Jaunpur News: संत नहीं बन सकते तो संतोषी बन जाओ : डॉ. प्रभाकर | Naya Sabera Network

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सातवें दिन सुदामा चरित्र और परीक्षित मोक्ष प्रसंग का किया वर्णन

नया सवेरा नेटवर्क

बरसठी, जौनपुर। मनुष्य स्वयं को भगवान बनाने के बजाय प्रभु का दास बनने का प्रयास करें, क्योंकि भक्ति भाव देख कर जब प्रभु में वात्सल्य जागता है तो वे सब कुछ छोड़ कर अपने भक्त रूपा संतान के पास दौड़े चले आते हैं। गृहस्थ जीवन में मनुष्य तनाव में जीता है, जब कि संत सद्भाव में जीता है। यदि संत नहीं बन सकते तो संतोषी बन जाओ। संतोष सबसे बड़ा धन है। उक्त बातें खुआवा गांव में चल रही आठ दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञानयज्ञ के समापन पर काशी क्षेत्र से पधारे कथा व्यास डॉ प्रभाकर पांडेय ने कही। कथा के सातवें दिन श्रीकृष्ण भक्त एवं बाल सखा सुदामा के चरित्र का वर्णन, श्रीमद् भागवत तथा श्री व्यास पूजन किया। 

कथावाचक डॉ प्रभाकर पांडेय जी महाराज ने श्री कृष्ण एवं सुदामा की मित्रता के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि सुदामा के आने की खबर पाकर किस प्रकार श्रीकृष्ण दौड़ते हुए दरवाजे तक गए थे। “पानी परात को हाथ छूवो नहीं, नैनन के जल से पग धोये।” कृष्ण अपने बाल सखा सुदामा की आवभगत में इतने विभोर हो गए के द्वारका के नाथ हाथ जोड़कर और अंग लिपटाकर जल भरे नेत्रों से सुदामा का हालचाल पूछने लगे। उन्होंने बताया कि इस प्रसंग से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मित्रता में कभी धन दौलत आड़े नहीं आती। 

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कथा के दौरान सुदामा चरित्र की कथा का प्रसंग सुनाकर श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कथा व्यास ने कहा कि, कहा कि ‘स्व दामा यस्य स: सुदामा’ अर्थात अपनी इंद्रियों का दमन कर ले वही सुदामा है। सुदामा की मित्रता भगवान के साथ निस्वार्थ थी, उन्होंने कभी उनसे सुख साधन या आर्थिक लाभ प्राप्त करने की कामना नहीं की, लेकिन सुदामा की पत्नी द्वारा पोटली में भेजे गए, चावलों में भगवान श्री कृष्ण से सारी हकीकत कह दी और प्रभु ने बिन मांगे ही सुदामा को सब कुछ प्रदान कर दिया। भागवत ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन कथा में सुदामा चरित्र का वाचन हुआ तो मौजूद श्रद्धालुओं के आँखों से अश्रु बहने लगे। उन्होंने कहा श्री कृष्ण भक्त वत्सल हैं सभी के दिलों में विहार करते हैं जरूरत है तो सिर्फ शुद्ध ह्रदय से उन्हें पहचानने की। 

अगले प्रसंग में शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को सात दिन तक श्रीमद्भागवत कथा सुनाई, जिससे उनके मन से मृत्यु का भय निकल गया। तक्षक नाग आता है और राजा परीक्षित को डस लेता है। राजा परीक्षित कथा श्रवण करने के कारण भगवान के परमधाम को पहुंचते है। बुधवार को हवन, कलश विसर्जन एवं भंडारे के साथ कथा सम्पन्न हो जाएगा। 

कथा के मुख्य यजमान सरोजा देवी पत्नी चंद्रकेश शुक्ला रहे। इस मौके पर राजेन्द्र शुक्ल, परीक्षित शुक्ला, पंडित सुरेंद्र शुक्ला, श्रवण शुक्ला, रामउजागीर शुक्ला, प्रधान गजेंद्र दुबे, सुधांशु विश्वकर्मा, शिक्षक योगेश त्रिपाठी, अनिल दुबे, महेंद्र सिंह, उदयभान सिंह, रामचंद्र मिश्रा, रोहित, राहुल, राजू सहित सैकड़ों लोग उपस्थित होकर कथा का रसपान किया।

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