Poetry: अश्रु के बदले नयन से खून है बहने लगा | Naya Sabera Network
नया सवेरा नेटवर्क
अश्रु के बदले नयन से खून है बहने लगा|
दुष्ट दरिन्दे म्लेच्छों ने किया है फिर से दगा||
डाला भून पूँछकर है नाम जान हिन्दू को बस|
देख दोगलों की हरकत है हृदय धधकने लगा||
शांत था कश्मीर खुब खिल उठी थी वादियाँ|
हो रही अजान थी खुब बज रही थी घंटियाँ||
आज शांती भंग कर दी दुष्ट म्लेच्छों ने वहाँ|
फिर से लथपथ हो गई खून से वो घाटियाँ||
आतंकवादी भाषावादी लगे सभी को चाँपने|
घुटने टेक रही सरकारें दहशतगर्दों के सामने||
निंदा कर इति मानती देती खुब कड़े जवाब|
फिर भी दहशतगर्दी करते माहौल खराब||
कड़े जवाब का मतलब हम सब,समझ सकेंगे ना तबतक|
भाषावादी दहशतगर्दों का,नहीं सफाया होगा जबतक||
शांति बहाली नामुमकिन है,जीवन सब संकटग्रस्त रहेगा|
बीत गये वर्षों लेकिन क्यों,जीवित हैं आतंकी अबतक||
यहाँ लड़ रहे हम सभी जाति पाति भाषा के नाम|
काश्मीर में मार रहे वो पूँछ नाम बस हिन्दू जान||
हम बिखरे पड़े हैं आपस में ताने खड़े हैं तलवारें|
लाभ इसी का उठाके वो कर रहे हमारा कत्लेआम||
पं.जमदग्नपुरी
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