Jaunpur News: खेती के लिए लाभकारी है ग्रीष्मकालीन जुताई | Naya Sabera Network
नया सवेरा नेटवर्क
जौनपुर। जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने अवगत कराया है कि किसान भाई परम्परागत कृषि विधियॉ यथा-कतार में बुवाई, फसल चक्र, ग्रीष्म कालीन जुताई आदि कम लागत में गुणवत्तायुक्त उत्पादन प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है। इनको अपनाने से जल, वायु, मृदा व पर्यावरण प्रदूषण कम होता है। कीट रोग नियंत्रण की आधुनिक विधा एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धक (आई0पी0एम0) के अन्तर्गत भी इन परम्परागत विधियों को अपनाने पर बल दिया जाता है।
रबी फसलों के कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई आगामी खरीफ फसल के लिए अनेक प्रकार से लाभकारी है। ग्रीष्मकालीन जुताई मानसून आने से पूर्व मई-जून महीने में की जाती है। ग्रीष्मकालीन जुताई का मुख्य उद्देश्य एवं उससे लाभ निम्नवत् है। ग्रीष्मकालीन जुताई करने से मृदा की संरचना मे सुधार होता है जिससे मृदा की जलधारण क्षमता बढती है जो फसलों के बढवार के लिए उपयोगी होता है। खेत की कठोर परत को तोड कर मृदा को जडों के विकास के लिए अनूकूल बनाने हेतु ग्रीष्मकालीन जुताई अत्यधिक लाभकारी है।
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खेत में उगे हुए खरपतवार एवं फसल अवशेष मिट्टी में दबकर सड़ जाते है जिससे मृदा में जीवांश की मात्रा बढ़ती है। मृदा के अन्दर छिपे हानिकारक कीडे़ मकोडे, उनके अण्डे, लार्वा, प्यूपा एवं खरपतवारां के बीज गहरी जुताई के बाद सूर्य की तेज किरणो के सम्पर्क में आने से नष्ट हो जाती है। गर्मी की गहरी जुताई के उपरान्त मृदा में पाये जाने वाले हानिकारक जीवाणु, कवक, निमेटोड एवं अन्य हानिकारक सूक्ष्य जीव मर जाते है जो फसलों में बीमारी के प्रमुख कारण होते है। जमीन में वायु संचार बढ़ जाता है जो लाभकारी सूक्ष्म जीवों के वृद्धि एवं विकास में सहायक होता है। मृदा में वायु संचार बढने से खरपतवारनाशी एवं कीटनाशी रसायनों के विषाक्त अवशेष एवं पूर्व फसल की जडों़ द्वारा छोडे गये हानिकारक रसायनो के अपघटन में सहायक होती है।
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