Poetry: अनायास का दोषारोपण.....! | Naya Savera Network
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अनायास का दोषारोपण.....!
करके गहन गवेषणा....!
की गई थी....तीर्थराज में....
अद्भुत-अतुल्य महाकुम्भ की घोषणा
पुण्य लाभ पाने को....यहाँ....!
उत्साहित जनता एक दूजे को,
जाती थी रगड़-रगड़....
धर्म भावना और मान्यता,
बाँधे थी सबको जकड़-जकड़....
हर किसी ने लगाया था.....!
संगम जाने का कोई न कोई जुगाड़..
क्योंकि मालूम था सबको,
संगम पहुँचने से आसान है...
चढ़ता कोई ऊँचा पहाड़.....
चरम पर था आकर्षण....!
पहुँच रहे थे यहाँ लोग बढ़-चढ़
दुर्भाग्य से...अमृत मुहूर्त में प्यारे....
अमृत स्नान पाने को लेकर...!
एक दिन मच गई ....
अचानक ही भगदड़....
कहने लगे उतावले होकर लोग
हादसा हुआ यह भीषण....!
और...फीका पड़ने लगा ...
इस महाकुम्भ का आकर्षण....
बिगड़े हुए थे इनके बोल,
बोल रहे थे बड़ा-बड़ा मुँह खोल...
व्यर्थ हुआ सब खर्चा....
करके हृदय पाषाण....!
करते हानि-लाभ की बस चर्चा
नहीं किया कोई अनुमान,
कि कितना हुआ होगा घर्षण...
क्या स्थिति रही होगी तत्क्षण....
बस कमेंट को रहे आतुर....!
बचाव को आगे भी नहीं आये,
उल-जुलूल बकने वाले अधातुर....
मित्रों आप तो जानते हो,
मानव का स्वभाव नैसर्गिक....!
हर बात में....हर काम में....
अकारण ही....करना छिद्रान्वेषण...
फिर निन्दा से कहाँ बच सकती थी,
महाकुम्भ में हुई यह भगदड़.....
हर कोई कर रहा था,
अपने हिसाब से अन्वेषण....
पुरजोर कर रहा था विश्लेषण...
मित्रों सुखद संयोग रहा....
सकुशल सम्पन्न हुआ अमृत स्नान...
अब तो सुनने को मिल रहे हैं
सर्व समाज के सुंदर-सुंदर मंतव्य...
लेकर पूण्य लाभ....!
चले गए सब अपने-अपने गन्तव्य
तारीफ़ पे तारीफ़ की जा रही है कि...
सबने मन से निभाये अपने-2 कर्तव्य
सकल विश्व ने अनुभव किया मित्रों
कि भावनाओं ने....मान्यताओं ने....
संग ही....व्यवस्थाओं ने मित्रों....
रखा है अभी भी....मज़बूती से....!
लोगों को जकड़-जकड़....
स्वीकार करोगे तुम....सब मित्रगण...
पुरुषारथ से जीत लिया गया यह रण
बस करना शेष रहा यह विश्लेषण,
क्यों कहते थे सब अकड़-अकड़....?
घट गया महाकुम्भ का आकर्षण....
केवल...व्यर्थ विलाप रहा यह मित्रों..
कह सकते है इसको वाणी का क्षरण
या फिर...अनायास का दोषारोपण..
या फिर...अनायास का दोषारोपण..
रचनाकार....
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ।