श्रीमद् भगवत गीता व भरत मुनि के नाट्यशास्त्र को यूनेस्को ने अपनी मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रिकॉर्ड रजिस्टर में शामिल किया | Naya Sabera Network

UNESCO has included Shrimad Bhagwat Geeta and Bharat Muni's Natyasastra in its Memory of the World Record Register | Naya Sabera Network


भारत के सांस्कृतिक धरोहर को ऐतिहासिक वैश्विक सम्मान मिलना अत्यंत गौरवपूर्ण है 

श्रीमद् भगवत गीता व नाट्य शास्त्र केवल ग्रंथ ही नहीं बल्कि मानवीय जीवन के लिए प्रेरणा स्रोत,भारतीय दर्शन कलात्मक व सभ्यता के स्तंभ भी हैं-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र 

नया सवेरा नेटवर्क

गोंदिया - वैश्विक स्तरपर भारतीय संस्कृति सभ्यता व कला भारत की प्रतिष्ठित धरोहर है,यह भारतीय दर्शन कलात्मक व सभ्यता के स्तंभ हैं। मेरा मानना है कि जहां भी संस्कृति सभ्यता आध्यात्मिकता व मानवीय भावों की चर्चा होगी तो भारत का नाम जरुर लिया जाएगा, क्योंकि यह सभी भारत की जड़ों में है। भारत की ऐसी धरोहरें ही भारतिय ज्ञान परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर की समृद्धि है, जिसने भारत की वैश्विक मंचों पर अपनी प्रतिष्ठा का पताका लहराया है, जो रेखा अंकित करने वाली बात है। आज हम इस विषय पर चर्चा इसलिए कर रहे हैं क्यों कि भारत की ज्ञान परंपरा और सांस्कृतिक धरोहरों की समृद्धि ने वैश्विक मंच पर एक बार फिर अपनी प्रतिष्ठा स्थापित की है। 17 अप्रैल को यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन) ने अपने मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में भारत के दो महान ग्रंथों भगवद गीता और भरत मुनि के नाट्यशास्त्र को शामिल कर भारत की शाश्वत परंपरा और सांस्कृतिक उत्कृष्टता को वैश्विक स्तर पर मान्यता दी है। यह केवल भारत के लिए नहीं बल्कि वैश्विक संस्कृति और पूरी मानवता के लिए गर्व का विषय है क्योंकि ये दोनों ग्रंथ न केवल भारतीय जीवन दृष्टिकोण के दर्पण हैं बल्कि विश्व सभ्यता को भी दिशा देने वाले दार्शनिक और कलात्मक प्रकाश स्तंभ भी हैं। इस मान्यता ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारत की आध्यात्मिक , सांस्कृतिक और कलात्मक परंपराएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक और प्रभावशाली हैं, जितनी वे सहस्रों वर्ष पूर्व थी। चूँकि भगवत गीता व नाट्यशास्त्र न केवल ग्रंथ है बल्कि मानवीय जीवन के लिए प्रेरणा स्रोत भारतीय दर्शन कलात्मक व सभ्यता के स्तंभ भी हैं तथा भारत की सांस्कृतिक धरोहर को ऐतिहासिक वैश्विक सम्मान मिलना अत्यंत गौरवपूर्ण बात है इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, श्रीमद् भगवत गीता व भरत मुनि के नाट्य शास्त्र को यूनेस्को ने अपने मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रिकॉर्ड रजिस्टर में शामिल किया। 

साथियों बात अगर हम यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रिकॉर्ड रजिस्टर को जानने की करें तो, यह दस्तावेजी धरोहरों का अंतर्राष्ट्रीय मंच है। यूनेस्को द्वारा मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड कार्यक्रम विश्व की महत्वपूर्ण दस्तावेजी धरोहरों को संरक्षित करने, उनका डिजिटलीकरण और प्रचार- प्रसार करने और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देने के उद्देश्य से 1992 में प्रारंभ किया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य ऐसे ऐतिहासिक ग्रंथों, पांडुलिपियों, अभिलेखों, चित्रों, ऑडियो-विजुअल सामग्री और अन्य दस्तावेजी धरोहरों को संरक्षण प्रदान करना और इन्हें सार्वभौमिक विरासत के रूप में स्थापित करना है, जो मानव सभ्यता की स्मृति और संस्कृति को संरक्षित करते हैं। दस्तावेजों की सुरक्षा, डिजिटलीकरण और वैश्विक प्रदर्शन इस बात को सुनिश्चित करता है कि हमारी धरोहरें समय के प्रवाह में विलुप्त न हों बल्कि युगों-युगों तक प्रासंगिक बनी रहें। यूनेस्को के इस रजिस्टर में किसी दस्तावेज को शामिल किया जाना उसकी वैश्विक मान्यता और कालातीत महत्व का प्रमाण होता हैयूनेस्को की अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार समिति और कार्यकारी बोर्ड द्वारा चयन की गई प्रविष्टियां न केवल संबंधित देशों की धरोहर को मान्यता देती हैं बल्कि शोध, शिक्षा और सांस्कृतिक संवाद को भी बढ़ावा देती हैं।मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड में भारत की 14 प्रविष्टियां व 2025 में यूनेस्को की दस्तावेजी धरोहरों की नई सूची में कुल 74 नए संग्रहों को स्थान दिया गया है, जिससे अब तक इस रजिस्टर में शामिल अभिलेखों की संख्या बढ़कर 570 हो गई है, जो 72 देशों और चार अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से संबंधित हैं। इस वर्ष की प्रविष्टियों में वैज्ञानिक क्रांति, ‘इतिहास में महिलाओं का योगदान’ और ‘बहुपक्षवाद’ जैसे विषयों की झलक मिलती है, जिससे स्पष्ट होता है कि यूनेस्को का उद्देश्य केवल दस्तावेजों का संरक्षण ही नहीं बल्कि मानवता के सांझा मूल्यों और इतिहास की रक्षा भी है।गीता और नाट्यशास्त्र के शामिल होने के साथ अब भारत की कुल 14 प्रविष्टियां ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ रजिस्टर में हो चुकी हैं, जिससे प्रमाणित होता है कि भारत अपने दस्तावेजी धरोहरों के संरक्षण और उन्हें विश्व मंच पर प्रस्तुत करने के प्रति प्रतिबद्ध है। इससे पहले ताम्रपत्र,ऋग्वेद,तुलसीदास की रामचरितमानस, पंचतंत्र और अष्टाध्यायी जैसी महत्वपूर्ण कृतियों को भी इसमें स्थान मिल चुका है। भारत के लिए यह न केवल सांस्कृतिक प्रतिष्ठा का विषय है बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए चेतना-संवर्धन का माध्यम भी है। 

साथियों बात अगर हम दोनों ग्रंथों को यूनेस्को रिकॉर्ड में शामिल करने पर भारतीय संस्कृति की वैश्विक विजय होने की करें तो, बहरहाल, गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया जाना केवल औपचारिक मान्यता नहीं है बल्कि यह भारत की चिरंतन संस्कृति, शाश्वत ज्ञान और कलात्मक उत्कृष्टता की वैश्विक विजय है। भगवद गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को द्वारा आधिकारिक रूप से विश्व स्मृति में शामिल किए जाने के बाद इनके संरक्षण, डिजिटलाइजेशन और अंतर्राष्ट्रीय शोध में तेजी आ सकती है। यह भारत की केवल एक सांस्कृतिक उपलब्धि नहीं है बल्कि यह भारत की शाश्वत ज्ञान परंपरा की उस शक्ति का प्रतीक है, जो आज भी मानवता को दिशा देने की क्षमता रखती है। भारत के लिए यह एक विशेष अवसर है कि वह अपने अन्य प्राचीन ग्रंथों और अभिलेखों को भी इसी प्रकार संरक्षित कर वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करे,जैसे वेद,उपनिषद तंत्र ग्रंथ, आयुर्वेद संहिताएं, वास्तु शास्त्र आदि भी इस श्रेणी में सम्मिलित किए जा सकते हैं। यह एक प्रेरणादायक अवसर है कि हम अपनी धरोहरों को न केवल संरक्षित करें बल्कि उन्हें विश्व के साथ साझा भी करें। यह उपलब्धि उन अनगिनत ऋषियों, कलाकारों, विचारकों और शिल्पियों के प्रति श्रद्धांजलि है, जिन्होंने इस ज्ञान को रचा, संजोया और आगे बढ़ाया। यह भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा में एक और सशक्त कदम है। 

साथियों बात अगर हम इन दोनों ग्रंथों भगवत गीता व नाट्य शास्त्र को ही क्यों चुना गया इसको समझने की करें तो, भगवद गीता के 18 अध्यायों में 700 श्लोक हैं। यह महाभारत काल का एक अनुपम हिंदू धर्मग्रंथ है।यह वैदिक,बौद्ध, जैन और चार्वाक जैसे प्राचीन भारतीय धार्मिक विचारों का मिश्रण है। यह कर्तव्य, ज्ञान और भक्ति के महत्त्व पर आधारित है। भगवद गीता को सदियों से पूरी दुनिया में पढ़ा गया है और कई भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है। यूं कह लें कि यूनेस्को ने अभूतपूर्व देरी से ही सही, एक बहुत ही उचित दिशा में पहल बहुत सही की है।

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साथियों बात अगर हम इन ग्रंथो के वैश्विक सम्मान पर भारत के शाश्वत ज्ञान और कलात्मक प्रतिभा का जुनून मनाने की करें तो,भरत मुनि का नाट्यशास्त्र प्रदर्शन कलाओं का वर्णन करने वाले संस्कृत काव्य छंदों का संग्रह है। इसमें नाट्य (नाटक), अभिनय, रस (सौंदर्य अनुभव), भाव (भावना), संगीत आदि को परिभाषित करने वाले नियमों का एक व्यापक दृष्टिकोण हैं। यह कलाओं पर एक प्राचीन विश्वकोश ग्रंथ है। यह भारतीय रंगमंच, काव्यशास्त्र, सौंदर्यशास्त्र नृत्य और संगीत को प्रेरित करता है। ये दोनों ग्रंथ लंबे समय से भारत की सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत के मूल आधार रहे हैं।यह वैश्विक सम्मान भारत के शाश्वत ज्ञान और कलात्मक प्रतिभा का जश्न मनाता है। ये कालजयी कृतियां साहित्यिक खजाने से बढ़कर हैं। ये दर्शन और सौंदर्य का भंडार हैं। इन ग्रंथों में भारत के वैश्विक दृष्टिकोण की झलक देखने को मिलती है। ये ग्रंथ भारतवासियों के सोच, विचार और दृश्टि के परिचायक हैं।बता दें कि मेमोरी ऑफ वर्ल्ड रजिस्टर में दुनियाँ के लिए उपयोगी और वैश्विक स्तर के दस्तावेजों कोशामिल किया जाता है। इंटरनेशनल अडवाइजरी कमेटी की सिफारिश के बाद इसमें किसी दस्तावेज को जगह दी जाती है। इससे किसी दस्तावेज की अहमियत का पता चलता है और इसकी सुरक्षा के लिए भी काम किया जाता है। मई 2023 तक 494 अभिलेखों को इसमें शामिल किया गया था।बता दें कि भरत मुनि के नाट्यशास्त्र में संगीत की विधाओं के साथ ही साहित्य की कई विधाओं को सूक्ष्मता से दर्शाया गया है। इसमें गायन, नृत्य, कविता , नाटक और सौंदर्यशास्त्र की अन्य विधाएं शामिल हैं। कहा जाता है कि भरत मुनि के नाट्यशास्त्र से ही आधुनिक समय में कई वाद्ययंत्रों की जानकारी मिली है। वहीं श्रीमद्भगवद्गीता सनातन धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथों में से एक है। भरत मुनि के नाट्यशास्त्र में संगीत की विधाओं के साथ ही साहित्य की कई विधाओं को सूक्ष्मता से दर्शाया गया है। इसमें गायन, नृत्य, कविता , नाटक और सौंदर्यशास्त्र की अन्य विधाएं शामिल हैं। कहा जाता है कि भरत मुनि के नाट्यशास्त्र से ही आधुनिक समय में कई वाद्ययंत्रों की जानकारी मिली है। वहीं श्रीमद्भगवद्गीता सनातन धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथों में से एक है। 

साथियों बात अगर हम इस उपलब्धि पर भारतीय प्रधानमंत्री और केंद्रीय संस्कृत मंत्री ने एक्सःपर इस उपलब्धि को  गौरव का क्षण बताने की करें तो, उन्होंने कहा यह भारत की सांस्कृतिक विरासत के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। प्रधानमंत्री ने इसे भारत के लिए गर्व का क्षण बताया है। उन्होंने कहा कि यह हमारी प्राचीन ज्ञान और संस्कृति को वैश्विक स्तर पर पहचान है।यूनेस्को का मेमोरी ऑफ वर्ल्ड रजिस्टर दुनिया की महत्वपूर्ण दस्तावेजी धरोहरों को बचाने और उन्हें हमेशा के लिए उपलब्ध कराने की एक कोशिश है। इस लिस्ट में शामिल होने से अतीत के इन धरोहर ग्रंथों को सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी।केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री ने एक्स पर लिखा कि भारत की सभ्यतागत विरासत के लिए यह एक ऐतिहासिक क्षण है। यह वैश्विक सम्मान भारत के शाश्वत ज्ञान और कलात्मक प्रतिभा का जश्न मनाता है। भगवद् गीता एक प्रतिष्ठित धर्मग्रंथ और आध्यात्मिक मार्गदर्शक है। नाट्यशास्त्र, प्रदर्शन कलाओं पर एक प्राचीन ग्रंथ है। यह लंबे समय से भारत की बौद्धिक और सांस्कृतिक पहचान का प्रमुख स्तंभ है।उन्होंने कहा कि ये कालातीत रचनाएं साहित्यिक खजाने से कहीं अधिक हैं। वे दार्शनिक और सौंदर्यवादी आधार हैं जिन्होंने भारत के विश्व दृष्टिकोण और हमारे सोचने, महसूस करने,जीने और अभिव्यक्त करने के तरीके को आकार दिया है।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि श्रीमद् भगवत गीता व भरत मुनि के नाट्यशास्त्र को यूनेस्को ने अपनी मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रिकॉर्ड रजिस्टर में शामिल किया भारत के सांस्कृतिक धरोहर को ऐतिहासिक वैश्विक सम्मान मिलना अत्यंत गौरवपूर्ण है।श्रीमद् भगवत गीता व नाट्य शास्त्र केवल ग्रंथ ही नहीं बल्कि मानवीय जीवन के लिए प्रेरणा स्रोत,भारतीय दर्शन कलात्मक व सभ्यता के स्तंभ भी हैं।


-संकलनकर्ता लेखक - क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यम सीए (एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र 9284141425


*जौनपुर टाईल्स एण्ड सेनेट्री | लाइन बाजार थाने के बगल में जौनपुर | सम्पर्क करें - प्रो. अनुज विक्रम सिंह, मो. 9670770770*
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