राष्ट्रभाषा | Naya Sabera Network
नया सवेरा नेटवर्क
भाषा का बड़ा महत्व होता है|भाषा से ही हम एक दूसरे से समुचित संवाद करते हैं|हर देश की अपनी एक निश्चित भाषा होती है|पूरे विश्व में कोई ही ऐसा देश होगा जिसकी अपनी एक निश्चित भाषा न हो|जब हम चौतरफा नजर दौड़ाते हैं तो पाते हैं कि भारत ही एक ऐसा देश है,जहाँ उसकी अपनी कोई निश्चित भाषा नहीं है|यहाँ जितनी राजनीतिक पार्टी हैं,उतनी भाषा की लड़ाई चल रही है|
जिस देश की अपनी भाषा न हो,वह देश विकास से कोसों दूर रहता है|क्योंकि उस देश में हमेशा विवाद बना रहता है|भाषावाद वात रोग की तरह हमेशा कष्ट देता रहता है|एक भाषा न होने से सरकारी काम काज में भी बहुत सी अड़चने आती हैं|भाषा की सही जानकारी न होने के कारण उस देश के सामान्यजन को सबसे अधिक परेशानी का सामना करना पड़ता है|यदि एक निश्चित भाषा होती है तो,सरकार को भी अधिक झंझट का सामना नहीं करना पड़ता है|जो अर्थ कई भाषाओं की छपाई में व्यर्थ खर्च होता है|वह किसी अन्य विकास के कार्य में लगकर उन्नति की तरफ अग्रसर करता है|और सामान्यजन को भी परेशानी नहीं होती है|
जिस देश की अपनी एक भाषा है,वह कई झंझटो से दूर है|वहाँ कोई भाषा के लिए लड़ाई नहीं लड़ता|देश की प्रगति में बाधा नहीं बनता|इसलिए वहाँ न भाषावाद है न क्षेत्रवाद|एक भाषा होने से, है,तो,सिर्फ राष्ट्र वाद|इसलिए वे देश आज विकसित हैं ,जिनकी अपनी एक राष्ट्र भाषा है|वे देश पिछड़े हैं जहाँ भाषा विवाद है|इस भाषा विवाद में भारत सर्वोपरि है|यहाँ की कोई एक भाषा नहीं है|न होने का मुख्य कारण है,वर्षों की गुलामी|विदेशी आक्राताओं ने यहाँ पर वर्षों शासन किया|कारण एक भाषा ही थी जिसके कारण विदेशी आक्राताओं ने यहाँ का जमकर दोहन किया|अपने देश को समृद्ध किया|एक ऐसा समय आया कि अंग्रेजों ने लगभग पूरे विश्व पर शासन किया|राज्य विस्तार के साथ साथ अपनी भाषा का विस्तार किया|जिससे कई देश तो उबरकर अपनी एक राष्ट्रीय भाषा घोषित कर देश व समाज दोनों को पुष्ट कर लिए|मगर भारत आज भी भारत और इंडिया के मध्य उलझा हैं|यह आजतक अपनी एक भाषा नहीं गढ़ पाया|यहाँ जितने राज्य उतनी भाषा|जैसे ही राष्ट्र भाषा की चर्चा होती है,कुछ छुटभैये नेता,संगठन राजनीतिक पार्टियाँ उत्पात करना शुरू कर देती हैं|जिससे आज भी भाषा के नाम पर भारत अपनी पहचान नहीं बना पा रहा है|
मजे की बात यह है कि ये प्रांतवादी पार्टियाँ कभी भी अंग्रेजी का विरोध करते नहीं दिखती|जैसे ही अधिकतम बोली जाने वाली भाषा हिन्दी की बात होती है,ए विषवमन करना शुरू कर देती हैं|इन्हें जिन लोगों ने गुलाम बनाया था,उनकी भाषा तो प्रिय है|जिस भाषा ने भारत को एक सूत्र में जोड़कर आजादी दिलाई उससे नफरत है|इससे पता चलता है कि ऐसे ही लोगों के चलते देश वर्षों तक गुलाम रहा|
1947 में हिन्दी के चलते ही आजादी मिली थी|उसी समय तत्कालीन सरकार को चाहिए था कि हिन्दी को राष्ट्र भाषा घोषित कर सभी झंझटो को खत्म कर देना था|मगर ऐसा न करके तत्कालीन सरकार ने अपनी गुलामी और फूट डालो राज करो की मांसिकता को उजागर किया|उसी समय यदि घोषणा कर दिए होते तो आज हम भारतीय भाषा रूपी कोढ़ से इस तरह दुखी नहीं होते|तब के कर्णधारों ने यह क्यों नहीं किया|आज तक हम भारतवासी नहीं समझ सके|जबकी उस समय सभी आजादी की खुशी में सबकुछ स्वीकार करने के लिए तत्पर थे|कहीं अंग्रेजों के दबाव में तो नहीं घोषित कर सके|या कुत्सित मांसिकता के कारण|मुझे तो यही दो कारण मुख्य लग रहे हैं|जिसके चलते आज हम भारतीय राष्ट्र भाषा से दूर हैं|अपनी एक पहचान से दूर हैं|हम भारतीय न होकर तमिल तेलगू मराठी गुजराती बनकर जी रहे हैं|यदि भाषा एक होती तो हम भारतीय होते|
तब की सरकार ने तो धोखा दिया ही था|उसके बाद की भी सरकारों ने सत्ता सुख पाने के लिए इस कोढ़ को और पुष्ट करती रहीं|वर्तमान सरकार बनी तो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्थान का नारा देकर|मगर यह भी विगत सरकारों के नक्से कदम पर ही अग्रसर है|इच्छाशक्ति का अभाव इसमें भी है|यह सरकार यदि सरदार पटेल की तरह काम करे तो शायद हिन्दी राष्ट्र भाषा बन जाय|जैसे सरदार पटेल ने आजादी के बाद सभी रियासतों को भारत में मिलाया था|उसी तरह यदि सरकार चाहे तो सम्भव है|मगर सरकारों में इच्छा शक्ति की कमी साफ झलक रही है|सरकारें सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने में व्यस्त हैं|देश और देशवासी जायें भाड़ में|सरकार को जब अपने लिए करना होता है तो हर वो उद्यम करती हैं जिससे उनकी सत्ता बनी रहे|जिससे काम चल रहा है वो काम तो भूल के भी नहीं करती|चाहे देशवासियों पर आफत ही क्यों न टूट पड़े|1947 में भी कई रियासतें भारतीयता नहीं स्वीकार कर रही थीं|मगर सरकार की दृढ़ इच्छा शक्ति ने सबको मिलने के लिए मजबूर कर दिया|उसी इच्छा शक्ति से यदि आज काम किया जाय तो ,हिन्दी राष्ट्र भाषा बन जायेगी|
पं.जमदग्निपुरी
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