प्रस्तुत किए। श्री मुखर्जी के द्वारा इसमें हिंदू एकता, भाषा सुधार और अस्पृश्यता के उन्मूलन पर उनके विचारों का विस्तृत वर्णन करते हुए सावरकर द्वारा कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीतियों की उनकी आलोचना और स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उनके दृष्टिकोण तथा गांधीजी की हत्या में उनकी कथित संलिप्तता और बाद में बरी होने की गहन जांच के बारे में भी संवाद किया। पुस्तक समीक्षा के दौरान अन्य प्रतिभागियों ने भी अपने दृष्टिकोण साझा किए, जिससे यह विमर्श और अधिक समृद्ध हुआ।
कार्यक्रम के अंत में आयोजित प्रश्नोत्तर सत्र में यह गंभीर चिंता व्यक्त की गई कि वीर सावरकर जैसे ऐतिहासिक व्यक्तित्वों की कृतियाँ और उनके विचार वर्तमान शिक्षा प्रणाली में उपेक्षित क्यों हैं? यह प्रश्न न केवल शैक्षिक पाठ्यक्रम की संरचना पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है, बल्कि यह हमारी इतिहास-बोध की दृष्टि को भी चुनौती देता है। पुस्तक समीक्षा कार्यक्रम के आयोजक डॉ कुँवर शेखर गुप्ता, असिस्टेंट प्रोफेसर, यूनाइटेड विश्वविद्यालय, प्रयागराज एवं प्रान्त संयोजक, प्रज्ञा प्रवाह युवा आयाम, काशी प्रान्त, ने कहा कि यह केवल एक पुस्तक चर्चा नहीं, बल्कि विचारों की एक महत्त्वपूर्ण यात्रा है, जो हमें इतिहास की परछाईयों से जोड़ती है और वर्तमान की दिशा को स्पष्ट करती है।
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डॉ शेखर ने कहा कि वीर सावरकर जी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन नायकों में से हैं, जिनकी विचारधारा और योगदान को व्यापक रूप से समझने की आवश्यकता है और इस तरह के विमर्श से हम न केवल बौद्धिक स्तर पर समृद्ध होते हैं, बल्कि अपने सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान को भी सशक्त करते हैं। उन्होंने प्रज्ञा प्रवाह की आगे की योजना के बारे में बताते हुए कहा कि यह पुस्तक समीक्षा का कार्यक्रम हर महीने आयोजित किया जाएगा जिससे विचार-विमर्श की यह परंपरा सतत बनी रहे और साहित्य एवं इतिहास के गहन अध्ययन का एक सशक्त मंच तैयार किया जा सके। इस महत्वपूर्ण पुस्तक चर्चा में कई प्रतिष्ठित विद्वान, अधिवक्ता और शोधार्थी उपस्थित रहे, जिनमें डॉ उदय प्रताप, असिस्टेंट प्रोफेसर, ईश्वर शरण डिग्री कॉलेज, कुश श्रीवास्तव, व्यवसायी एवं समाजसेवी, आकाश सिंह, सहायक अध्यापक, प्राथमिक विद्यालय एवं शोध छात्र पूजा सिंह, सिंह सौरभ संजय, अंकुर तथा एडवोकेट अभिनव मिश्रा, आदर्श शुक्ला साथ में अलग अलग विषय के विद्यार्थी हर्षिता सिंह, अम्बे पांडेय, प्रशांत सिंह, अभिजीत यादव, हर्ष सिंह, ध्रुव, सत्यम द्विवेदी, सुनील केशरवानी, उत्तम सिंह, तथा अन्य स्नातक एवं परास्नातक के विद्यार्थी प्रमुख रहे।
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