National: डॉ. सुरेश शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक पर देश के विद्वानों ने की चर्चा | Naya Sabera Network

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नया सवेरा नेटवर्क

नई दिल्ली। विश्व हिंदी संगठन से समन्वित सहचर हिंदी संगठन, नई दिल्ली (पंजी.) द्वारा हर महीने 'पुस्तक परिचर्चा कार्यक्रम  के तहत  26 अप्रैल, दिन- शनिवार को शाम 7 बजे मोतीलाल नेहरू महाविद्यालय, डीयू के पूर्व प्राचार्य और आलोचक डॉ. सुरेश शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक *सामाजिक अंतर्दृष्टि और निराला का काव्य पर लाइव ऑनलाइन परिचर्चा हुई, जिसमें देश भर के साहित्यकारों ने जुड़कर विद्वानों को सुना। इस पुस्तक के लेखक डॉ. सुरेश शर्मा जी ने बताया कि निराला का व्यक्तित्व और उनका स्वयं के व्यक्तित्व से तादम्य रखता है।निराला का ताउम्र संघर्ष उन्हें अपने संघर्षशील जीवन में प्रेरणा देते रहे हैं। 

डॉ. सुशीला गढ़वाल, राजस्थान से जुड़कर के निराला जी के व्यक्तित्व पर अपना विचार रखते हुए उनके शारीरिक सौंदर्य, वेशभूषा, सरल व्यक्तित्व, करुणा घुम्मकड़ प्रकृति, विद्रोही प्रवृत्ति पर विचार से अपना उद्बोधन किया। दूसरी वक्ता के रूप में डॉ. पूनम श्रीवास्तव, उत्तरप्रदेश से जुड़ी और पुस्तक के निराला जी को आज के समय से जोड़ते हुए राम की शक्तिपूजा, कुकरमुत्ता पर अपनी बात रखते हुए कहा कि रौशनी दिया निराला को पढ़ने के लिए। इन्होंने लेखक की भाषा शैली का वर्णन किया कि बहुत ही सरल और सहज भाषा में आपने निराला की दुरुहता को देखने का एक लेंस इस किताब के माध्यम से पाठकों को दे दिया।

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 सामाजिक अंतरदृष्टि और निराला पर बड़़े गहराई से अपना उद्बोधन रखा। अगली कड़ी में बैंगलूरू से डॉ. गगन कुमारी हलवार ने विरोध के सामंजस्य वाला निराला का व्यक्त्वि के पक्ष पर मनोवैज्ञानिक आधार को रखते हुए इस परिचर्चा को गति दी। फ्रायड़ के मनोवैज्ञानिक सिद्धांत  निराला के मनःस्थिति पर लागू होती है और व्यक्तित्व और साहित्य को प्रभावित किए हुए दिखलाई देता है। कला सृष्टि के सृजन में निहित होता है. इन्हीं के ज़रिए लेखक निराला के कृतित्व का वर्णन करते हुए चलते हैं। निराला शिव के समान विषपान कर आगे चलते रहें और सर्वहारा एवं शोषक वर्ग पर लिखते हुए समाज में संतुलन को बनाए रखने का पथ बनाते रहे।

महाराष्ट्र से जुड़ी डॉ. पल्लवी भूदेव पाटिल ने इस काव्य का विशद विवेचन करते हुए बताया कि निराला ने अपनी रचनाओं के माध्यम से यह सवाल उठाया है कि जीवन बोध ही क्या आत्मबोध है? सामाजिक प्रगतिशीलता और सामाजिक गतिशीलता दो अलग - अलग बिंदु है। निराला इस भाव से सचमुच निराला हैं क्योंकि उनमें विलक्षण जुझारूपन था। आत्मप्रेरणा ही आत्मबोध की परिणीति बनी निराला की। बड़ा विशद् वर्णन कर इस पुस्तक की सार्थकता को निरूपित कर परिचर्चा को सार्थक बनाया।

इस कार्यक्रम का सफल संचालन किया सहचर हिंदी संगठन (पंजीकृत) नई दिल्ली के उपाध्यक्ष प्रो.पंढरीनाथ पाटिल ने महाराष्ट्र से जुड़कर किया। महाराष्ट्र के (सचिव) डॉ. संतोष कुलकर्णी  सभी का आभार ज्ञापित किया।

इस पुस्तक परिचर्चा में दिल्ली से डॉ. आरती पाठक, यूपी से डॉ. छवि सांगल, असम से डॉ. परिस्मिता बरदोलै, आगरा से डॉ. राधा शर्मा, जयपुर से डॉ. दीपिका विजयवर्गीय, डॉ. कंचन गुप्ता, प्रयागराज से डॉ. ऋतु माथुर, नांदेड़ महाराष्ट्र से दीपक पवार जी के साथ विश्व हिंदी संगठन से समन्वित सहचर हिंदी संगठन (पंजीकृत) नई दिल्ली के अध्यक्ष डॉ. आलोक रंजन पांडेय  की गरिमामयी उपस्थिति रही।

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